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मध्य प्रदेश में खिले 'कमल'नाथ के दामन पर भी हैं दाग़

एक नवंबर, 1984 के गुरुद्वारा रक़ाबगंज पर हमले और कमलनाथ की भूमिका पर नानवती कमीशन ने कहा, "सबूतों के अभाव में जांच आयोग के लिए ये मुमकिन नहीं कि वो कह पाए कि उन्होंने किसी भी तरह भीड़ को भड़काया था या वो गुरुद्वारा पर हुए हमले में शामिल थे."

By BBC News हिन्दी
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कमलनाथ
Getty Images
कमलनाथ

पचास सालों के राजनीतिक करियर के बाद अब कमलनाथ मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री होंगे.

ऐसे में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से ठीक पहले 1984 के सिख दंगों और आपातकाल में भूमिका का 'भूत' एक बार फिर से कमलनाथ को जकड़ने की कोशिश में है.

हालांकि अकालियों के मुक़ाबले जनरैल सिंह भिंडरावाले को खड़ा करने में कमलनाथ ने जो भूमिका निभाई थी, वो अब तक चर्चा से दूर है.

इस किस्से का ज़िक्र मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा 'बियॉंड द लाइन्स' में किया था.

पंजाब के अकाली दल के ख़िलाफ़ जरनैल सिंह भिंडरावाले को आगे लाने की कहानी का ज़िक्र करते हुए कुलदीप नैयर ने अपनी किताब में किया था. उन्होंने लिखा था कि कमलनाथ ने उनसे बताया था किस तरह से इस काम के लिए दो लोगों का इंटरव्यू किया गया था और अंत में भिंडरावाले को चुना गया क्योंकि वो "चाल-ढाल और बातचीत में दबंग था और इस काम के लिए ज़्यादा उपयुक्त था."

हालांकि कुलदीप नैयर ने ये भी लिखा था कि कमलनाथ को उस वक़्त ये अहसास नहीं था कि भिंडरावाले बाद में एक आतंकवादी के तौर पर उभरेगा.

नैतिक सवाल

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में सिखों के ख़िलाफ़ हुई हिंसा में कमलनाथ की भूमिका पर सवाल उठाते हुए भी तीन में से दो सिख विधायकों ने साफ़ किया है कि इस मामले में कमलनाथ पर किसी तरह का मुक़दमा नहीं है.

दिल्ली और पंजाब से ताल्लुक़ रखने वाले तीन विधायकों ने सवाल उठाया है- 'ख़ुद को धर्म-निरपेक्ष बताने वाली कांग्रेस द्वारा एक ऐसे व्यक्ति को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया, जिनका रोल सिख-दंगों को लेकर हमेशा सवालों के घेरे में रहा है.'

तो आख़िर क्या रोल था कमलनाथ का इस पूरे मामले पर और क्यों उनका नाम 1984 दंगों के सिलसिले में गाहे-बगाहे आता रहता है?

लेखक और जाने-माने पत्रकार मनोज मित्ता ने बीबीसी से कहा, "इन दंगों में उनकी भूमिका वैसी नहीं जैसी जगदीश टाइटलर या सज्जन कुमार की थी. लेकिन कई मामलों में वो इससे भी बड़ी इन मायनों में थी क्योंकि उनकी मौजूदगी लुट्यन्स दिल्ली यानी उस इलाक़े में दर्ज की गई थी जो संसद से बिल्कुल क़रीब है."

अपनी किताब 'वेन ए ट्री शुक डेल्ही' में इस घटना का ज़िक्र करते हुए मनोज मित्ता कहते हैं,"संसद भवन की सड़क के दूसरी तरफ़ होने के बावजूद भी रक़ाब गंज गुरुद्वारे को भीड़ लंबे समय तक घेरे रही और उसकी चारदीवारी को नुक़सान पहुंचा और वहां दो सिखों को ज़िंदा जला दिया गया. रक़ाब गंज पर हुआ हमला इस मायने में भी असाधारण है क्योंकि ये शायद पहली बार था और बड़े पैमाने पर हुई हिंसा के इतिहास में शायद इकलौता ऐसा वाकया था, जिसमें एक राजनेता ने घटनास्थल पर मौजूद होने की बात क़बूल की थी. और विडंबना ये है कि इस तरह की घटना भारतीय संसद के पास के इलाक़े में हुई."

सिख दंगे
AFP
सिख दंगे

चश्मदीद रिपोर्टर

वकील एचएस फूलका के साथ मिलकर लिखी गई इस पुस्तक में कहा गया है कि गुरुद्वारा रक़ाब गंज की घेराबंदी तक़रीबन पांच घंटों तक जारी रही और कमलनाथ घटनास्थल पर दो घंटे से अधिक वक़्त तक मौजूद थे.

कमलनाथ ख़ुद वहां अपनी मौजूदगी से इनकार नहीं करते हैं लेकिन वो कहते रहे हैं कि वो वहां पार्टी के कहने पर गए थे ताकि भीड़ को गुरुद्वारा पर हमला करने से रोक सकें.

"इस मामले में एसआईटी ने जांच की, रंगनाथ और नानावती जांच आयोग बने जिन्होंने मुझे आरोप मुक्त किया लेकिन मैं सीबीआई या किसी भी दूसरे तरह की जांच के लिए तैयार हूं," कमलनाथ ने पंजाब कांग्रेस पार्टी इंचार्ज पद से इस्तीफ़े के बाद टीवी चैनल इंडिया टुडे को दिए गए इंटरव्यू में कहा था.

साल 2016 में उन्हें कांग्रेस द्वारा पंजाब का पार्टी इंचार्ज बनाए जाने के बाद सिख दंगों के हवाले से विवाद खड़ा हो गया था.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, उन्हें साल 2010 में अमरीका की एक अदालत ने इस मामले में उन्हें नोटिस भी भेजा था.

मनोज मित्ता की किताब में संजय सूरी का भी ज़िक्र है, जो 1984 में इंडियन एक्सप्रेस अख़बार में रिपोर्टर थे और चंद सालों पहले उन्होंने सिख दंगों को लेकर 1984 द एंटी सिख वायलेंस एंड आफ़टर नाम की किताब भी लिखी है.

बीबीसी ने संपर्क किया लंदन में रह रहे संजय सूरी से जिन्हें एक नवंबर दोपहर का वो सारा वाकया याद है.

वो कहते हैं, ''गुरुद्वारा को घेरे हुई भीड़ में सबसे आगे कमलनाथ थे. दो सिखों को ज़िंदा जलाये जाने की वो दिल-दहलाने वाला मंज़र- जिसकी आजतक कहीं एफ़आईआर भी नहीं हुई, पुलिस की वहां मौजूदगी लेकिन कुछ भी न करना.''

सूरी रंगनाथ मिश्रा और जीटी नानावती के सामने अपनी गवाही को याद करते हुए कहते हैं कि पहले कमीशन ने उनसे कहा कि वो कोई ऐसा गवाह लेकर आएं जो ये साबित कर सके कि वो उस समय गुरद्वारा रक़ाबगंज के पास मौजूद थे. साथ ही उनसे आफ़िस की लॉग-बुक मांगी गई जिससे साबित हो कि उनकी ड्यूटी उस दिन और उस समय कहां लगी थी.''

कमलनाथ
AFP
कमलनाथ

कमीशन पर कमीशन

सूरी ने कहा, "उस भीड़ से कौन आता मेरी मौजूदगी की गवाही देने और आप जानते हैं अख़बार के दफ्तर में किसी तरह का कोई लॉग-बुक नहीं होता है रिपोर्टर के लिए?"

रंगनाथ मिश्रा को बाद में कांग्रेस ने सांसद के तौर पर राज्यसभा भेजा था.

अटल बिहारी वाजपेयी के समय गठित की गई नानवती कमीशन के बारे में सूरी कहते हैं कि उनसे सवाल किए गए कि क्या उन्होंने कमलनाथ को भीड़ को आदेश देते हुए अपने कानों से सुना है, वो क्या कह रहे थे.

सूरी कहते हैं, "ये कोई बॉलीवुड की फ़िल्म नहीं थी कि कोई झंडा लेकर किसी को हमला करने को चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा होता."

कारवां पत्रिका के राजनीतिक संपादक हरतोष सिंह बल कहते हैं ये दिलचस्प बात है कि 1984 सिख-विरोधी दंगों और 2002 गुजरात दंगों दोनों की जांच नानावती कमीशन ने की, जहां कमलनाथ के मामले में उसने लीपापोती की. वहीं नरेंद्र मोदी के मामले में सबूतों को चालाकी से तोड़ा-मरोड़ा गया.

एक नवंबर, 1984 के गुरुद्वारा रक़ाबगंज पर हमले और कमलनाथ की भूमिका पर नानवती कमीशन ने कहा, "सबूतों के अभाव में जांच आयोग के लिए ये मुमकिन नहीं कि वो कह पाए कि उन्होंने किसी भी तरह भीड़ को भड़काया था या वो गुरुद्वारा पर हुए हमले में शामिल थे."

1984 और 2002 दंगों को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के बीच जो बयानबाज़ियां होती रहती हैं, उन्हें हरतोष बल 'राजनीतिक फ़ुटबॉल' के रूप में देखतें हैं, जिसमें राजनीतिक दलों की दिलचस्पी दोषियों को सज़ा दिलवाने में कम और इन त्रासदियों को दूहने में अधिक है.

BBC Hindi
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English summary
There is also a scar on the Kamal Nath Status in Madhya Pradesh
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