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देश के तीन राज्यों पर मंडरा रहा है आर्थिक संकट

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बेंगलुरु। पूरे देश में इस वक्त लोकसभा चुनावों की लहर चल रही है। नेता सकारात्मक परिवर्तन के वादे कर रहे हैं, और जनता इस मंथन में फंसी है कि किसके हाथ में देश का भविष्‍य सौंपे। खैर राजनीतिक गलियारों से बाहर निकल कर देखें तो हवा में बहुत अधिक प्रदूषण है और इसी के चलते देश के तीन राज्यों पर आर्थिक संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वो राज्य हैं छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड। इस का सबसे बड़ा कारण है इन राज्यों में कोयले की खादानों का होना। और तो और कोलया सेक्टर में संपत्तियों के फंस जाने के जोखिम को लेकर चिंताओं से घिरी सरकार, शायद बड़ी तस्‍वीर नहीं देख पा रही है।

coal production

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) और ओवरसीज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (ओडीआई) के द्वारा किये गये स्वतंत्र अध्ययन में पाया गया है कि आने वाली सरकार को इन तीन राज्यों की आर्थिक स्थिति पर ज्यादा फोकस करना होगा।

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमण्डल ने कोल लिंकेज में सुधार के लिये नये कदमों की घोषणा की थी और पीपीए का भुगतान न होने की स्थिति में बिजली उत्पादकों के साथ अधिक रियायत बरतने का एलान भी किया। इस फैसले से कुछ समय की राहत तो मिलेगी, लेकिन लंबे समय में इसके खराब परिणाम हो सकते हैं। क्योंकि इससे आगे चलकर कामगारों का जीवन संकट में पड़ सकता है। अगर कोयले की लागतों पर दबाव इसी तरह जारी रहा तो छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखण्ड जैसे राज्‍यों, जहां भारी मात्रा में कोयला उत्पादन होता है, पर आर्थिक संकट आ सकता है।

बिजली उत्पादन में कोयले का योगदान

असल में देश में पैदा होने वाली बिजली का 70 प्रतिशत भाग कोयला आधारित थर्मल प्लांट से आता है। और इस वक्त, चर्चाओं में सारा जोर देश की कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षमता के उस 21 प्रतिशत हिस्से की समस्या का समाधान करने पर है जो दबाव के दौर से गुजर रहा है और दीवालिया होने की कगार पर खड़ा है। केंद्रीय मंत्रिमण्डल ने हाल में कोल लिंकेज में सुधार के लिये नये कदमों की घोषणा की थी और पीपीए का भुगतान न होने की स्थिति में बिजली उत्पादकों के साथ अधिक रियायत बरतने का एलान भी किया है। आगे आने वाले कुछ सालों में कोयले की बढ़ती लागत में और इजाफा हो सकता है।

आईआईएसडी की रिपोर्ट के अनुसार कोयले की लागत तो एक बड़ा फैक्‍टर है ही, लेकिन बिजली उत्पादन में भारी मात्रा में पानी भी लगता है और भारत का भूजल स्‍तर पहले ही गिरावट की ओर अग्रसर है। और तो और कम कीमत वाली अक्षय ऊर्जा ने प्रतिस्‍पर्धा को बढ़ा दिया है, जिस वजह थर्मल प्लांट का भविष्‍य खतरे में है। और इसका सीधा असर देश के तीन राज्यों पर हो सकता है।

आईआईएसडी के इस अध्‍ययन पर काम करने वाले बालसुब्रमण्यम विश्वनाथन का कहना है कि कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्रों की वित्तीय देनदारी बढ़ने की आशंका है, क्योंकि वायु प्रदूषण सम्बन्धी नियमन, पानी की किल्लत से जुड़ी चिंताएं तथा अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र से मिलने वाली प्रतिस्पर्द्धा अब तेजी से बढ़ते मुद्दे बन गये हैं। यह सही वक्त है कि देश के नीति निर्धारक लोग कोयले को छोड़कर उसके विकल्पों की तरफ ध्यान दें।'

वहीं अंतर्राष्ट्रीय विकास और मानवीय मुद्दों पर काम करने वाला ब्रिटेन का प्रमुख स्वतंत्र थिंक टैंक ओवरसीज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (ओडीआई) के आपरेशंस एवं पार्टनरशिप प्रबन्धक लियो रॉबट्र्स का कहना है कि अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में विकास होने से बड़ी संख्या में रोजगार के नये अवसर पैदा होंगे। लेकिन अगर भविष्य में कोयले से बिजली बनाने वाले संयंत्र भी जोखिम से घिरे हैं। ऐसे में नीति निर्धारकों को उन प्रतिपूरक नीतियों और संवाद के बारे में अब सोचना शुरू करना होगा, जो प्रभावित कामगारों को बेहतर भविष्‍य सुनिश्चित कराये और इस वजह से उनके रोजगार पर पड़ने वाले असर की क्षतिपूर्ति भी के लिये जरूरी कदम भी उठाये।

आने वाली सरकार के समक्ष चुनौतियां

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद आने वाली सरकार के समक्ष इन तीन राज्यों को लेकर बड़ी चुनौतियां होंगी। किसी भी हालत में केंद्र सरकार को एक बड़ा प्लान जनता के समक्ष रखना होगा, ताकि इन राज्यों में रहने वाले करीब 10 करोड़ लोगों का जीवन अंधकार में न जाये। और तो और अगर कोयला आधारित बिजली संयंत्र बंद होते हैं, तो सरकार को अक्षय ऊर्जा के विकल्पों को बढ़ावा देना होगा, अन्यथा हर गांव में बिजली पहुंचाने का सपना कभी पूरा नहीं होगा।

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English summary
Three Indian states could face an economic crisis in the near future. The names are Chhattisgarh, Jharkhand and Odisha. The main reason is the economy of these three states is highly dependent on coal production.
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