ब्राज़ील की गायों की रगों में दौड़ता है इस गुजराती साँड़ का ख़ून
भारत में गायों की पूजा होती है पर यहाँ से दूर ब्राज़ील में भी भारतीय गायों को उतना ही सम्मान मिलता है.
ब्राज़ील और भारत के बीच इस रिश्ते के तार गुजरात से जुड़े हुए हैं और इसकी बुनियाद पचास के दशक के उत्तरार्ध में पड़ी थी, जब भावनगर (गुजरात) के महाराज ने ब्राज़ील के एक किसान को एक साँड़ तोहफ़े में दिया था.
इससे ब्राज़ील में गायों की नस्ल को बेहतर बनाने में काफ़ी मदद मिली. आज ब्राज़ील में गुजरात की गिर नस्ल की गायों को एक ख़ास दर्ज़ा हासिल है
भारत में गायों की पूजा होती है पर यहाँ से दूर ब्राज़ील में भी भारतीय गायों को उतना ही सम्मान मिलता है.
ब्राज़ील और भारत के बीच इस रिश्ते के तार गुजरात से जुड़े हुए हैं और इसकी बुनियाद पचास के दशक के उत्तरार्ध में पड़ी थी, जब भावनगर (गुजरात) के महाराज ने ब्राज़ील के एक किसान को एक साँड़ तोहफ़े में दिया था.
इससे ब्राज़ील में गायों की नस्ल को बेहतर बनाने में काफ़ी मदद मिली. आज ब्राज़ील में गुजरात की गिर नस्ल की गायों को एक ख़ास दर्ज़ा हासिल है.
ब्राज़ील में गिर नस्ल की गायें
इन दिनों ब्राज़ील के एक प्रांत पैराना के एक डेयरी फ़ार्म में इल्हाबेला नाम की एक गाय का ख़ास ध्यान रखा जा रहा है.
ऐसा सिर्फ़ इसलिए नहीं है क्योंकि कि वो माँ बनने वाली है बल्कि इसलिए भी क्योंकि वो इस फ़ार्म की आख़िरी गाय है जिसका भारत से रिश्ता है.
इल्हाबेला उस साँड़ की वंशज है जिसकी वजह से गुजरात के गिर की गायें ब्राज़ील में मशहूर हुईं और जिनकी वजह से ही यहाँ की गायों की नस्ल बेहतर हुई.
ब्राज़ील के किसान गुइलहर्म सैक्टिम बताते हैं, "जब मेरे दादा ने कृष्णा नाम के इस साँड़ की तस्वीर देखी, तभी उन्हें वो पसंद आ गया था. तब वो बछड़ा ही था. तब वो गुजरात के भावनगर के महाराजा के पास था. मेरे दादा उसे ब्राजील ले आए."
कृष्णा की कहानी
दरअसल ये गुइलहर्म सैक्टिम के दादा सेल्सो गार्सिया सिद और भावनगर के महाराजा की दोस्ती की कहानी भी है.
सेल्सो गार्सिया सिद को भावनगर के महाराजा ने कृष्णा तोहफ़े में दिया था.
कृष्णा के नए मालिक उससे बहुत प्यार करते थे. इतना कि जब साल 1961 में उसकी मौत हुई, तो उन्होनें उसका एक बुत बनवा लिया.
अब उनके पोते का कहना है कि ब्राज़ील की लगभग 80 फ़ीसदी गायों की रगों में कृष्णा नाम के इसी गुजराती गिर साँड़ का ख़ून बहता है.
सिर्फ़ इस फार्म में ही नहीं, यहाँ से बाहर भी गिर नस्ल की गायों का बोलबाला है.
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गिर की गायों के चर्चे
यहाँ के मेनास रिसर्च इंस्टिट्यूट में जेनेटिक तरीक़े से गायों की ब्रीडिंग कराई जाती है.
गिर की गायों के लिए ब्राज़ील का मौसम अनुकूल माना जाता है.
उन्हें यहाँ बीमारियाँ भी नहीं होती और इनकी नस्ल को यहाँ के लैब्स में और बेहतर बना दिया जाता है.
विट्रो फ़र्टिलाइज़ेशन के ज़रिए वैज्ञानिक गिर की गायों के ऐसे भ्रूण विकसित करते हैं जिनसे पैदा हुई गाय कई लीटर दूध दे सकती हैं.
पिछले एक दशक से इस तरह पैदा हुई गायों की यहाँ जमकर ख़रीद-बिक्री हो रही है.
एम्ब्रापा लैब के रिसर्चर मार्कोस डिसिल्वा कहते हैं, "पिछले 20 सालों में ब्राज़ील में दूध का उत्पादन चौगुना हो गया है और इसमें से 80 फ़ीसदी दूध गिरोलैंडो गायों से आता है जो गिर की गायों की पैदाइश हैं."
इस नस्ल में कुछ जादू है...
गिर की मदद से अब ब्राज़ील में दूध का कारोबार बढ़ रहा है. मिनास गिरास के इस डेयरी फ़ार्म की लगभग 1,200 गायें इसकी मिसाल हैं.
इनमें से कुछ की क़ीमत तो 9 लाख रुपये तक है और वो एक दिन में लगभग 60 लीटर दूध देती हैं. इनमें से कुछ तो 20 सालों तक दूध देती हैं.
पेशे से पशु चिकित्सक लुइज़ फर्नांडो कहते हैं, "गायों की इस नस्ल में कुछ जादू है. ये अच्छी गायें हैं. इन्हें बीमारियाँ जल्द नहीं होतीं और इनकी उम्र लंबी होती है."
सालों पहले गुजरात से लाई गईं गायों की दुनिया के इस हिस्से में पूजा हो रही है. इसका एक कारण है कि इन गायों की मदद से इस देश में लोगों की आर्थिक तरक्की हुई है और लोगों की भूख भी मिट रही है.
गिर साँड़ों के सीमेन का आयात
लेकिन इस ख़ूबसूरत तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है. ब्राज़ील में फले-फूले गिर नस्ल के साँड़ों के सीमेन अब भारत के हरियाणा और तेलंगणा जैसे राज्य आयात करने पर विचार कर रहे हैं.
जबकि गिर गायों के घर गुजरात में ब्रीडर्स की राय ऐसे आयात के बारे में कुछ अलग है.
गिर गायें सदियों से जूनागढ़, भावनगर, अमरेली और राजकोट के इलाक़ों में लोगो की रोजी-रोटी का ज़रिया रही हैं.
ये नस्ल ना सिर्फ़ इन इलाक़ों के गर्म मौसम के लिए मुफीद हैं, बल्कि एक प्रजनन मौसम में 3 हज़ार लीटर से ज़्यादा दूध देने की क्षमता भी इसे देश ही नहीं दुनिया की आला नस्लों में एक बनाती है.
सीमेन आयात पर उठते विरोध के सुर
60 के दशक में पशुधन के आयात-निर्यात को लेकर नियम कड़े कर दिए गए थे. लेकिन गिर गायों की शुद्ध नस्ल को बचाने के लिए कोई ध्यान नहीं दिया गया.
श्वेत क्रांति के दौर में ज़्यादा मुनाफ़ा फैट की अधिक मात्रा देने वाले भैंस के दूध में था. लिहाज़ा गिर गायों को नज़रअंदाज़ किया जाता रहा.
हरियाणा के पशुपालन मंत्री ओपी धनखड़ बताते हैं, "हरियाणा सरकार ने ब्राज़ील के साथ गिर नस्ल के साँड़ों का सीमेन आयात करने के लिए एक समझौता किया है."
लेकिन पिछले कुछ सालों में गुजरात के भीतर भी गिर गायों के सीमेन के आयात की बात उठ चुकी है. लेकिन गिर ब्रीडर्स एसोसिएशन की राय कुछ अलग है.
गिर ब्रीडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बीके अहीर कहते हैं, "जिसको पूरी जानकारी नहीं है, वो ब्राज़ील के लिए उत्सुक है कि हम बाहर से सीमेन लाएंगे. लेकिन जो लोग ब्राज़ील की गिर गायों की नस्ल की शुद्धता समझते हैं वे कभी ब्राज़ील से आने वाले सीमेन की तरफ़ नहीं देखेंगे."