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टोक्यो ओलंपिक 2021: मुक्केबाज़ों से एक से ज़्यादा पदक की उम्मीद

अच्छी फ़ॉर्म में चल रहे भारतीय मुक्केबाज़ों से मेडल की बहुत उम्मीद है. टीम में कौन-कौन हैं? क्या ये बॉक्सर पहली बार गोल्ड हिट करेंगे? क्या हैं उनसे उम्मीदों के कारण?

By BBC News हिन्दी
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मैरी कॉम
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मैरी कॉम

भारत का मुक्केबाज़ी का इतिहास तो खासा पुराना है पर हम ओलंपिक में प्रदर्शन की बात करें तो यह बहुत चमकदार नहीं है.

विजेंदर सिंह ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक की मुक्केबाज़ी में भारत का पदकों का खाता खोला था. इसके चार साल बाद एमसी मैरी कॉम ने लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीता. इस बार भारतीय मुक्केबाज़ों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही है और माना जा रहा है कि भारत का नौ सदस्यीय दल पिछले प्रदर्शनों से कुछ बेहतर करके आएगा.

भारत के लिए ओलंपिक इतिहास में पहला मुक्केबाज़ी पदक जीतने वाले विजेंदर सिंह अब पेशेवर मुक्केबाज़ बन चुके हैं. कुछ समय पहले जब उनसे टोक्यो ओलंपिक में भारतीय मुक्केबाज़ों के प्रदर्शन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "वैसे तो मैं आजकल एमेच्योर मुक्केबाज़ी पर ज़्यादा ध्यान नहीं दे पाता हूं. पर इस बारे में मैंने जितना पढ़ा और सुना है, उससे लगता है कि इस बार एक से ज़्यादा पदक आने चाहिए. अमित पंघल जबर्दस्त फॉर्म में हैं और हमारे पास मैरी कॉम भी हैं."

विजेंदर सिंह
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विजेंदर सिंह

भारतीय मुक्केबाज़ी में बदलाव लाने वाले विजेंदर

भारतीय मुक्केबाज़ ओलंपिक खेलों में भाग लेने तो काफी समय से जाते रहे हैं. पर विजेंदर ने बीजिंग ओलंपिक में पदक जीतकर भारतीय मुक्केबाज़ी को नई राह दिखाई. इसके बाद तमाम युवाओं ने इस खेल को अपनाना शुरू कर दिया.

यह सही है कि विजेंदर के पेशेवर बनने के बाद भारतीय मुक्केबाज़ी को झटका ज़रूर लगा. पर युवाओं के आगे आने का ही परिणाम है कि पिछले कुछ सालों में भारतीय मुक्केबाज़ों ने एशियाई स्तर के अलावा विश्व चैंपियनशिप मुक़ाबलों और कॉमनवेल्थ खेलों में ख़ूब जलवा बिखेरा है.

इस बार भारत के पांच पुरुष मुक्केबाज़ों सहित कुल नौ मुक्केबाज़ों ने टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालिफाई किया है. क्वालिफाई करने वाले मुक्केबाज़ हैं- अमित पंघल, मनीष कौशिक, विकास कृष्ण, आशीष कुमार, सतीश, एमसी मैरी कॉम, सिमरनजीत कौर, लोवलीना और पूजा रानी.

बॉक्सिंग, boxing
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बॉक्सिंग, boxing

मुक्केबाज़ी संघ की उथल-पुथल में उलझ गए थे मुक्केबाज़

विजेंदर के लंदन ओलंपिक के बाद पेशेवर बनने के बाद देश में पेशेवर बनने की हवा चली इसकी वजह से 2016 के रियो ओलंपिक में भारत मजबूत दल नहीं उतार सका.

फिर भारतीय मुक्केबाज़ों को एक बहुत ही मुश्किल दौर से गुज़रना पड़ा था. इसकी वजह भारतीय मुक्केबाज़ी एसोसिएशन को अंतरराष्ट्रीय बॉक्सिंग एसोसिएशन से निलंबित किया जाना था.

निलंबन की वजह, भारतीय मुक्केबाज़ी एसोसिएशन में अध्यक्ष पद पर अभय सिंह चौटाला के 12 साल हो जाने पर भी उन्हें बनाए रखने के लिए किया गया संवैधानिक बदलाव था.

https://www.youtube.com/watch?v=3oig-bBmi-w

उन्हें भारतीय ओलंपिक संघ का अध्यक्ष बनाने के लिए संविधान में बदलाव किया गया और एसोसिएशन में चेयरमैन का नया पद बनाया गया. जिसे राजनैतिक हस्तक्षेप मानते हुए अंतरराष्ट्रीय बॉक्सिंग एसोसिएशन ने यह निलंबन किया गया था.

एक समय तो नए सिरे से चुनाव नहीं कराने पर भारतीय मुक्केबाज़ों के ओलंपिक में भाग लेने का ख़तरा बन गया था. लेकिन बाद में यह मामला किसी तरह सुलट गया.

यह मामला इतना तूल पकड़ चुका था कि इस दौरान भारतीय मुक्केबाज़ों को बिना राष्ट्रीय झंडे के भाग लेना पड़ा. ऐसी स्थिति में अपना बेस्ट देना बेहद मुश्किल काम था.

हालांकि अब इस ओलंपिक में मुक्केबाज़ों के लिए स्थितियां बेहतर हो गई हैं, इसलिए बेहतर परिणाम की उम्मीद भी की जा रही है.

मनीष कौशिक
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मनीष कौशिक

इटली में तैयारियों को अंतिम रूप

भारतीय मुक्केबाज़ी दल आजकल इटली में अपनी ओलंपिक तैयारियों को अंतिम रूप दे रहा है. असल में कोरोना महामारी की वजह से तमाम चैंपियनशिप रद्द हो गई थीं. इससे बाक़ी खेलों की तरह मुक्केबाज़ों की तैयारियों को भी झटका लगा है. इस कारण मुक्केबाज़ों को यूरोपीय मुक्केबाज़ों के साथ अभ्यास करने के लिए 15 जून को इटली भेज दिया गया था.

पहले मुक्केबाज़ों को 10 जुलाई को भारत लौटकर यहां से टोक्यो जाना था. पर टोक्यो ओलंपिक समिति ने भारत सहित दस देशों पर कोरोना के सख़्त नियम लगाए हैं, क्योंकि इन देशों में कोरोना का प्रकोप ज़्यादा रहा है. भारत से जाने वाले खिलाड़ियों को टोक्यो पहुंचने पर सख़्त क्वारंटीन में रहना पड़ेगा. इस लिहाज़ से अब मुक्केबाज़ सीधे इटली से ही टोक्यो जाएंगे.

भारत के लिए 2012 के लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली मैरी कॉम अभी तक पुणे स्थित आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट में अभ्यास कर रहीं थीं. उनका मानना है कि विदेश जाने के लिए यात्रा में समय बर्बाद करने के बजाय यहीं पर अभ्यास करना बेहतर है.

लेकिन क्वारंटीन के सख़्त नियम आने पर मैरी कॉम ने भी बाकी मुक्केबाज़ों के साथ इटली में अभ्यास करने का मन बना लिया और वह भी इटली जा रहीं हैं.

उन्होंने कहा कि लंबे समय तक सख़्त ट्रेनिंग करने के बाद क्वारंटीन में लय तोड़ने का जोखिम उठाना कतई उचित नहीं है. इस कारण मैंने भी अपनी योजना बदल दी है.

अमित पंघल, Amit Panghal
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अमित पंघल, Amit Panghal

अमित और मैरी कॉम पदक के मज़बूत दावेदार

भारतीय दल में शामिल सभी नौ मुक्केबाज़ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक बिखेरने वाले हैं. पर ओलंपिक खेलों में पोडियम पर चढ़ना कोई आसान काम नहीं है. लेकिन इस दल में शामिल अमित पंघल और एमसी मैरी कॉम को पदक जीतने का मज़बूत दावेदार माना जा सकता है.

ख़ास बात यह है कि दोनों ही फ्लाइवेट वर्ग के मुक्केबाज़ हैं. अमित का पिछले दिनों विश्व में नंबर एक मुक्केबाज़ बनना भी ओलंपिक में उन्हें बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित करेगा. वह एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने के साथ विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीत चुके हैं.

मौजूदा विश्व रैंकिंग के टॉप पांच मुक्केबाज़ों में से फ़्रांस बिलाल बेनामा और चीन के हू जियान गुआन को वह एक-एक बार हरा चुके हैं. लेकिन पांचवीं रैंकिंग के उज़्बेकिस्तान के शाख़ोबिदिन जोइरोव से हुए तीनों मुक़ाबलों में वह हारे हैं.

इसमें दुबई एशियाई चैंपियनशिप के फाइनल में 2-3 अंकों से हुई विवादास्पद हार शामिल है. अमित को ओलंपिक में नंबर एक मुक्केबाज़ के तौर पर उतरने का ड्रॉ में फ़ायदा मिलेगा और उन्हें क्वार्टर फाइनल से पहले हल्के प्रतिद्वंद्वी मिल सकते हैं. इस तरह उनकी पदक तक पहुंचने की राह थोड़ी आसान हो सकती है.

अमित पंघल की तरह ही छह बार की विश्व चैंपियन एमसी मैरीकॉम भी पदक जीतने की मजबूत दावेदार हैं. ओलंपिक खेलों में महिला मुक्केबाज़ी को 2012 के लंदन ओलंपिक से शामिल किया गया है.

यह यदि पहले से ओलंपिक का हिस्सा होती तो बहुत संभव है कि मैरी कॉम अब तक स्वर्ण पदक भी जीत चुकी होतीं. मैरी कॉम की उम्र को देखते हुए माना जा रहा है कि यह उनका आख़िरी ओलंपिक है. लिहाज़ा वह लंदन में जीते कांस्य पदक का रंग ज़रूर बदलना चाहेंगी और उनके अंदर यह करने की क्षमता भी है.

रैंकिंग के हिसाब से देखें तो उनका दावा बहुत मज़बूत नहीं दिखता है, क्योंकि उनकी अपने वर्ग में सातवीं रैंकिंग है. पर मैरी कॉम जिस जज़्बे वाली मुक्केबाज़ हैं, उनके लिए रैंकिंग के कोई ख़ास मायने नहीं हैं. वह कोरोना के मुश्किल दौर में भी मानती हैं कि तैयारियां अच्छी हुई हैं.

पूजा रानी, Pooja Rani
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पूजा रानी, Pooja Rani

पूजा रानी को भी है पोडियम पर चढ़ने का भरोसा

दो बार की एशियाई चैंपियन पूजा रानी का यह पहला ओलंपिक है और वह पहले टूर्नामेंट को ही यादगार बनाने का इरादा रखती हैं.

उन्होंने इटली के लिए रवाना होने से पहले कहा था कि "मैं ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ दूंगी, बाकी भगवान पर है. वैसे मैं अपने को पोडियम पर चढ़ते देखती हूं."

वह अपनी तैयारियों से ख़ुश हैं और उनका कहना है कि एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने से उनका विश्वास बढ़ा है. वह मज़बूत इरादों वाली हैं, यह उनके घरवालों की मर्जी के बग़ैर मुक्केबाज़ बनने से ही पता चलता है.

महिला मुक्केबाज़ी को उनके घर वाले अच्छे लोगों का खेल नहीं मानते थे. इस कारण उन्हें भिवानी स्थित हवा सिंह अकादमी में जाने की हिम्मत जुटाने में छह माह लग गए थे, क्योंकि पिता से छिपाकर यह करना था.

राष्ट्रीय यूथ चैंपियनशिप में 2009 में रजत पदक जीतने पर ही पिता को उसके मुक्केबाज़ी करने की बात पता चली पर इसके बाद से वह उसे आगे ले जाने में पूरे मददगार रहे हैं.

लोवलीना बोरगोहैन, Lovlina Borgohain
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लोवलीना बोरगोहैन, Lovlina Borgohain

बाक़ी का दावा भी कोई कमज़ोर नहीं

विकास कृष्ण, मनीष कौशिक, आशीष कुमार, सतीश कुमार, सिमरनजीत कौर और लोवलीना सभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक बिखेर चुकी हैं. इनमें से किसी के भी दावे को कम करके नहीं आंका जा सकता है.

विकास कृष्ण तो 2016 के रियो ओलंपिक में क्वार्टर फाइनल तक चुनौती पेश कर चुके हैं. इसके अलावा वह कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक भी जीत चुके हैं. वह इस बार पिछली बार की कमी की भरपाई करने का ज़रूर प्रयास करेंगे.

वहीं मनीष और सिमरनजीत तो विश्व चैंपियनशिप के कांस्य पदक विजेता हैं. ज़रूरत सिर्फ सही ड्रॉ मिलने और सही समय में किस्मत के साथ देने की है.

ऐसा कुछ हुआ तो इतना ज़रूर है कि भारतीय दल अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके लौटेगा.

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Tokyo Olympics 2021 expectations of medal from Boxers
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