उत्तर प्रदेश में प्रवासी मजदूरों की वजह से नहीं बढ़े मामले, रिपोर्ट में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
नई दिल्ली: लॉकडाउन के तीसरे चरण में प्रवासी श्रमिकों के घर लौटने का सिलसिला शुरू हुआ। सरकार ने उनके लिए श्रमिक ट्रेनों का संचालन किया, जिससे लाखों मजदूर उत्तर प्रदेश, बिहार समेत अन्य राज्यों में लौटे थे। इस बीच कोरोना के मामले भी तेजी से बढ़े, ऐसे में माना जा रहा था कि प्रवासी श्रमिकों की वजह से ही मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन अब सरकारी रिपोर्ट ने इस बात को गलत साबित कर दिया है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां पर स्वास्थ्य विभाग ने जितने सैंपल लिए थे, उसमें से सिर्फ तीन प्रतिशत मजदूर ही पॉजिटिव आए हैं।
2404 प्रवासी मिले पॉजिटिव
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक उत्तर प्रदेश में 11.68 लाख प्रवासियों की वापसी हुई है, जो प्रशासन के सर्विलांस में हैं। इसके बाद 74,237 मजदूरों की जांच करवाई गई, जिसमें सिर्फ 2404 लोग पॉजिटिव पाए गए हैं। ऐसे में देखें तो सिर्फ 3.2 प्रतिशत प्रवासी ही पॉजिटिव निकले हैं। वहीं पिछले 10 दिनों में परीक्षण किए गए कुल नमूनों का औसत 3 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश में प्रवासियों के पॉजिटिव आने की दर देश की दर से 2 प्रतिशत कम है, जबकि महाराष्ट्र में ये दर 15 प्रतिशत, गुजरात में 8 और दिल्ली में 9 प्रतिशत है।
तीन लाख से ज्यादा लोगों की जांच
प्रवासियों के आने के बाद उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में संक्रमण फैला, लेकिन उनमें से ज्यादा को भर्ती करने की जरूरत नहीं थी। जिस वजह से स्वास्थ्य सेवाओं पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ा। वहीं उत्तर प्रदेश में अब तक 3,07,621 सैंपल टेस्ट किए गए हैं, इसमें में 24 प्रतिशत टेस्ट प्रवासियों के हुए हैं। राज्य में अभी तक 8729 लोग पॉजिटिव मिले हैं, जिसमें से 27.5 प्रतिशत प्रवासी श्रमिक हैं।
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क्या कहते हैं जानकार?
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के. श्रीनाथ रेड्डी के मुताबिक प्रवासियों में जोखिम दर बहुत ही कम थी। वो शुरू से कहते आ रहे हैं कि प्रवासियों से कोई खतरा नहीं है। लॉकडाउन की शुरुआत में उन्हें वापस भेजे जाने में मदद की जानी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि मूल रूप से वायरस लाने वाले लोग विदेशी यात्री हैं। रेड्डी के मुताबिक प्रवासी श्रमिक आमतौर पर निर्माण कार्य या फैक्ट्री जैसी जगहों पर काम करते हैं। जिस वजह से 25 मार्च तक उनके संक्रमित होने का खतरा बहुत ही कम था। अगर उसी वक्त उनको घर भेजा गया होता तो आज ये समस्या नहीं होती, लेकिन उन्हें आठ हफ्तों तक शहरी इलाकों के हॉटस्पॉट में रखा गया। जिस वजह से वो संक्रमित हुए। रेड्डी ने इस बात पर भी जोर दिया कि भले ही प्रवासियों में संक्रमण कम हो, लेकिन उन्हें क्वारंटाइन करने की जरूरत है, क्योंकि ज्यादातर लोगों में कोरोना के लक्षण नहीं दिख रहे।