सलवा जुडूम के कारण दूसरे राज्यों में शरण लेने वाले आदिवासी लौट सकते हैं छत्तीसगढ़
नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के बाद नक्सल नीति को बदलने की योजना पर विचार किया जा रहा है क्योंकि नवनियुक्त मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पदभार संभालने के तुरंत बाद कहा था कि उनकी सरकार आदिवासियों से संपर्क स्थापित करेगी। मुख्यमंत्री के इस बयान से उन हजारों आदिवासियों के अपने गांव वापस आने की उम्मीद जगी हैं जो आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में प्रवासी जीवन व्यतीत कर रहे थे।
आदिवासी अब लौट सकते हैं छत्तीसगढ़
अन्य राज्यों में रहने वाले आदिवासी परिवार छत्तीसगढ़ वापस आने के लिए तैयार हैं। सूत्रों का कहना है कि तेलंगाना में रहने वाले 15 परिवारों ने अपनी इच्छा जताई कि वे सूबे में वापस आना चाहते हैं। इन परिवारों ने कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं से मदद की गुहार लगाई है। सूत्रों का कहना है कि राज्य सरकार उन प्रवासियों को वापस लाने की नीति बना रही है। सलवा जुडूम अभियान के दौरान कई गांवों को आग के हवाले कर दिया गया था। इस दौरान रेप और हत्या के आरोप भी लगे थे।
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सलवा जुडूम के कारण घर छोड़कर गए थे हजारों की संख्या में आदिवासी
इसलिए सुकमा और बिजापुर इलाके के आदिवासी पड़ोसी राज्यों में जाकर जीवन-यापन करने लगे थे। सरकार के पास इसका कोई ठोस आंकड़ा नहीं है कि कितने परिवार अन्य राज्यों में रहते हैं। गैर-सरकारी संगठनों के मुताबिक, करीब 20 से 30 हजार तक इनकी संख्या हो सकती है जबकि कुछ इनकी संख्या एक लाख तक बताते हैं। कांग्रेस विधायक कवासी लखमा का कहना है कि 1.5 लाख प्रवासी होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुडूम को असंवैधानिक करार दिया था
एंटी नक्सल अभियान सलवा जुडूम साल 2005 में शुरू हुआ था और करीब 600 से अधिक गांव उस दौरान खाली कराए गए थे। विस्थापित लोगों को पुलिस स्टेशन और कैंप के पास रहने के लिए जगह दी गई थी। उस वक्त 47 ऐसे कैंप थे। सुप्रीम कोर्ट ने नक्सलियों से लड़ने के लिए आदिवासियों के संगठन सलवा जुडूम के गठन को असंवैधानिक करार दिया था।