त्रिपुरा का 'लाल किला' ढहने के बाद लेफ्ट के पास बचा अकेला केरल
नई दिल्ली। देश में लेफ्ट की राजनीति का अबतक का सबसे बड़ा किला इस बार के चुनाव नतीजे सामने आने के बाद ढह गया है। पश्चिम बंगाल में तकरीबन ढाई दशक तक शासन करने के बाद लेफ्ट का दूसरा सबसे बड़ा गढ़ माना जाने वाला त्रिपुरा अब भाजपा के खाते में चला गया है। पश्चिम बंगाल के बाद अब त्रिपुरा में लेफ्ट का सूपड़ा साफ हो गया है। त्रिपुरा की हार के बाद अब लेफ्ट के पास देश का सिर्फ एक राज्य केरल बचा है। ऐसे में लेफ्ट के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कैसे वह अपनी राजनीतिक अस्तित्व को बचाने में सफल होता है।
भाजपा की जबरदस्त वापसी
देश के तमाम बड़े राज्यों में भाजपा का भगवा रंग चढ़ चुका है। पिछली बार भाजपा के पास त्रिपुरा में सिर्फ 1.40 फीसदी वोट थे, यही नहीं 50 में से 49 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी, वहां भाजपा ने सबको चौंकाते हुए पूर्ण बहुमत हासिल किया है। यहां यह भी गौर करने वाली बात है कि पिछले चुनाव में भाजपा के पास यहां एक भी सीट नहीं थी, ऐसे में दो तिहाई से अधिक सीटों पर जीत की ओर बढ़ रही भाजपा ने ना सिर्फ सीपीआईएम की 25 साल पुरानी सरकार को उखाड़ फेंका है, बल्कि तमाम चुनावी पंडितों को चौंका दिया है।
ये है लेफ्ट की हार की वजह
त्रिपुरा में लेफ्ट की हार की सबसे बड़ी वजह रही है माणिक सरकार पर आरटीई के दिशानिर्देश का उल्लंघन। आरटीआई का उल्लंघन करते हुए माणिक सरकार ने शिक्षकों की भर्ती की थी, साथ ही 10323 शिक्षकों को बर्खास्त कर दिया गया। यही नहीं सरकार पर मनरेगा फंड के दुरुपयोग का भी आरोप लगा है। पार्टी पर चिट फंड कंपनियों को संरक्षण देने का भी आरोप लगा और कई विभागों में भ्रष्टाचार का भी मामला सामने आया।
20 साल से माणिक सरकार
बता दें कि 1998 से त्रिपुरा में माणिक सरकार मुख्यमंत्री हैं। इस बार भी त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में वो सीएम पद का चेहरा हैं। त्रिपुरा में माणिक सरकार के सीएम बनने से पहले से ही 1993 से लेफ्ट फ्रंट की सरकार लगातार बनती आ रही है।
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