ये हैं देश की वो पांच लोकसभा सीटें, जिनके वोट से बनती है दिल्ली में सरकार
नई दिल्ली- गुरुवार को देश के 542 लोकसभा सीटों के लिए वोटों की गिनती होगी। सरकार उसकी बनेगी, जो बहुमत के जादुई आंकड़े 272 तक पहुंचेंगी। लेकिन, आप जानकर हैरान होंगे कि देश की 5 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां का इतिहास बताता है कि जिसने भी उन सभी सीटों पर जीत दर्ज की दिल्ली की सत्ता उसी को मिली। यह दिलचस्प ट्रेंड पिछले कई आम चुनावों से लगातार देखने को मिल रहा है।
1- वलसाड, गुजरात
गुजरात (Gujarat) की वलसाड (Valsad) लोकसभा सीट उन्हीं पांच सीटों में से है, जहां जीतने वाली पार्टी की ही केंद्र में सरकार बनती है। गुजरात की 26 में से वलसाड ऐसी ही सीट है, जहां 1975 से यह ट्रेंड चला आ रहा है। यह एक रिजर्व सीट है, जहां धोधिया, कूनकाना, विरली, कोली और अन्य पिछड़ी जातियां (OBC) भारी तादाद में मौजूद हैं। 14.95 लाख वोटरों वाले वलसाड (Valsad)में 1998 में बीजेपी के मनीभाई चौधरी ने जीत हासिल की और केंद्र में अटल जी की सरकार बनी। 1999 में वे यहीं से दोबारा जीते और फिर वाजपेयी की सरकार बनी। लेकिन, 2004 में कांग्रेस के कृष्ण भाई पटेल ने इस सीट पर कब्जा किया और केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार आ गई। 2009 में वे दोबारा यहां से चुने गए और मनमोहन सिंह को भी दोबारा कुर्सी मिली। लेकिन, 2014 में मोदी लहर में बीजेपी के के सी पटेल ने यहां 2 लाख से भी ज्यादा वोटों से विजय हासिल की और दिल्ली की सत्ता पर नरेंद्र मोदी काबिज हुए। के सी पटेल इस बार भी कांग्रेस के जीतूभाई के खिलाफ किस्मत आजमा रहे हैं।
2- मंडी, हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की चार लोकसभा सीटों में से मंडी (Mandi) को भी दिल्ली में सरकार बनवाने का गौरव प्राप्त है। इस सीट से 11 बार में से 9 बार जिस पार्टी का प्रत्याशी जीता है, केंद्र में उसी की सरकार बनी है। पहले इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा माना जाता था। यहां खासतौर पर राजपूत एवं अनुसूचित जाति (SC) के वोटर किसी की जीत और हार तय करते हैं। 1998 में बीजेपी के महेश्वर सिंह ने यहां कांग्रेस की प्रतिभा सिंह को मात दी थी। 1999 में भी महेश्वर सिंह यहां से दोबारा जीते थे। लेकिन, 2004 में प्रतिभा सिंह ने यहां फिर से बाजी पलट दी और केंद्र की सरकार भी बदल गई। 2009 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरभद्र सिंह ने यहां से चुनाव जीता और मनमोहन सिंह दोबारा सत्ता पर काबिज हुए। 2013 के उपचुनाव में कांग्रेस की प्रतिभा सिंह ने पार्टी का कब्जा बरकरार रखा, लेकिन 2014 के मोदी लहर में वो भाजपा के राम स्वरूप शर्मा से मात खा गईं।
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3- फरीदाबाद, हरियाणा
दिल्ली से सटे हरियाणा (Haryana) के फरीदाबाद (Faridabad) को भी दिल्ली में सरकार बनवाने का गौरव हासिल होता रहा है। 1998 में यहां भाजपा के चौधरी रामाचंद्र बैंद्रा ने जीत दर्ज की और 1999 में भी उन्होंने अपनी सीट बरकरार रखी। 2014 के मोदी लहर में यहां बीजेपी के कृष्ण पाल गुर्जर ने कांग्रेस के अवतार सिंह भड़ाना को हराया और मोदी की सरकार बन गई। इस बार भी यही दोनों प्रत्याशी एक-दूसरे के खिलाफ फिर से मैदान में हैं, जहां 12 मई को हुए मतदान में 64.12 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई।
4- रांची, झारखंड
झारखंड ( Jharkhand) की राजधानी रांची (Ranchi) की लोकसभा सीट का रिकॉर्ड कहता है कि यहां 11 बार में 9 बार जिस पार्टी का भी उम्मीदवार जीता है, केंद्र में उसी की सरकार बनी है। 1996, 1998, 1999 में यहां से बीजेपी के वरिष्ठ नेता राम टहल चौधरी ने जीत दर्ज की और तीनों बार केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बन गई। लेकिन, 2004 और 2009 में ये सीट कांग्रेस के नेता सुबोधकांत सहाय के खाते में गई और मनमोहन सरकार में उन्हें मंत्री बनने का भी मौका मिल गया। लेकिन, 2014 में उन्हें बीजेपी से हार मिली और मनमोहन सिंह सरकार से बेदखल हो गए। इस बार राम टहल चौधरी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं और बीजेपी ने झारखंड खादी बोर्ड के चीफ संजय सेठ को उतारा है।
5-धर्मापुरी, तमिलनाडु
तमिलनाडु ( Tamilnadu) की 39 लोकसभा सीटों में से धर्मापुरी (Dharmapuri) उत्तर-पश्चिमी इलाके में हैं। पिछले पांच चुनावों में से चार बार यहां पट्टाली मक्कल कच्ची (PMK) के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। 1998 और 1999 में पीएमके (PMK) का एनडीए के साथ चुनाव-पूर्व गठबंधन था। 2004 में यूपीए सरकार बनने पर पीएमके भी उसमें शामिल हो गई। 2009 में पीएमके यहां डीएमके से हार गई, जो यूपीए के साथ सरकार में शामिल थी। पिछले चुनाव में पीएमके बीजेपी से गठबंधन कर जीती थी और इस बार भी वह सत्ताधारी दल के साथ ही गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रही है। इस सीट पर तमिल के अलावा तेलगू बोलने वालों की भी अच्छी-खासी तादाद है। कापुस, लिंगायत, वोक्कालिंगा के साथ ही होलेया और मादीगा जैसी अनुसूचित जातियां (SC) यहां हार और जीत तय करती हैं।
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