तो 16 नवंबर को नीतीश कुमार की जगह तेजस्वी यादव ले रहे होते मुख्यमंत्री पद की शपथ!
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजे इस बार कई मायनों में अलहदा साबित हुए है। पिछले 15 वर्षो में यह पहली बार है जब बिहार में 7वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे जदयू चीफ नीतीश कुमार बिहार में सत्तारूढ़ होने जा रही गठबंधन सरकार में छोटे भाई की भूमिका में होंगे। इस चुनाव में एलजेपी चीफ चिराग पासवान के चुनावी दांव में न केवल जदयू के तीर बुझाने में बड़ी भूमिका निभाई, बल्कि महागठबंधन को सत्ता से दूर रखने में बड़ा योगदान दिया। हालांकि तेजस्वी को CM बनने से रोकने में एलजेपी के अलावा छोटे दल AIMIM और बीएसपी की भी बड़ी भूमिका रही।
7 ऐसी मजबूरी, जिसके चलते 31 सीट अधिक जीतकर भी बीजेपी को नीतीश को CM कुर्सी देनी पड़ी
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चिराग पासवान ने जदयू को कुल 25 सीटों पर सीधे-सीधे नुकसान पहुंचाया
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में चिराग पासवान के नेतृत्व में बागी तेवर अपनाते हुए एलजेपी ने नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए जदयू को कुल 25 सीटों पर सीधे-सीधे नुकसान पहुंचाया, जिससे पिछले 15 वर्षों के इतिहास में जदयू सबसे कम 43 सीटों पर सिमट गए। एलजेपी ने एक तरफ जदयू को 25 सीटों पर नुकसान पहुंचाया तो दूसरी तरफ महागठभंधन को 24 सीटों पर नुकसान पहुंचाने में कामयाब हुई। इसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ और अगर एक और सीट बीजेपी जीतने में सफल हो जाती तो पहली बार बीजेपी बिहार में नंबर एक पार्टी बनकर उभरती।
सीटों पर जीत के हिसाब से बीजेपी नंबर एक टीम बनकर उभरी है
हालांकि लड़ी गई सीटों पर जीत के औसत के हिसाब से बीजेपी बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में नंबर एक टीम बनकर उभरी है। 75 सीट जीतकर नंबर एक पार्टी बनी राजद 144 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जबकि 74 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली बीजेपी ने महज 110 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। बीजेपी की बड़ी जीत के लिए चिराग पासवान की भूमिका है, क्योंकि एक ओर जहां चिराग नीतीश पर हमलावर थे, तो दूसरी तरफ बीजेपी के प्रति सॉफ्ट रवैया अपनाए हुए था।
चिराग के आक्रामक रूख के चलते तीसरे नंबर की पार्टी बन गई जदयू
चुनाव में जदयू के खिलाफ एलजेपी के आक्रामक रूख के चलते प्रदेश में तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई, जबकि बीजेपी एक सीट और जीतने में कामयाब हो जाती तो बिहार की नंबर एक पार्टी बन गई होती। भाजपा (गठबंधन में चुनाव लड़ते हुए) को 15 साल में पहली बार सबसे ज्यादा 19.2% वोट हासिल हुए। चिराग ने चुनाव पूर्व और चुनावी कैंपेन में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कैंपेन नहीं किया, बल्कि खुद को उनका हनुमान बताया। वहीं, पीएम मोदी ने भी बिहार विधानसभा चुनाव के लिए किए कुल 12 रैलियों में चिराग पासवान के खिलाफ मुंह नहीं खोला।
चुनाव में एलजेपी और बीजेपी मिलीभगत के भी किस्से खूब उछाले गए
यही कारण था कि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान एलजेपी और बीजेपी के बीच मिलीभगत के भी किस्से खूब उछाले गए। इसका सीधा असर मतदाताओं के मन मस्तिष्क पड़ा और उसका असर चुनाव नतीजे में जदयू की सीटों में ऐतिहासिक गिरावट और बीजेपी की सीटों में ऐतिहासिक बढ़त के रूप में समझा जा सकता है। ऐतिहासिक इसलिए, क्योंकि बीजेपी पिछले 15 वर्षों में पहली बार बिहार में जदयू की सीटों से अधिक सीट लाने में सफल रही है। हालांकि बीजेपी ने जदयू को आश्वस्त करने के लिए कई बार मतदाताओं को समझाने के लिए जरूर कहा था कि एलजेपी के एनडीए का हिस्सा नहीं है।
मतदान से पहले एलजेपी मतदाताओं को कंफ्यूज करने में कामयाब हुई
लेकिन तीर कमान से निकल चुका था और बिहार की चुनाव की पटकथा लिखी जा चुकी थी। एलजेपी मतदाताओं को कंफ्यूज करने में कामयाब हुई, जिसकी तस्दीक करते हैं चुनाव में एलजेपी के पक्ष में पड़े 25 लाख वोट (6 फीसदी वोट शेयर)। एलजेपी को भले ही महज 1 सीट पर जीत दर्ज कर सकी, लेकिन उसने जदयू और महागठबंधन के 24 सीटों का नुकसान पहुंचाने में सफल रही। महागठबंधन में एलजेपी की वजह राजद को 12 सीट, कांग्रेस 10 सीट और सीपीआई (माले) को 2 सीटों का नुकसान पहुंचाया। इससे बिहार चुनाव में तीर और लालटेन दोनों को बड़ा नुकसान हुआ और बीजेपी की बल्ले-बल्ले हो गई।
माना जा रहा है कि चिराग पासवान का इसका इनाम बीजेपी जल्द देगी?
माना जा रहा है कि चिराग पासवान का इसका इनाम बीजेपी जल्द देगी। पूरी संभावना है कि बीजेपी चिराग पासवान को निकट भविष्य में केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर सकती है और उन्हें उनके दिवंगत पिता राम विलास पासवान वाले पोर्टफोलियो वाला मंत्रालय भी सौंप दे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यह एलजेपी ही थी कि बीजेपी बिहार में पहली बार शीर्ष पर पहुंची हैं वरना उसे हर बार जदयू के साये में ही सरकार में शामिल होना पड़ता था। यह एलजेपी का ही करिश्मा ही था कि महागठबंधन एक्जिट पोल और काउंटिंग में उम्मीद जगाकर सो गई।
चिराग पासवान की पार्टी ने 24 सीटों पर महागठबंधन का खेल खराब किया
गौरतलब है एलजेपी को अकेले चुनावी मैदान में उतरने से एनडीए को 24 सीटों का सियासी फायदा मिला है। इनमें बीजेपी को एक सीट, जेडीयू को 20 और जीतनराम माझी की हम को 2 सीट और वीआईपी को 1 सीट पर चुनावी फायदे मिले हैं। चुनावी आंकड़े बताते हैं कि चिराग पासवान की पार्टी ने 24 सीटों पर महागठबंधन का खेल खराब किया। लोजपा की वजह से बीजेपी को करीब 3 फीसदी वोट शेयर का फायदा मिला और जदयू को 2 फीसदी वोट शेयर का नुकसान हुआ। वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में एनडीए 243 में से 215 सीटों पर आगे थी।
एलजेपी भले एक सीट जीती, लेकिन 34 सीटों पर जदयू के वोट काटे हें
एलजेपी भले ही एक सीट जीत पाई, लेकिन उसने 34 सीटों पर जदयू के वोट काटे हें। वर्ष 2015 चुनाव में महागठबंधन के साथ लड़ी जदयू को 71 सीटें हासिल हुईं थी, जबकि बीजेपी के खाते में महज 53 सीटें आईं थी, जबकि राजद के खाते में 80 सीटें आईं थी। हालांकि इस चुनाव में जदयू को नुकसान होना लाजिमी थी, लेकिन एलजेपी की वजह से जदयू और महागठबंधन को दोनों को जहां झटका लगा, वहीं बीजेपी को नुकसान नहीं पहुंचा। नतीजों से साफ है कि एलजेपी चीफ बीजेपी के लिए हनुमान साबित हुए।
जदयू से वोट महागठबंधन को जाने के बजाय बीजेपी के पक्ष में चले गए
दरअसल, एलजेपी चीफ चिराग पासवान के अकेले सीएम नीतीश के कार्यकाल और कामकाज के खिलाफ किए गए कैंपेन और नीतीश के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ एनडीए के खिलाफ स्वाभाविक एंटी इनक्बेंसी से फिसले हुए वोट महागठबंधन को जाने के बजाय बीजेपी के पक्ष में चले गए, जिससे बीजेपी बिहार में एनडीए की नंबर वन पार्टी बन गई और महागठबंधन जीता हुआ चुनाव भी हारकर रेस से बाहर हो गई। हालांकि एलजेपी गोविंदगंज, लालगंज, भागलुपर, राघोपुर, रोसड़ा और नरकटियागंज जैसी सीटों पर एलजेपी ने बीजेपी के खिलाफ भी अपने प्रत्याशी उतारे थे।
पूरे चुनावी कैंपेन के दौरान बीजेपी के खिलाफ मुखर नहीं हुए चिराग
उल्लेखनीय है बिहार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही बर्तन-भाड़ा लेकर चिराग पासवान नीतीश पर हमलावर होते हुए अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। पूरे कैंपेन के दौरान बीजेपी के खिलाफ मुखर नहीं हुए चिराग पासवान प्रधानमंत्री मोदी के प्रति अपनी आस्था प्रकट रहे थे। चिराग ने जदयू के खिलाफ मोर्चो खोलते हुए उसके खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे थे। यहीं से इस चर्चा ने जोर पकड़नी शुरू की थी कि नीतीश से नाराज वोटर्स को विपक्षी खेमें में जाने से रोकने के लिए यह रणनीति बीजेपी द्वारा तैयार की गई थी।
बीजेपी की महागठबंधन को सत्ता तक नहीं पहुंचने देने की रणनीति सफल रही
ऐसा नहीं है कि महागठबंधन को सत्ता तक नहीं पहुंचने देने और जदयू को नुकसान पहुंचाने के लिए बीजेपी की रणनीति पूरी तरह सफल रही थी, क्योंकि राजद और जदयू को बिहार की छोटी पार्टियों ने भी काफी नुकसान पहुंचाया है। चिराग पासवान की एलजेपी ने जहां जदयू को करीब 30 सीट नहीं जीतने दिया, तो दूसरी तरफ ओवैसी की एआईएमआईएम ने आरजेडी के सारे समीकरण को बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभाई है। मुस्लिम बहुल इलाकों में एआईएमआईएम के कैंडीडेट उतारने से बीजेपी को फायदा मिला। पिछले में इन इलाकों में 3 सीट जीतने वाली बीजेपी 2020 में 12 सीट जीतने में कामयाब रही।
5 सीटों पर जीत दर्ज कर AIMIM ने राजद के MY समीकरण को बिगाड़ा
बिहार में कुल 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारने वाली एआईएमआईएम 5 सीटों पर जीत दर्ज की और उसने राजद के MY जातिगत समीकरण को भी नेतस्तनाबूद कर दिया। सीमांचल में राजद को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन एआईएमआईएम की एंट्री ने सीमांचल क्षेत्र में राजद-कांग्रेस गठबंधन का मटियामेट कर दिया। एआईएमआईएम ने अगर सीमांचल में राजद की हालत खराब नहीं की होती तो 17 नवंबर को नीतीश की जगह तेजस्वी यादव बिहार के अगले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले सकते थे। बीएसपी ने भी महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया। जिन 74 सीटों पर बीएसपी ने कैंडीडेट उतारे थे, उसमें से 60 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है।