किडनी दान करने के लिए इस महिला को लड़ना पड़ा केस
"हमारे हिंदू धर्म में ये मान्यता है कि अगर आपका पूरा शरीर पंचतत्व में विलीन न हो तो आप स्वर्ग नहीं जा सकते, लेकिन ऐसे स्वर्ग का क्या करना जिसकी वजह से आप ज़िंदा रहते हुए किसी आदमी को एक नई ज़िंदगी न दे सकें. किसी के चेहरे पर मुस्कान न ला सकें और किसी के बच्चों को अनाथ होने से न बचा सकें. ऐसे स्वर्ग का क्या फ़ायदा है?"
"हमारे हिंदू धर्म में ये मान्यता है कि अगर आपका पूरा शरीर पंचतत्व में विलीन न हो तो आप स्वर्ग नहीं जा सकते, लेकिन ऐसे स्वर्ग का क्या करना जिसकी वजह से आप ज़िंदा रहते हुए किसी आदमी को एक नई ज़िंदगी न दे सकें. किसी के चेहरे पर मुस्कान न ला सकें और किसी के बच्चों को अनाथ होने से न बचा सकें. ऐसे स्वर्ग का क्या फ़ायदा है?"
ये शब्द हैं वर्षा शर्मा के जो बीते एक साल से अपने परिवार, समाज और सरकारी तंत्र से बस एक बात को लेकर संघर्ष कर रही हैं कि उन्हें अपने दोस्त को किडनी दान करने का अधिकार दिया जाए.
इस प्रक्रिया में वर्षा शर्मा को अस्पतालों से लेकर सरकारी दफ़्तरों और अदालतों तक के चक्कर काटने पड़े.
'खुद से लड़ी पहली लड़ाई'
पेशे से टूरिस्ट गाइड 49 साल की वर्षा शर्मा के लिए ये लड़ाई शुरू से ही आसान नहीं थी. उन्हें सबसे पहले ख़ुद से संघर्ष करना पड़ा.
एक साल पहले तक उनका वज़न 76 किलोग्राम था और किडनी ट्रांसप्लांट किए जाने की पहली शर्त ये थी कि वह अपना वज़न 62 किलोग्राम तक लेकर आएं.
वर्षा शर्मा अपने इस संघर्ष की कहानी बयां करते हुए बीबीसी से कहती हैं, "मुझे गोलगप्पे, मिठाई, आइसक्रीम और छोले भटूरे जैसा चटपटा खाना बहुत पसंद है. मेरा वज़न 76 किलोग्राम था और किडनी दान करने के लिए मुझे अपना वज़न 62 किलोग्राम तक लाना था. ऐसे में मुझे इन सारी चीज़ों को छोड़ना पड़ा जो कि मेरे लिए बहुत ख़ास थीं. लेकिन मैंने बहुत मेहनत करने के बाद अपना वज़न 64 किलोग्राम तक घटा लिया."
परिवार और सरकारी तंत्र से संघर्ष
शारीरिक रूप से खुद को किडनी देने लायक बनाने के बाद वर्षा शर्मा के लिए अगली चुनौती ये थी कि वह अंग प्रत्यर्पण के लिए सभी नियमों का पालन करें.
अपने दोस्त कर्नल पंकज भार्गव को किडनी दान करने की प्रक्रिया में ये पड़ाव बेहद अहम रहा.
दरअसल, अंग प्रत्यर्पण के लिए अंगदान करने वाले व्यक्ति को अपने परिवार से सहमति लेनी अनिवार्य है.
वर्षा को अपनी बहन की सहमति लेने के लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ा जिसके चलते उन्हें अदालत के चक्कर भी काटने पड़े.
इसी दौरान स्वयं अंग दान करने की प्रक्रिया से गुज़र चुके समाजसेवी अनिल श्रीवास्तव इस मामले में वर्षा की मदद करने के लिए आगे आए.
अनिल श्रीवास्तव बताते हैं, "जब वर्षा मेडिकल तौर पर पूरी तरह फिट थीं और उन्हें सरकारी डॉक्टरों की कमेटी के पास जाना था. लेकिन इससे पहले ही कर्नाटक के स्वास्थ्य विभाग द्वारा वर्षा के मामले से जुड़ी एक चिट्ठी सभी अस्पतालों को दी गई कि प्रत्यर्पण के इस मामले को हाथ न लगाया जाए. जब मुझे इस बारे में पता चला तब मैं आगे आया क्योंकि मैं इसी चलन के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहा हूं कि अगर लोग इंसानियत दिखाना चाहते हैं तब सरकारी तंत्र क्यों हस्तक्षेप करता है."
कर्नाटक सरकार की ओर से जारी की गई चिट्ठी में कहा गया था कि किडनी दान करने वाली वर्षा शर्मा आर्थिक रूप से अपनी बहन पर आश्रित हैं और वर्षा की बहन से इस बारे में कोई सलाह-मशविरा नहीं किया गया है जो कि इसके ख़िलाफ़ हैं.
इस चिट्ठी के सामने आने के बाद वर्षा शर्मा अपने मामले को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट में गईं.
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कर्नाटक हाईकोर्ट में उनका केस लड़ने वाली वकील अनु चिंगप्पा ने बीबीसी को इस मामले के बारे में बताया, "इस मामले में एपेलेट अथॉरिटी, जिसे इस मामले में कोई ज्युरिसडिक्शन नहीं है, ने एक सर्कुलर जारी किया कि कोई भी ऑथराइज़्ड कमेटी इस मामले को अपने हाथ में नहीं ले सकती है."
"सही प्रक्रिया ये है कि अगर उन्हें कोई आपत्ति थी तो उन्हें ऑथराइजेशन कमेटी के समक्ष लिखित में ये आपत्ति दर्ज करानी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने अपने स्तर पर ये सर्कुलर जारी कर दिया. इस वजह से वर्षा शर्मा का आवेदन खटाई में पड़ गया. इसी समय किडनी लेने वाले कर्नल पंकज भार्गव की हालत बिगड़ रही थी. ऐसी स्थिति में हमने कर्नाटक हाईकोर्ट में रिट दाखिल की और बताया कि इस मामले में सही प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ है."
दरअसल किडनी ट्रांसप्लाट के मामलों में एपेलेट अथॉरिटी का काम ये सुनिश्चित करना होता है कि अंग प्रत्यर्पण करने वाले अस्पताल ठीक ढंग से और नियमों के अनुरूप काम करें. वहीं, ऑथराइज़्ड कमेटी का काम ये होता है कि वह अंग दान करने और प्राप्त करने की प्रक्रिया में नियमों के पालन को सुनिश्चित करें.
वकील अनु चिंगप्पा आगे बताती हैं, "जब ये मामला कोर्ट में पहुंचा तो ऑथराइजेशन कमेटी की प्रतिनिधि ने कहा कि हम आवेदन मिलते ही 24 घंटे के अंदर फ़ैसला दे देंगे. कोर्ट की समर वेकेशन बैंच ने मामले की गंभीरता को समझते हुए 10 मई को शाम साढ़े आठ बजे ही अपने ऑर्डर की कॉपी जारी कर दी. इसके अगले दिन ही हमने आवेदन की औपचारिकताओं को पूरा कर दिया."
अनु बताती हैं, "इसके बाद जून का महीना भी बीत गया और ऑथराइजेशन कमेटी किसी न किसी तरह इस मामले को टालती रही. फिर ऑथराइजेशन कमेटी के चार सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो गया और 20 जून को कमेटी भंग हो गई. इसके बाद हमें कहा गया कि नई कमेटी बनने के बाद ही मामला आगे बढ़ेगा."
"इसके बाद हम 19 जुलाई को दोबारा हाई कोर्ट गए और जज साहब ने इसे गंभीरता से लिया और कहा कि ये किसी की ज़िंदगी और मौत का सवाल है, आप आज रात ही पुराने सदस्यों को लेकर कमेटी की बैठक कीजिए और इस पर फ़ैसला कीजिए. इसके बाद कमेटी ने इस मामले में अपनी सहमति जताई और 27 जुलाई को आख़िरकार किडनी ट्रांसप्लांट की गई"
'किसी और दुनिया की हैं मेरी बहन वर्षा'
बीते कई महीनों से डायलिसिस पर रहने वाले पंकज भार्गव के लिए वर्षा शर्मा की जीत एक नई ज़िंदगी की किरण लेकर आई.
कर्नल पंकज भार्गव बीबीसी को बताते हैं, "आज के समाज में मेरी बहन वर्षा ने जो काम किया है वो काम इस दुनिया में कोई और कर ही नहीं सकता. किडनी दान करना एक बहुत बड़ी चीज है. मैं बीते कई महीनों से अस्पताल में पड़ा हुआ था. शरीर में बेहद कमज़ोरी थी. एक बार तो मैं चलते-चलते गिर पड़ा. इसके बाद न जाने कहां से अचानक से वो सामने आ गई और उसने कहा कि वो किडनी देना चाहती है. ये भगवान की देन थी."
सर्जरी के बाद वर्षा को तो अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है मगर पंकज भार्गव को अभी कुछ दिन और डॉक्टरों की देखरेख में रहना होगा.
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