वाराणसी : इस बार मोदी का मुकाबला अपने आप से है
नई दिल्ली। कहते हैं बाबा विश्नाथ की नगरी में लोग आते तो हैं अपनी मर्ज़ी से लेकिन जाते है भोलेनाथ की मर्ज़ी से। काशी को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि भोलेनाथ के त्रिशूल पर टिका शहर है वाराणसी और इसबार के चुनाव में पूरे देश की नजर टिकी है वाराणसी पर। गाँधी की धरती के एक "फ़कीर" को मां गंगा ने बुलाया और वह बाबा की भक्ति में ऐसा रमा की बनारस का ही हो गया। जी हाँ, यहाँ बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हो रही है। लोकतंत्र महापर्व का अंतिम पड़ाव 19 मई को है और इसके साथ ही पूरे देश या कहें कि पूरी दुनिया की नज़र वाराणसी पर है। नतीजे 23 को आएंगे लेकिन वाराणसी का नतीजा सब को पहले से ही पता है। बाबा विश्वनाथ नरेन्द्र मोदी को वाराणसी से इतनी जल्दी नहीं जाने देंगे।
देश की सबसे हाई प्रोफाइल वाराणसी लोकसभा सीट पर मोदी के मुकाबले कोई नहीं
इस बार देश की सबसे हाई प्रोफाइल वाराणसी लोकसभा सीट पर मोदी के मुकाबले कोई नहीं है। नरेन्द्र मोदी दरअसल अपनेआप से मुकाबला कर रहे। बहस इस बात पर नहीं कि मोदी कितने मतों से जीतेंगे बल्कि इस बात पर है कि पिछले चुनाव के मुकाबले कितने अधिक मतों से जीतेंगे। मोदी वाराणसी से जरूर जीतेंगे। जीत का अंतर पिछली जीत से बड़ा या छोटा हो सकता लेकिन बड़ा सवाल है कि जीत क्या 2014 की तरह होगी। पिछले चुनाव में वाराणसी से नरेन्द्र मोदी की जीत का मतलब था आज़मगढ़ छोड़कर पूर्वांचल के सारे गढ़ फतह। क्या मोदी इस बार 2014 के प्रदर्शन को दोहरा सकेंगे। 2019 का लोकसभा चुनाव ज्यादा कठिन है। इसबार के चुनाव का एकमात्र मुद्दा है मोदी का समर्थन या मोदी का विरोध। ऐसे में जीत का अंतर गौड़ हो गया है।
पूर्वांचल सभी 13 सीटों पर जीत का रिकार्ड बरकरार रखना कठिन
वाराणसी को पूर्वांचल का गेटवे कहा जाता है। चुनाव के सातवें और अंतिम चरण में वाराणसी समेत पूर्वांचल की 13 सीटों पर मतदान होना है। ये सीटें हैं- महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर, रॉबर्ट्सगंज। ख़ास बात यह कि 2014 में इन सभी सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई थी और इसका श्रेय नरेन्द्र मोदी को दिया गया। 2019 में एक बड़ी चुनौती इस रिकार्ड को बरकरार रखने की है। वाराणसी में निसंदेह नरेन्द्र मोदी के मुकाबले कोई नहीं है और हो सकता है उन्हें पिछली बार की तुलना में कहीं अधिक बड़ी जीत मिले। लेकिन पूर्वांचल सभी 13 सीटों पर जीत का रिकार्ड बरकरार रखना बीजेपी के लिए किसी चमत्कार से कम न होगा। इस बार गोरखपुर, चंदौली, मिर्ज़ापुर और गाजीपुर जैसी हाई प्रोफाइल सीटों पर कांटे की टक्कर है। इस बार भी इन सीटों पर हार-जीत को सीधे नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता से जोड़ा जायेगा।
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वाराणसी में बसता है पूरा देश
वाराणसी दुनिया भर के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। सही मायने में वाराणसी में पूरा देश बसता है। यहाँ देश की अलग अलग संस्कृति की झलक वाराणसी में मिलती है। पूर्वांचल में इस बार भी वाराणसी सीट पर सबसे ज्याद 25 प्रत्याशी हैं। नरेन्द्र मोदी के खिलाफ 2014 में भी सर्वाधिक 41 प्रत्याशी मैदान में उतरे थे। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व का प्रभाव ही कहेंगे की उनको चुनौती देने के लिए कुल 102 लोगों ने नामांकन किया था। जिसमें नामांकन के आखिरी दिन 71 उम्मीदवारों ने पर्चा दाखिल कर रिकार्ड बनाया था। इसकी वजह से आखिरी दिन रात साढे ग्यारह बजे तक पर्चा दाखिल होता रहा। लेकिन बाद में जब पर्चे की जांच हुई तो उसमे बीएसएफ के बर्खास्त सिपाही तेज बहादुर सहित 71 लोगो का पर्चा खारिज कर दिया गया। जबकि 5 लोगों ने अपना पर्चा वापस ले लिया। इस प्रकार नरेन्द्र मोदी और अन्य 25 प्रत्याशी अब मैदान में हैं। हालांकि कांग्रेस के अजय राय और सपा-बसपा गठबंधन की शालिनी यादव को छोड़ कर अन्य कोई प्रत्याशी मुकाबला करने की हैसियत में नहीं लगता। लेकिन ये सब, हारेंगे तो क्या नाम न होगा की तर्ज पर चुनाव मैदान में डटे हैं।
मुस्लिम गोरक्षक भी मोदी के खिलाफ मैदान में
रोचक तथ्य है कि इन 25 प्रत्याशियों में आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार, केरल, उत्तराखंड के लोग भी हैं। इनके आलावा विश्वविख्यात हॉकी खिलाड़ी ओलंपियन दिवंगत मोहम्मद शाहिद की बेटी हिना शाहिद भी मोदी के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं। हिना को पता है कि वो मोदी के आगे कहीं नहीं टिकतीं लेकिन महिलाओं के मुद्दे को उठाने और देश का ध्यान आकर्षित करने के लिए चुनाव मैदान में हैं। मोदी से मुकाबला करने वाले प्रत्याशियों में एक गोरक्षक भी है। उनका मुख्य मुद्दा गायों का संरक्षण और गोकशी पर रोक लगाना है। यह प्रत्यशी मुस्लिम है। लखनऊ के मलीहाबाद से यहां चुनाव लड़ने आए शेख सिराज बाबा चाहते हैं कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाये। अपने इस मिशन के प्रति वो कितने गंभीर हैं यह तो पता नहीं लेकिन देश का ध्यान आकर्षित करने के लिए वह लखनऊ छोड़ कर मोदी से मुकाबला करने वाराणसी आयें हैं। इन उम्मीदवारों के अलावा, कानपुर से कृषि वैज्ञानिक राम शरण राजपूत, वाराणसी के वकील प्रेम नाथ शर्मा, बरेली से त्रिभुवन शर्मा और लेखक अमरेश मिश्रा चुनाव मैदान में हैं। अब 23 मई को ही पता चलेगा कि साबरमती किनारे से आये इस "फ़कीर" की किस्मत की लकीरें काशी ने कितनी बदली।
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