19 मई की ये सीटें तय करेंगी 23 को मोदी की दोबारा ताजपोशी
नई दिल्ली- जानकारों की मानें तो अंतिम दौर की 59 सीटें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बहुत ही बड़ी चुनौती साबित हो सकती हैं। माना जा रहा है इस दौर में जितनी भी सीटें हैं, वहां मोदी सरकार के खिलाफ हवा ज्यादा तेज है। जाहिर है कि इन बाकी बची हुई सीटों पर बीजेपी या विपक्ष में से जिसका भी पलड़ा भारी रहेगा, 23 मई को उसकी स्थिति उतनी ही बेहतर हो सकती है। इस दौर को हम मोदी के लिटमस टेस्ट की तरह इसलिए देख रहे हैं, क्योंकि जितनी भी सीटों पर चुनाव होने वाले हैं, वहां पांच साल में हालात बिल्कुल बदल चुके हैं। यानी 23 मई के बाद दोबारा मोदी की ताजपोशी होगी या नहीं, वह इन्हीं सीटों पर निर्भर कर रहा है।
मोदी के लिए 2014 दोहराना नहीं आसान
19 मई को जिन 59 सीटों पर वोटिंग होगी उनमें उत्तर प्रदेश की 13, पंजाब की सभी 13, पश्चिम बंगाल की 9, बिहार की 8, मध्य प्रदेश की 8, हिमाचल प्रदेश की सभी 4, झारखंड की 3 और 1 सीट चंडीगढ़ की शामिल है। 2014 में बीजेपी को जो 282 सीटें मिली थीं, उनमें से 33 सीटें इन्हीं 59 सीटों में से आई थी और तभी नरेंद्र मोदी ने राजीव गांधी के बाद पहली बार ऐतिहासिक बहुमत पाया था। अगर एनडीए को भी ले लें, तो यह आंकड़ा 40 तक पहुंच गया था। लेकिन, 2019 में उनकी राह पांच साल पहले जितनी आसान नहीं रह गई है। पिछली बार ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की टीएमसी (TMC) को बंगाल की सभी 9, पंजाब में आम आदमी पार्टी को 4, कांग्रेस को 3, झारखंड मुक्ति मोर्चा को 2 और जनता दल यूनाइटेड को 1 सीट मिली थी। तब नीतीश की पार्टी एनडीए का हिस्सा नहीं थी।
बदल चुके हैं सियासी समीकरण
कई राज्यों में 2014 की तुलना में सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल चुके हैं। उदाहरण के लिए तब पंजाब और मध्य प्रदेश में बीजेपी और उसकी सहयोगियों की सरकार थी। लेकिन, अब वहां कांग्रेस की सरकारें हैं और उसने एनडीए और बीजेपी से सत्ता छीनी है। उत्तर प्रदेश, झारखंड और हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी है। यानी अब वहां बीजेपी को दो-दो एंटी-इंकंबेंसी झेलने का खतरा है। बिहार में भी नीतीश कुमार भाजपा के साथ आ चुके हैं यानी यहां भी उसे उसी तरह की चुनौती झेलनी पड़ रही है।
उत्तर प्रदेश बीजेपी को क्यों डरा रहा है?
उत्तर प्रदेश की बाकी बची सभी 13 सीटों पर पिछली बार बीजेपी और उसकी सहयोगी अपना दल ने कब्जा किया था। बीजेपी महाराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, रॉबर्ट्सगंज में जीती थी, जबकि अपना दल मिर्जापुर में विजयी रही थी। इनमें से 8 सीटों पर बीएसपी, 3 पर समाजवादी पार्टी और एक-एक पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने उसे टक्कर दिया था। जाहिर है कि 11 सीटों पर इस बार महागठबंधन के उम्मीदवार का सामना करना भाजपा को काफी भारी पड़ सकता है।
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मध्य प्रदेश में बीजेपी की मुश्किल
19 मई को मध्य प्रदेश की जिन सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें देवास, उज्जैन, मंदसौर, झाबुआ-रतलाम, धार, इंदौर, खरगोन और खंडवा की सीटें शामिल हैं। 2014 में इन सभी सीटों पर बीजेपी का कब्जा हुआ था। ये सीटें मालवा-निमार इलाके की हैं, जहां बीजेपी को 2015 में पहला झटका तब लगा था, जब झाबुआ-रतलाम के उपचुनाव में बीजेपी हार गई थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा को 66 में से 56 सीटें मिली थीं, लेकिन 2018 में वह सिर्फ 21 सीटें ही जीत पाई। जबकि, कांग्रेस 2013 के 9 से अपनी टैली को बढ़ाकर 2018 में 35 सीटों तक ले गई। खास बात ये भी है कि यह क्षेत्र देश के पॉपुलर मूड को भी जाहिर करता है। उदाहरण के लिए 2009 में कांग्रेस यहां 8 में से 6 पर जीती थी और केंद्र में सरकार बनाई थी। जबकि, 2014 में भाजपा ने सारी सीटें जीत ली थीं और उसकी पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी थी। हालांकि, बीजेपी एंटी इंकंबेंसी के खतरे को टालने के लिए अपने 5 सीटिंग एमपी का टिकट काट चुकी है।
बिहार में भी बदल गई स्थिति
बिहार की जिन 8 सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें से पिछली बार 5 पर भाजपा जीती थी और 1 पर जेडीयू (JDU) कामयाब हुई थी। तब उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी (RLSP) बीजेपी के साथ थी और जेडीयू अकेले चुनाव लड़ी थी। आज जेडीयू, एनडीए का हिस्सा है। ऐसे में देखना है कि एनडीए अपनी सीटें बरकरार रख पाती हैं या उसे और बेहतर कर पाती है। क्योंकि, इस दौर में पटना साहिब, पाटलिपुत्रा, आरा, जहानाबाद, काराकाट, बक्सर, सासाराम और नालंदा लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव होने हैं।
पश्चिम बंगाल की कठिन चुनौती
अंतिम दौर में पश्चिम बंगाल की जिन 9 सीटों पर चुनाव होने हैं, उन्हें ममता का गढ़ कहें तो गलत नहीं होगा। टीएमसी (TMC) ने पिछली बार इस दौर की सभी सीटें यानी दमदम, बारासात, बसीरहाट, जयनगर, माथुरपुर, डायमंड हार्बर, जादवपुर, कोलकाता दक्षिण और कोलकाता उत्तर की सीटों पर कब्जा किया था। अब देखने वाली बात होगी कि भारतीय जनता पार्टी यहां जो 21 प्लस सीटें जीतने का अनुमान लगा रही है, उनमें से अंतिम दौर की कितनी सीटें होती हैं।
पंजाब और चंडीगढ़ का हाल
2014 में एनडीए ने पंजाब की 13 में से 6 और चंडीगढ़ की सीट जीत ली थी। जबकि, 4 सीटें केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने जीती थी। 2017 में यहां कांग्रेस की सरकार बन गई। इस बार आम आदमी पार्टी भी वहां कोई खास टक्कर नहीं दे पा रही है। ऐसे में कांग्रेस से सीधे मुकाबले में एनडीए के लिए अपनी सीटें बचाना भी बहुत बड़ी चुनौती मानी जा सकती है।
बाकी राज्यों की लड़ाई भी आसान नहीं
हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने 2014 में सभी 4 सीटें जीती थीं। तब वहां कांग्रेस की सरकार थी। अब वहां बीजेपी की अपनी सरकार है। ऐसे में उसके उम्मीदवारों को दो-दो एंट इंकंबेंसी फैक्टर का सामना करना पड़ सकता है। झारखंड में जिन 3 सीटों पर उस दिन चुनाव हो रहे हैं, उसमें भाजपा के पास अभी सिर्फ 1 सीट है। ऐसे में यह देखना होगा कि राज्य में अपनी सरकार के रहते हुए वह अपना प्रदर्शन बेहतर कर पाती है या नहीं।