वो 8 महिलाएं, जिनके क़रीब रहे महात्मा गांधी
30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि है. जानिए उन महिलाओं के बारे में, जिन्होंने गांधी की ज़िंदगी में अहम भूमिका अदा की.
आपने महात्मा गांधी की तस्वीरों पर ग़ौर किया है? ज़्यादातर तस्वीरों में गांधी के क़रीब काफी लोगों की भीड़ दिखाई देती है.
इस भीड़ में कुछ नाम ऐसे लोगों के रहे, जिन्हें भारत का लगभग हर नागरिक जानता है. मसलन जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल या कस्तूरबा गांधी.
लेकिन गांधी के क़रीब रही इसी भीड़ में कुछ लोग ऐसे भी रहे, जिनके बारे में शायद कम ही लोग जानते हों.
हम आपको यहां कुछ ऐसी ही महिलाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जो मोहनदास करमचंद गांधी के विचारों की वजह से उनके बेहद क़रीब रहीं.
इन महिलाओं की ज़िंदगी में गांधी का गहरा असर रहा और जिस रास्ते पर महात्मा ने चलना शुरू किया था, ये महिलाएं उसी रास्ते पर चलते हुए अपनी-अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ीं.
1. मेडेलीन स्लेड उर्फ मीराबेन, 1892-1982
मेडेलीन ब्रिटिश एडमिरल सर एडमंड स्लेड की बेटी थीं. एक ओहदेदार ब्रिटिश अफसर की बेटी होने के चलते उनकी ज़िंदगी अनुशासन में गुज़री.
मेडेलीन जर्मन पियानिस्ट और संगीतकार बीथोवेन की दीवानी थीं. इसी वजह से वो लेखक और फ़्रांसीसी बुद्धिजीवी रोमैन रौलेंड के संपर्क में आईं.
ये वही रोमैन रौलेंड थे, जिन्होंने न सिर्फ संगीतकारों पर लिखा बल्कि महात्मा गांधी की बायोग्राफी भी लिखी.
गांधी पर लिखी रोमैन की बायोग्राफी ने मेडेलीन को काफी प्रभावित किया. गांधी का प्रभाव मेडेलीन पर इस कदर रहा कि उन्होंने ज़िंदगी को लेकर गांधी के बताए रास्तों पर चलने की ठान ली.
गांधी के बारे में पढ़कर रोमांचित हुई मेडेलीन उन्हें ख़त लिखकर अपने अनुभव साझा किए और आश्रम आने की इच्छा ज़ाहिर की.
शराब छोड़ने, खेती सीखना शुरू करने से लेकर शाकाहारी बनने तक. मेडेलीन ने गांधी का अख़बार यंग इंडिया भी पढ़ना शुरू किया. अक्टूबर 1925 में वो मुंबई के रास्ते अहमदाबाद पहुंचीं.
गांधी से अपनी पहली मुलाकात को मेडेलीन ने कुछ यूं बयां किया, 'जब मैं वहां दाखिल हुई तो सामने से एक दुबला शख्स सफेद गद्दी से उठकर मेरी तरफ बढ़ रहा था. मैं जानती थी कि ये शख्स बापू थे. मैं हर्ष और श्रद्धा से भर गई थी. मुझे बस सामने एक दिव्य रौशनी दिखाई दे रही थी. मैं बापू के पैरों में झुककर बैठ जाती हूं. बापू मुझे उठाते हैं और कहते हैं- तुम मेरी बेटी हो.'
मेडेलिन और महात्मा के बीच इस दिन से एक अलग रिश्ता बन गया. बाद में मेडेलिन का नाम मीराबेन पड़ गया.
2. निला क्रैम कुक, 1972-1945
आश्रम में लोग निला नागिनी कहकर पुकारते. खुद को कृष्ण की गोपी मानने वाली निला माउंटआबू में एक स्वामी (धार्मिक गुरु) के साथ रहती थीं.
अमरीका में जन्मी निला को मैसूर के राजकुमार से इश्क हुआ.
निला ने साल 1932 में गांधी को बंगलुरु से खत लिखा था. इस खत में उन्होंने छुआछुत के ख़िलाफ किए जा रहे कामों के बारे में गांधी को बताया. दोनों के बीच खतों का सिलसिला यहां से शुरू हुआ.
अगले बरस फरवरी 1933 में निला की मुलाकात यरवडा जेल में महात्मा गांधी से हुई. गांधी निला को साबरमती आश्रम भेजते हैं, जहां कुछ वक्त बाद ही वो नए सदस्यों से खास जुड़ाव महसूस करने लगी थीं.
उदार ख्यालों वाली निला के लिए आश्रम जैसे एकांत माहौल में फिट होना मुश्किल भरा रहा. ऐसे में वो एक दिन आश्रम से भाग गईं. बाद में वो एक रोज़ वृंदावन में मिलीं थीं.
कुछ वक्त बाद उन्हें अमरीका भेज दिया गया, जहां उन्होंने इस्लाम कबूल लिया और कुरान का अनुवाद किया.
3. सरला देवी चौधरानी (1872-1945)
उच्च शिक्षा, सौम्य सी नज़र आने वाली सरला देवी की भाषाओं, संगीत और लेखन में गहरी रुचि थी. सरला रविंद्रनाथ टैगोर की भतीजी भी थीं.
लाहौर में गांधी सरला के घर पर ही रुके थे. ये वो दौर था, जब सरला के स्वतंत्रता सेनानी पति रामभुज दत्त चौधरी जेल में थे. दोनों एक-दूजे के काफी क़रीब रहे.
इस करीबी को समझने का एक अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि गांधी सरला को अपनी 'आध्यात्मिक पत्नी' बताते थे. बाद के दिनों में गांधी ने ये भी माना कि इस रिश्ते की वजह से उनकी शादी टूटते-टूटते बची.
गांधी और सरला ने खादी के प्रचार के लिए भारत का दौरा किया. दोनों के रिश्ते की ख़बर गांधी के करीबियों को भी रही. हक जमाने की सरला की आदत के चलते गांधी ने जल्द उनसे दूरी बना ली.
कुछ वक्त बाद हिमालय में एकांतवास के दौरान सरला की मौत हो गई.
4. सरोजिनी नायडू (1879-1949)
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष सरोजनी नायडू.
गांधी की गिरफ्तारी के बाद नमक सत्याग्रह की अगुवाई सरोजिनी के कंधों पर थी. सरोजिनी और गांधी की पहली मुलाकात लंदन में हुई थी.
इस मुलाकात के बारे में सरोजिनी ने कुछ यूं बताया था, ''एक छोटे कद का आदमी, जिसके सिर पर बाल नहीं थे. ज़मीन पर कंबल ओढ़े ये आदमी जैतून तेल से सने हुए टमाटर खा रहा था. दुनिया के मशहूर नेता को यूं देखकर मैं खुशी से हंसने लगी. तभी वो अपनी आंख उठाकर मुझसे पूछते हैं, 'आप ज़रूर मिसेज़ नायडू होंगी. इतना श्रद्धाहीन और कौन हो सकता है? आइए मेरे साथ खाना शेयर कीजिए.''
जवाब में सरोजिनी शुक्रिया अदा करके कहती हैं, क्या बेकार तरीका है ये?
और इस तरह सरोजिनी और गांधी के रिश्ते की शुरुआत हो गई थी.
5. राजकुमारी अमृत कौर (1889-1964)
शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाली राजकुमारी पंजाब के कपूरथला के राजा सर हरनाम सिंह की बेटी थीं.
राजकुमारी अमृत कौर की पढ़ाई इंग्लैंड में हुई थी. राजकुमारी अमृत कौर को गांधी की सबसे क़रीबी सत्याग्रहियों में गिना जाता था. बदले में सम्मान और जुड़ाव रखने वाली राजकुमारी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी.
1934 में हुई पहली मुलाकात के बाद गांधी और राजकुमारी अमृत कौर ने एक-दूसरे को सैकड़ों खत भेजे. नमक सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वो जेल भी गईं.
आज़ाद भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री बनने का सौभाग्य भी राजकुमारी अमृत कौर को मिला.
गांधी राजकुमारी अमृत कौर को लिखे खत की शुरुआत 'मेरी प्यारी पागल और बागी' लिखकर करते और खत के आखिर में खुद को 'तानाशाह' लिखते.
6. डॉ सुशीला नय्यर (1914-2001)
सुशीला प्यारेलाल की बहन थीं. महादेव देसाई के बाद गांधी के सचिव बने प्यारेलाल पंजाबी परिवार से थे.
मां के तमाम विरोध के बाद ये दोनों भाई-बहन गांधी के पास आने से खुद को नहीं रोक पाए थे. हालांकि बाद में गांधी के पास जाने से रोने वाली उनकी मां भी महात्मा की पक्की समर्थक बनीं.
डॉक्टरी की पढ़ाई करने के बाद सुशीला महात्मा गांधी की निजी डॉक्टर बनीं. मनु और आभा के अलावा अक्सर गांधी जिसके कंधे पर अपने बूढ़े हाथ रखकर सहारा लेते, उनमें सुशीला भी शामिल थीं.
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वो कस्तूरबा गांधी के साथ मुंबई में गिरफ्तार भी गईं.
पूना में कस्तूरबा गांधी के आखिरी दिनों में सुशीला उनके साथ रही थीं. इसके अलावा सुशीला गांधी के ब्रह्मचर्य पर किए प्रयोगों में भी शामिल हुई थीं.
7. आभा गांधी (1927-1995)
आभा जन्म से बंगाली थीं. आभा की शादी गांधी के परपोते कनु गांधी से हुई.
गांधी की प्रार्थना सभाओं में आभा भजन गाती थीं और कनु फोटोग्राफी करते थे. 1940 के दौर की महात्मा गांधी की काफी तस्वीरें कनु की ही खीची हुई हैं.
आभा नोआखाली में गांधी के साथ रहीं. ये वो दौर था, जब पूरे मुल्क में दंगे भड़क रहे थे और गांधी हिंदू-मुस्लिम के बीच शांति स्थापित करने की कोशिश में जुटे हुए थे.
नाथूराम गोडसे ने जब गांधी को गोली मारी, तब वहां आभा भी मौजूद थीं.
8. मनु गांधी ( 1928-1969)
बहुत हल्की उम्र में मनु महात्मा गांधी के पास चली आई थीं.
मनु महात्मा गांधी की दूर की रिश्तेदार थीं. गांधी मनु को अपनी पोती कहते थे.
नोआखाली के दिनों में आभा के अलावा ये मनु ही थीं, जो अपने बापू के बू़ढ़े शरीर को कांधा देकर चलती थीं.
जिन रास्तों में महात्मा गांधी के कुछ विरोधियों ने मल-मूत्र डाल दिया था, इन रास्तों पर झाड़ू उठाने वालों में गांधी के अलावा मनु और आभी ही थीं.
कस्तूरबा के आखिरी दिनों में सेवा करने वालों में मनु का नाम भी सबसे ऊपर आता है.
मनु की डायरी पर गौर करें तो उससे ये जानने में काफी मदद मिलती है कि महात्मा गांधी के आखिरी के कुछ साल कैसे बीते थे.
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