बाघिन अवनी को कोर्ट के आदेश पर ही मारा गया, वन अधिकारियों पर नहीं होगी कार्रवाई- सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली: महाराष्ट्र के वन अधिकारियों को अवनी नाम की बाघिन को मारने से संबंधित केस में बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ कार्रवाई करने से इनकार कर दिया है और सुप्रीम कोर्ट ने ये माना कि बाघिन अवनी को कोर्ट के आदेश पर ही मारा गया। जिसके बाद पशुओं के अधिकारों की पैरवी करने सामाजिक कार्यकर्ता ने महाराष्ट्र के वन अधिकारियों के खिलाफ 2018 में बाघिन को मारने संबंधी अवमानना याचिका वापस ले ली है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में वन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने से इनकार करते हुए कहा कि "मानव-भक्षक" होने के कारण उस अवनी नामक बाघिन को मारा गया था।
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बाघिन
अवनी
को
कोर्ट
के
आदेश
पर
ही
मारा
गया
महाराष्ट्र
के
यवतमाल
जिले
में
वन
अधिकारियों
की
एक
टीम
और
असगर
अली
नामक
एक
नागरिक
शिकारी
द्वारा
खूंखार
बाघिन
की
हत्या
को
अंजाम
दियाथा।
याचिकाकर्ता
एक्टिवस्ट
संगीता
डोगरा
ने
सुप्रीम
कोर्ट
का
दरवाजा
खटखटाया
था
ताकि
बाघिन
की
हत्या
से
जुड़े
लोगों
के
खिलाफ
अवमानना
कार्रवाई
की
जा
सके।
डोगरा
ने
आरोप
लगाया
था
कि
वन
विभाग
के
अधिकारियों
ने
शिकार
के
बाद
एक
कार्यक्रम
आयोजित
किया
था,
जिसमें
बाघिन
की
चांदी
की
मूर्ति
असगर
अली
को
सौंपी
गई
थी
जिसे
ग्रामीणों
के
हाथों
दिया
गया
था।
याचिका
ने
ये
आरोप
लगाया
था
कि
ट्राफी
के
लालच
में
उसने
बाघिन
को
मारा
था।
वहीं शुक्रवार को महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा शीर्ष अदालत को बताया गया कि बाघिन की हत्या अदालत के आदेश के अनुसार की गई और वन अधिकारियों ने किसी भी कार्यक्रम में भाग नहीं लिया। अदालत ने बताया, "वन अधिकारियों में से किसी ने भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस उत्सव में भाग नहीं लिया। जांच रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि करती है। अधिकारियों ने कहा कोर्ट के आदेश का पालन किया गया।"
ग्रामीणों ने उत्सव मनाया तो वन अधिकारी कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं?
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने तब याचिकाकर्ता से पूछा " बाघिन को मारने के बाद ये उत्सव ग्रामीणों ने मनाया क्योंकि उन्हें राहत मिली क्योंकि बाघ हमला नहीं करेगा। उन्होंने पूछा इसके लिए वन अधिकारी कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं?"डोगरा ने जवाब दिया कि "बाघिन को गोली मारने वाला व्यक्ति जश्न का हिस्सा था। हालांकि जांच के दौरान समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई थी ... उत्सव क्यों मनाया गया?" उन्होंने ये हाइलाइट किया कि अधिकारियों को उत्सव पर कोई आपत्ति नहीं थी"।
कोर्ट ने पूछा- कैसे दिखाता है कि कोई जानवर आदमखोर है या नहीं?"
याचिकाकर्ता ने पहले पोस्ट मॉर्टम और डीएनए रिपोर्ट का हवाला देते हुए तर्क दिया था कि T1 यानी अवनी नामक बाघिन एक आदमखोर नहीं थी, जिसके बाद अदालत इस मामले की जांच करने के लिए सहमत हुई। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने पिछली सुनवाई में पूछा था "कोई पोस्टमार्टम कैसे दिखाता है कि कोई जानवर आदमखोर है या नहीं?" मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने पिछली सुनवाई में पूछा था। डोगरा ने जवाब दिया कि एक आदमखोर के आंत में छह महीने तक नाखून और बाल होंगे लेकिन इस बाघिन का पेट खाली था।
समीक्षा कर सकते हैं कि वह एक आदमखोर नहीं था
आज सुबह डोगरा से मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि आपने हमें नहीं बताया। यदि उस मुकदमे को मारने का निर्णय शीर्ष अदालत ने पहले के मुकदमे में पुष्टि की थी, तो हम इसको (मामले को) फिर से खोलने नहीं जा रहे हैं। ''हम इस फैसले की समीक्षा कर सकते हैं कि वह एक आदमखोर नहीं था। डोगरा ने अदालत को बताया कि यह एक "गंभीर मुद्दा" था। मुख्य न्यायाधीश ने पूछा "हाँ, यह (ए) बहुत गंभीर मुद्दा है ... हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते। क्या आप इसे (याचिका) वापस ले लेंगे या हमें इसे खारिज कर देना चाहिए?" जिसके बाद डोगरा ने जवाब दिया कि वह याचिका वापस ले रही है।