Ayodhya Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दिया मुस्लिमों को 5 एकड़ जमीन देने का आदेश
Ayodhya Verdict: सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दिया मुस्लिमों को 5 एकड़ जमीन देने का आदेश
नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत ने बहुचर्चित अयोध्या भूमि विवाद मामले में फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या टाइटल सूट केस में अहम फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा गया था। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों की पीठ ने अयोध्या जमीन विवाद पर फैसला सुनाते हुए 2.77 एकड़ जमीन को रामलला विराजमान के हवाले कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए उचित जगह पर 5 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई जाए।
पढ़ें- Ayodhya Verdict:जानिए अयोध्या मामले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाले 5 जजों के बारे में
अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में टाइटल सूट केस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सूट 4 और सूट 5 का जिक्र किया। कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस रास्ते को अख्तियार किया जो उसके दायरे में नहीं आती थी। सुप्रीम कोर्ट में दायर टाइटल सूट नंबर 4 सुन्नी वक्फ बोर्ड से संबंधित है। वहीं टाइटल सूट नंबर 5 यह रामलला विराजमान से संबंधित है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैसला सुनाते वक्त इन दोनों सूट में संतुलन बनाना होगा। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट को विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटना तर्कसंगत नहीं है, इसलिए अपने फैसले में कोर्ट ने केस में सिर्फ दो पक्ष रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड ही अस्तित्व को रखा। कोर्ट ने कहा कि शांति और सौहार्द्र को बनाए रखने के लिए हाईकोर्ट का फैसला तर्कसंगत नहीं है।
क्यों दी गई 5 एकड़ जमीन
कोर्ट ने कहा कि सूट नंबर 5, सूट नंबर 4 पर फैसला से पहले ये सुनिश्चित करना जरूरी था कि मुस्लिमों को मस्जिद निर्माण के लिए वैकल्पिक जमीन दी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिमों को मस्जिद के लिए वैकल्पिक जमीन देना आवश्यक है। इसका कारण देते हुए कोर्ट ने कहा कि चूंकि हिंदुओं के दावे के फलस्वरूप उन्हें जमीन का अधिकार मिल रहा है, लेकिन दूसरा पक्ष मुस्लिमों का है, वह पिछले कई सालों से वहां मौजूद था। जो कि पहली बार 22/23 दिसंबर 1949 को क्षतिग्रस्त हुआ और अंत में 6 दिसंबर 1992 को नष्ट कर दिया गया। इसलिए इस पक्ष के दावे को भी ध्यान में रखना जरूरी था। मुस्लिमों के द्वारा बाबरी मस्जिद को छोड़ा नहीं गया था।
इसलिए कोर्ट संविधान की धारा 142 के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए यह सुनिश्चित करना चाहती है कि किसी के साथ गलत न हो। तब तक उनके साथ न्याय नहीं होगा, जबतक इस धर्मनिरपेक्ष देश में उन मुस्लिमों का भी ध्यान रखा जाए जिनके मस्जिद का ढांचा गिरा दिया गया। संविधान सभी धर्मों की समानता को बताता है। कोर्ट ने कहा कि सहिष्णुता और आपसी सह-अस्तित्व हमारे राष्ट्र और इसके लोगों की धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धता का पोषण करते हैं।कोर्ट ने कहा कि हम यह निर्देश देते हैं कि 5 एकड़ जमीन का अधिग्रहण सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को या तो केंद्र सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि से या उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा शहर के भीतर किया जाए।
किस कानून के तहत मिला 5 एकड़ जमीन का आदेश
आपको बता दें कि शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड को अगल से 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया। संविधान की धारा 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को किसी मामले में न्याय करने और फैसले को पूरा करने के लिए ऐसे आदेश देने का अधिकार प्राप्त है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कुछ बड़ी बातें कही हैं। कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा विचार करने योग्य है लेकिन एएसआई की रिपोर्ट को खारिज नहीं किया जा सकता। एएसआई की रिपोर्ट से पता चलता है कि खुदाई में मिला ढांचा गैर इस्लामिक था। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि एएसआई ने ये नहीं कहा है कि विवादित परिसर में मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई।