कर्नाटक में कांग्रेस वर्किंग कमिटी भंग करने के पीछे ये है राहुल का मास्टर प्लान?
नई दिल्ली- कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के 'सरकार चलाने के दर्द' वाले बयान के बाद कांग्रेस आलाकमान ने जिस तरह से प्रदेश कांग्रेस कमिटी को भंग किया है, उसके कुछ संकेत बहुत ही स्पष्ट हैं। दरअसल, पार्टी किसी भी सूरत में कर्नाटक में गठबंधन सरकार को बीजेपी के हाथों गंवाना नहीं चाहती। इसलिए, प्रदेश अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष को छूए बिना ही इतना बड़ा कदम उठाया गया है। इसके पीछे पार्टी की रणनीति यही है कि किसी तरह से अंदरूनी कलह पर काबू करके सरकार को बचाए रखने में ही भलाई है।
पार्टी की क्या है आगे की रणनीति?
ऐसी जानकारी सामने आ रही है कि पार्टी का अगला कदम उसके मंत्रियों के इस्तीफे के तौर पर सामने आ सकता है। अभी नहीं तो कुछ महीने बाद भी इस विचार पर अमल किया जा सकता है। इसके पीछे तर्क ये दिया जा रहा है कि इसमें कुछ असंतुष्टों को मौका देकर विरोध के सुर को हल्का किया जा सकता है। कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी के इस मास्टर प्लान के पीछे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्दारमैया का दिमाग है और इसी को ध्यान में रखकर वर्किंग कमिटी को नया स्वरूप देने के लिए अध्यक्ष राहुल गांधी ने उसे भंग करने का फैसला किया है। इन अटकलों को इसलिए बल मिल रहा है, क्योंकि चर्चा है कि कुछ मंत्रियों ने अभी से इस्तीफे की पेशकश भी कर दी है। टाइम्स ग्रुप की खबरों के मुताबिक ऐसे मंत्रियों में आरबी तिम्मापुर का भी नाम लिया जा रहा है। कहा ये भी जा रहा है कि कांग्रेस कुछ निर्दलीय विधायकों को भी मंत्री पद का लालच दे सकती है, जिनमें एच नरेश और आर शंकर का जिक्र किया जा रहा है। पार्टी को लगता है कि ये सब करके गठबंधन सरकार को बचाए रखा जा सकता है।
दो को छोड़कर सब की छुट्टी
इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बुधवार को कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष दिनेश गुंडू राव और कार्यकारी अध्यक्ष को छोड़कर पूरी प्रदेश कमिटी को भंग करने का फैसला लिया है। एक दिन पहले ही पार्टी ने कर्नाटक के अपने विधायक रोशन बेग को पार्टी विरोधी गतिविधियों के नाम पर निलंबित कर दिया था। प्रदेश कमिटी भंग करने के बारे में दिनेश गुंडू राव ने कहा है कि, "अध्यक्ष ने मंजूरी दे दी है (कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमिटी भंग करने की)। अब हमें देखना है कि सिर्फ केपीसीसी का ही नहीं, बल्कि जिला कांग्रेस एवं ब्लॉक कांग्रेस कमिटियों का कैसे पुनर्गठन करें। अब पार्टी में हर स्तर पर पुनर्गठन का काम होगा।" दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कर्नाटक की 28 में से सिर्फ 1 सीट पर ही जीत मिली थी, जबकि 25 सीटें बीजेपी ने जीती थी। जबकि, यहां नतीजे आने से पहले ही कांग्रेस विधायकों में विरोध के सुर फूट रहे थे।
कुमारस्वामी के बयान बाद कांग्रेस का ऐक्शन
ये महज संयोग नहीं हो सकता कि पार्टी ने प्रदेश कांग्रेस कमिटी भंग करने का फैसला सीएम कुमारस्वामी की ओर से गठबंधन सरकार चलाने की दिक्कतों को लेकर दिए गए बयान के बाद लिया है। जेडीएस नेता ने कहा था कि वो हर दिन दर्द से गुजर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि वह अपनी परेशानियां बताना चाहते हैं, लेकिन वह चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि उनपर बहुत सारी जिम्मेदारियां हैं। उन्होंने खुद को सिर्फ बाहर से मुख्यमंत्री बताया था। दरअसल, माना जा रहा है कि कांग्रेस विधायकों से रोजाना मिलने वाले दबाव के कारण मुख्यमंत्री ने अपनी भड़ास निकाली है। अलबत्ता, उन्होंने बीजेपी पर उनकी सरकार गिराने की कोशिश करने के भी आरोप लगाए हैं। उन्होंने दावा किया है कि उनके विधायक को जेडीएस छोड़ने के लिए भाजपा की ओर से 10 करोड़ रुपये का ऑफर दिया गया है। हालांकि, उन्होंने न ही अपने विधायक का नाम बताया है और न ही उस बीजेपी नेता का जिसने उनके विधायक से संपर्क किया था। अब बड़ा सवाल है कि कांग्रेस आलाकमान का प्रदेश कांग्रेस और सरकार में बड़ी फेरबदल का मास्टर प्लान क्या कुमारस्वामी सरकार को उसका कार्यकाल पूरा कराने में मदद दिला पाएगा।
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