त्रिलोकपुरी दंगों का असर दिखेगा दिल्ली विधानसभा चुनावों पर
नई दिल्ली( विवेक शुक्ला) दिल्ली में विधानसभा चुनाव की घोषणा होते ही अब यह सवाल पूछा जा रहा है कि यहां पर त्रिलोकपुरी और बवाना में हिन्दू-मुसलमानों के बीच भड़के दंगों का असर चुनावों के नतीजों पर पड़ेगा ? क्या वोटों का ध्रुवीकरण होगा ? जानकार कह रहे हैं कि दिल्ली में धार्मिक आधार पर वोटिंग होगी भले ही पार्टिंयां कहें कि वोट विकास और गवर्नेंस के नाम पर मांगा जाएगा।
जानकारों का कहना है कि
चांदनी चौक, मटिया महल, बल्लीमारान, विकासपुरी,किराड़ी, मुस्तफाबाद, गांधी नगर, सीमापुरी, सीलमपुर व बाबरपुर ऐसे विधानसभा सीटें हैं जहां मुस्लिम आबादी 61 फीसदी तक है। इधर वोटों का ध्रुवीकरण होना तय है।
हालांकि जानकारों का कहना है कि नौजवान मुसलमान आबादी भाजपा के साथ जा सकती है। उन्हें मोदी का विकास का नारा पसंद आ रहा है। बता दें कि किराड़ी में 35, चांदनी चौक में 21, मटियामहल में 48, बल्लीमारान में 38, विकासपुरी में 21, मुस्तफाबाद में 36,गांधी नगर में 23,सीमापुरी में 26,ओखला में 43,सीलमपुर में 61 व बाबरपुर में 45 फीसदी मुस्लिम आबादी है।
दलित भी कम नहीं
हालांकि इन सीटों पर दलितों की आबादी भी 13 से 30 प्रतिशत तक है। इन 20 सीटों में से अधिकतर कांग्रेस की झोली में है। केवल 2 सीटें किराड़ी और बाबरपुर ही भाजपा के पास है।
कांग्रेस से खफा
इस बीच, मुसलमान खफा हैं कांग्रेस से। उन्हें लगता है कि कांग्रेस ने मुसलमानों के साथ हमेशा धोखा किया। राजधानी में 17 विधानसभा क्षेत्रों के चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की स्थिति में हैं। इन सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 15 से 61 फीसदी तक है।
दिल्ली में मुस्लिम कांग्रेस के परम्परागत मतदाता रहे हैं। मुसलमान बीते चुनावों में कांग्रेस को एकमुश्त वोट देते रहे हैं। लेकिन, इस बार बीजेपी भी इनके वोट लेने के लिए मेहनत कर रही है।
शाहदरा, संगम विहार, बदरपुर, त्रिलोकपुरी, सदर बाजार, घौंडा, करावल नगर व गोकलपुर ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहां मुस्लिम आबादी 20 फीसद तक है।
शाहदरा में 13, घौंडा में 18, गोकलपुर में 13, संगम विहार में 20, बदरपुर में 15, त्रिलोकपुरी में 18, करावल नगर में 20 व सदर बाजार में 13 फीसदी मुस्लिम आबादी है। वहीं, इन सीटों पर दलितों की आबादी भी 14 से 30 प्रतिशत तक है। इन 8 सीटों में से केवल करावल नगर व घौंडा की सीट ही भाजपा के पास है।
मुसलमान भाजपा के साथ
जानकारों का मानना है कि राजधानी में विधानसभा चुनाव विकास के मसले पर लड़ा जा रहा है। इसलिए मुसलमान या बाकी समुदाय भाजपा के साथ हैं। सबको गुजरात मॉडल पसंद आ रहा है। जानकारों का कहना है कि मुसलमानों में बदलाव की चाहत साफतौर पर देखी जा रही है। वे इस बार दिल्ली में बीजेपी को साथ दे सकते हैं।