पाकिस्तान में आटे-दाल के भाव का संकट के पीछे की ये है असल वजह
नई दिल्ली- पाकिस्तान इस समय आटे के एतिहासिक संकट झेल रहा है। गेंहू की किल्लत से आटा मिलें बंद हो चुकी हैं। एक-एक किलो आटे का भाव 75 से 100 रुपये तक हो गया है। सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा जैसे प्रांतों की हालत तो बहुत ही ज्यादा दयनीय हो चुकी है। लोगों को दोनों वक्त रोटी मिलना नामुमकिन हो चुका है। ऐसा नहीं है कि वहां पिछली बार उनकी जरूरत से कम गेहूं का पैदावार हुआ था। लेकिन, बावजूद पाकिस्तानियों को आज जिस मुश्किल दौर से गुजरना पड़ रहा है, उसके बारे में सुनकर भी बहुत बुरा लगता है। दरअसल, इसके पीछे कोई एक वजह नहीं है। कई बातें हैं, जिसने आज पाकिस्तानियों को उस जगह पर ला खड़ा किया है कि उन्हें दो वक्त के खाने से ज्यादा कुछ सूझ ही नहीं रहा है। दिन में रोटी मिल जाती है तो रात के लिए तभी से जुगाड़ शुरू कर देते हैं। आइए जानते हैं कि पाकिस्तान में आए यह अजीब आटे के संकट की असल वजह क्या है?
गेहूं के पैदावार में नहीं आई खास कमी
पाकिस्तान भले ही हमेशा भारत में परमाणु बम गिराने की गीदड़-भभकी देता हो, लेकिन सच्चाई ये है कि आज की तारीख में आम पाकिस्तानियों के सामने दो रोटी के भी लाले पड़ गए हैं। ऐसा भी नहीं है कि पाकिस्तान बीते साल कोई भयंकर अकाल से जूझा हो या गेहूं की पैदावार ही नहीं हुई हो। मसलन, पिछले साल वहां 2.69 करोड़ टन गेहूं के पैदावार का अनुमान था। लेकिन, यह अनुमान से थोड़ा कम यानि 2.47 करोड़ टन ही पैदा हुआ। जहां तक मुल्क में गेहूं के खपत की बात है तो यह तकरीबन 20 लाख टन महीने का है यानि उसे अपनी खपत के लिए महज 2.40 करोड़ टन गेहूं की जरूरत थी। मतलब, अपनी खपत के लिए मुल्क में पर्याप्त गेहूं पैदा हुआ था। सवाल है कि फिर भी इतना बड़ा संकट आया क्यों, जब लोग एक-एक रोटी के लिए तरस रहे हैं, रोटियों की दुकानों में ताले पड़ रहे हैं, हड़तालें हो रही हैं और इमरान सरकार भारत को धमकियां देने में ही वक्त जाया कर रही है।
सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में सबसे ज्यादा किल्लत
पाकिस्तान में सबसे ज्यादा गेहूं यानि करीब 75 फीसदी उसके पंजाब प्रांत में ही पैदा होता है। बीते साल वहां टारगेट से कुछ लाख टन गेहूं का पैदावार कम हुआ था। पाकिस्तान में जिन प्रांतों में गेहूं की पैदावार कम होती है, वह हर साल एक टारगेट तय करके पहले ही अन्य प्रांतों से उसकी खरीद करके रख लेते हैं। लेकिन, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा ने वक्त पर गेहूं की खरीदारी करके नहीं रखी। इसलिए यही प्रांत इस वक्त वहां सबसे ज्यादा आटे की किल्लत झेल रहे हैं। मुश्किल ये है कि पाकिस्तान में अनाज के रूप में सबसे ज्यादा गेहूं की ही खपत भी होती है।
मुर्गियों ने छीनी पाकिस्तानियों से रोटी!
एक आंकड़े के मुताबिक एक आम पाकिस्तानी अनाज के तौर पर 72 फीसदी गेहूं का ही उपयोग करते हैं। एक और आंकड़ा बताता है कि वहां प्रति व्यक्ति सालाना 124 किलो गेहूं की खपत है। लेकिन, अब ये खुलासा हुआ है कि खासकर पंजाब प्रांत में सरकारी अधिकारियों और फ्लोर मिलों की मिलीभगत से 7-8 लाख टन गेहूं मुर्गियों के लिए दाना तैयार करने वाली मिलों को बेच दी गईं। जानकारी के मुताबिक इस समय पाकिस्तान में करीब 8 टन गेहूं की ही दरकार है, तभी रोटियों की दुकानें और छोटी आटा चक्कियां चल सकेंगी और आम पाकिस्तानियों को भूखे सोने की नौबत नहीं आएगी। लेकिन, सवाल है कि पहले ही लोन के बोझ से दबा पाकिस्तान अपने नागरिकों के लिए रोटियों का इंतजाम करे तो कैसे?
गेहूं की तस्करी ने जनता को भूख से तड़पाया
पाकिस्तान में जितना भी गेहूं पैदा होता है उसका एक बड़ा हिस्सा हमेशा से अफगानिस्तान तस्करी हो जाता है। पाकिस्तानी मीडिया और एक्सपर्ट के मुताबिक जब सिंध,बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में आटे की किल्लत शुरू हो गई तब भी सीधे निर्यात या चोरी-छिपे तरीके से अफगानिस्तान में गेहूं भेजी जाती रही। दावा किया जा रहा है कि सरकार को जितना सरप्लस गेहूं निर्यात करना था, उससे कहीं ज्यादा बेच दिया गया। इस खेल में पाकिस्तानी कस्टम और दूसरे सरकारी विभागों के अलावा सियासतदानों की ओर भी उंगलियां उठ रही हैं।
पाकिस्तान की सरकार की नाकामी
जाहिर है कि अगर तय मात्रा से ज्यादा गेहूं बाहर भेजा गया तो यह बिना सरकार की जानकारी के नहीं हो सकता। इस किल्लत के पीछे पाकिस्तानी हुक्कमरानों की नीति को भी दोष दिया जा रहा है। मसलन, वहां पांच साल तक गेहूं की कीमत नहीं बढ़ाई गई, जबकि आटे के दाम लगातार बढ़ते रहे। लिहाजा किसानों ने अपने उत्पाद के वाजिब मूल्य वसूलने के लिए दूसरे तरीके इस्तेमाल करने भी शुरू किए। जब वहां गेहूं संकट की सुगबुगाहट का अहसास हुआ तो सरकार ने पिछले साल 5 लाख टन गेहूं खरीदने का फैसला किया, लेकिन कुछ ही महीने बाद इसपर पाबंदी लगा दी गई। लेकिन, अफगान को अनाज बेचा जाना फिर भी जारी रहा। बस यहीं से किल्लत बढ़नी शुरू हो गई और कीमतें परवान चढ़ने लगीं। प्रांत सरकारें बाद में गेहूं खरीदने से इसलिए बचने लगे, क्योंकि हेराफेरी की वजह खुफिया एजेंसियां उनपर नजर रख रही थीं और इसमें राजनेता फंस रहे थे। इस संकट के बीच पाकिस्तानी खाद्य मंत्री ने फिर से 4 लाख टन गेहूं निर्यात का फैसला किया और इससे हालात बेकाबू होते चले गए।
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