त्रिपुराः चुनाव जीतने से पहले ही उपमुख्यमंत्री बनने वाले देबबर्मा
आखिरकार त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी अपने सहयोगी दल आईपीएफ़टी को मनाने में कामयाब हो गई और अब मंत्रिमंडल में भी आईपीएफ़टी का प्रतिनिधित्व रहेगा.
हालांकि आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग कर रही आईपीएफ़टी को सिर्फ़ दो पद मिलेंगे. भाजपा ने अपनी ही पार्टी के एक जनजातीय नेता को उप मुख्यमंत्री बनाया है.
आखिरकार त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी अपने सहयोगी दल आईपीएफ़टी को मनाने में कामयाब हो गई और अब मंत्रिमंडल में भी आईपीएफ़टी का प्रतिनिधित्व रहेगा.
हालांकि आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग कर रही आईपीएफ़टी को सिर्फ़ दो पद मिलेंगे. भाजपा ने अपनी ही पार्टी के एक जनजातीय नेता को उप मुख्यमंत्री बनाया है.
नगालैंड की तरह त्रिपुरा विधानसभा में भी कुल 60 सीटें हैं जिनमें से 59 सीटों पर मतदान हुआ, जबकि एक सीट चारिलम पर 12 मार्च को चुनाव होगा. यहां से उपमुख्यमंत्री जिष्णु देबबर्मा चुनाव लड़ रहे हैं.
जानकार कहते हैं कि अपनी सीट पर चुनाव जीतने से पहले ही देबबर्मा को उपमुख्यमंत्री घोषित कर भारतीय जनता पार्टी ने आईपीएफ़टी को एक तरह से 'चेक मेट' यानी शह और मात वाली चाल चली है.
शाही परिवार से जिष्णु देबबर्मा
आईपीएफ़टी के नेता मंत्रिमंडल में सिर्फ दो सीटें मिलने पर सार्वजनिक रूप से आक्रोश व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं. वो इसलिए क्योंकि जिष्णु देबबर्मा त्रिपुरा के शाही परिवार के सदस्य हैं.
वो कई सालों से संगठन में जुड़े रहे हैं. पहले वो त्रिपुरा प्रदेश कांग्रेस कमिटी के महासचिव थे और हाल के दिनों में उन्हें बीजेपी के जनजातीय प्रकोष्ठ का अध्यक्ष बनाया गया है.
मशहूर संगीतकार सचिन देव बर्मन भी जिष्णु देब बर्मा के करीबी रिश्तेदार रहे हैं.
बीबीसी से बातचीत के दौरान जिष्णु देबबर्मा स्वीकार करते हैं कि आईपीएफ़टी के साथ चुनाव पूर्व तालमेल करने की ज़िम्मेदारी भी संगठन ने उन्हें ही दी थी और ये काम उन्होंने बखूबी निभाया भी.
लेकिन आईपीएफ़टी की मांगों पर चर्चा करते हुए देबबर्मा कहते हैं कि आईपीएफ़टी भी एक संगठन है जिसकी अपनी विचारधारा है.
वो कहते हैं, "हम उनकी विचारधारा का सम्मान करते हैं जैसे वो हमारी. चुनावी तालमेल का मतलब ये नहीं होता कि सबकुछ मान लिया जाए. सरकार भी अपने तरीके से चलती है. मगर त्रिपुरा एक छोटा राज्य है. इसको और छोटा नहीं किया जा सकता है."
'आज़ाद पंछी की तरह रहना चाहता था'
इतने सालों से पार्टी के लिए काम करने वाले देबबर्मा कहते हैं कि वो कभी चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे. वो तो 'आज़ाद पंछी' की तरह रहना चाहते थे.
देबबर्मा कहते हैं, "कभी हमारा परिवार यहां राज करता था. मुझे कभी अच्छा नहीं लगता था कि हाथ जोड़कर वोटों की भीख मांगूं और लोगों से झूठे वादे करूं. ये मेरे अंदर नहीं है. मैं लोगों को बरगलाना नहीं चाहता. मगर राजनीति में तो सबकुछ चलता है."
उनका कहना था कि उन्हें मतगणना के बाद अचानक राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का फोन आया. अमित शाह ने ही उनसे विधायक दल की बैठक में शामिल होने को कहा और ये भी कहा कि उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया जा रहा है.
देबबर्मा खुश हैं कि पार्टी ने उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया है. मगर चुनाव जीतना भी उनके लिए बड़ी चुनौती है. वो अपने विधानसभा क्षेत्र का सघन दौरा भी करते हैं और मंत्रिमंडल के गठन के बारे में भी मुख्यमंत्री से चर्चा करते हैं.
चुनाव जीतना बाकी है
भाजपा को लगता है कि ये सीट देबबर्मा आसानी से जीत लेंगे क्योंकि इस इलाके में उनके और राजघराने के लिए काफी श्रद्धा भाव है.
मगर चुनाव जीतने की डगर इतनी आसान भी नहीं होगी. मतदान से पहले ही जब उम्मीदवार राज्य के उपमुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले चुके हों तो चुनाव जीतना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है.
भारतीय जनता पार्टी को याद होगा कि बतौर झारखण्ड के मुख्यमंत्री जब शिबू सोरेन तमाड़ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे तो उन्हें बड़ी हार का सामना करना पड़ा जिसके बाद सारे चुनावी गणित उलट पलट गए थे.
देबबर्मा अपने क्षेत्र में चुनाव प्रचार की महत्ता बताते हुए कहते हैं, "मैं अपने क्षेत्र पर भी ध्यान दे रहा हूं. कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें भी कर रहा हूं और लोगों से घर-घर जाकर मिल रहा हूं. आप समझ रहे हैं ना ये कितना मुश्किल काम है."