1984 के सिख दंगे और त्रिलोकपुरी के आंसू
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला)। 1984 से 2014। इस तीस साल के सफर में दो पीढ़ियां आ गईं। दुनिया बहुत बदल गई। देश में आर्थिक उदारीकरण से लेकर ना जाने क्या-क्या नया हो गया। पर, बदनसीब त्रिलोकपुरी नहीं बदली। 1984 में यहां पर दर्जनों सिख मारे गए थे इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगों में। अब यहां पर हिन्दू-मुसलमान लड़े। मौत तो किसी की नहीं हुई, पर हिन्दुओं-मुसलमानों के संबंध तार-तार जरूर हो गए।
बेशक, 1984 के बाद इस इलाक़े में ऐसा तनाव पहली बार देखा गया। त्रिलोकपुरी में कई दिन चली सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को पर्याप्त गंभीरता से नहीं लिया गया। 1984 के बाद से दिल्ली सांप्रदायिक दंगों से अछूता रहा है। हां, पड़ोसी राज्यों में लगातार ऐसी घटनाएं घटित होती रही हैं। हाल में मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और मेरठ, यहां तक कि गाजियाबाद में भी या तो दंगे हुए, या दंगे जैसी स्थितियां बनीं।
काली रात दीपावली की
दीवाली की रात को त्रिलोकपुरी इलाके के ब्लॉक 20 में नशे में धुत चार युवाओं के बीच हुई हाथापाई ने सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले लिया। इस घटना में बड़ी संख्या में लोग घायल हुए, दर्जनों की गिरफ्तारी हुई जबकि एक मुस्लिम की मिल्कियत वाली दुकान में आगजनी की गई। त्रिलोकपुरी ब्लॉक 27 में रहने वाले वाहिद मोहम्मद अकरम कहते हैं, 'मेरी पत्नी और मेरे बच्चे मेरे रिश्तेदार के घर पर हैं। हिंदू हम पर किसी भी वक्त हमला कर सकते हैं। पुलिस उनकी ओर है।'
वहीं ब्लॉक 20 में रहने वाले सुरिंदर सिंह कहते हैं, 'मुस्लिमों ने अपनी पत्नियों और बच्चों को दूर भेज दिया है। साफ है कि वे पुलिस के हटते ही हमला करेंगे।' लोगों को एक जगह एकत्रित न होने देने के आदेश दिए जा चुके हैं, बाजार बंद हैं और पुलिस के जवान लगातार कामगारों की रिहाइश वाली इस कॉलोनी में गश्त लगा रहे हैं।
दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की पूरी पट्टी में पिछले कुछ समय के दौरान सांप्रदायिक संघर्ष देखने को मिला है और यह घटना उस कड़ी में नवीनतम थी। विवाद की तात्कालिक वजह भले ही सड़क किनारे स्थित एक उपासना स्थल बना जो कई दंगों की याद दिलाता है लेकिन इस पूरे मसले में मंदिर, शौचालय और त्रिलोकपुरी के उतार-चढ़ाव वाले इतिहास की अहम भूमिका थी।
1976 में बसाया गया था त्रिलोकपुरी
त्रिलोकपुरी को सन 1976 में बसाया गया था जब दक्षिणी और मध्य दिल्ली से बड़ी संख्या में झुग्गीवासियों को निकालकर वहां के 36 ब्लॉक में बसाया गया था। स्थानीय निवासी शकील रजा बताते हैं, 'हर ब्लॉक में करीब 500 घर थे और एक बड़े पार्क, छह छोटे पार्क और दो जोड़ा सार्वजनिक शौचालयों और कचरा डिब्बों की जगह निर्धारित की गई थी। हर ब्लॉक में आबादी के हिसाब से मंदिर और मस्जिद की भी व्यवस्था की गई।'
झुग्गियों के आधार पर ही त्रिलोकपुरी में भी धार्मिक बसावट का ख्याल रखा गया और पांच ब्लॉक यानी ब्लॉक क्रमांक 15, 20, 27, 32 और 36 में खासी मुस्लिम आबादी थी जबकि बाकी ब्लॉकों में अधिकांश आबादी दलितों की थी। ब्लॉक 32 अक्टूबर 1984 तक सिख बहुल ब्लॉक था लेकिन उस वर्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भयंकर सिख विरोधी दंगे हुए और बड़ी संख्या में सिख या तो मारे गए या वहां से चले गए।
हिंदूवादी राजनीति से घिरा त्रिलोकपुरी
त्रिलोकपुरी में हिंदूवादी राजनीति का रंग चढ़ चुका है। दस्तावेजें में भले ही यह दर्ज है कि सन 1984 में प्रमुख कांग्रेसी नेताओं के नेतृत्व में हिंदू भीड़ ने सिखों पर हमला किया लेकिन स्थानीय निवासी सुरिंदर सिंह कहते हैं, 'मुस्लिम हम पर ठीक सन 1984 की तरह हमला कर रहे हैं।' त्रिलोकपुरी के कसाई के नाम से कुख्यात किशोरी लाल (हिंदू) को आठ सिखों की हत्या के लिए दोषी करार दिया गया था।
ब्लॉक 20 में रहने वाली मीरा पांडे बताती हैं, 'खाली स्थान पर एक सार्वजनिक कचरे का डिब्बा रख दिया गया था और मुस्लिम समुदाय के लोग वहां अपनी गाडिय़ां पार्क करते थे। हमने उस जगह को साफ रखने के लिए कूड़ादान हटा दिया और वहां माता की चौकी स्थापित कर दी।' वे कहती हैं कि त्रिलोकपुरी से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्व विधायक सुनील वैद्य ने लोगों को चौकी स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया। यह जगह स्थानीय मस्जिद से बहुत करीब है। उन्होंने आश्वासन दिया कि वे जरूरी मंजूरी ले आएंगे।
नवरात्रों के दौरान त्रिलोकपुरी मस्जिद के ठीक सामने भगवती जागरण का आयोजन एक सामान्य बात थी। बहरहाल, त्रिलोकपुरी में शांति-सौहार्द में किसी की दिलचस्पी नहीं दिखती। बहरहाल,त्रिलोकपुरी अपनी किस्मत पर आंसू जरूरी बहा रही हैं।