रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में झूठी ख़बर का पूरा सच
इंटरनेट पर इस तस्वीर से जुड़े कई सर्च रिज़ल्ट सामने आए.
इस तस्वीर का इस्तेमाल पहली बार अक्तूबर 2009 में एक ब्लॉग में किया गया था, इस ब्लॉग के मुताबिक़ ये तिब्बती लोगों की अंतिम संस्कार की क्रिया को दिखलाती तस्वीर है जो अपने परिजनों के मृत शरीर को जंगली पक्षियों को खिलाने में विश्वास करते हैं.
सोशल मीडिया पर म्यांमार या बर्मा से विस्थापित होकर भारत आए रोहिंग्या मुसलमानों से जुड़ी एक अफ़वाह शेयर की जा रही है.
'आज तक गुड़गाँव' नाम का एक साप्ताहिक अख़बार है, जिसने लिखा है कि अगर 'सरकार सतर्क नहीं हुई तो हरियाणा में बड़ा बवाल हो सकता है क्योंकि हिंदुओं का माँस खाने वालों को मेवात में पनाह दी जा रही है.'
यह बता देना ज़रूरी है कि इस अखबार का इंडिया टुडे ग्रुप के आज तक चैनल से कोई लेना-देना नहीं है.
बीबीसी हिंदी की छानबीन से पता चला है कि तिब्बत की एक तस्वीर का इस्तेमाल करके यह अफ़वाह फैलाई गई है, जिसका रोहिंग्या लोगों से कोई संबंध नहीं है.
इस भड़काऊ सामग्री को ट्विटर और फ़ेसबुक के साथ गूगल प्लस पर भी शेयर किया गया है. कुछ लोगों ने लिखा है कि उन्हें ये 'डरावनी ख़बर' व्हॉट्सऐप पर मिली.
'दैनिक भारत न्यूज़' नाम की एक वेबसाइट ने भी 'आज तक गुड़गाँव' का हवाला देकर इसे अपनी साइट पर छापा है.
इस वेबसाइट ने एक कदम आगे जाकर अफ़वाह में 'हिंदुओं को कत्ल कर' जोड़ दिया जबकि मूल अफ़वाह फैलाने वाले 'आज तक गुड़गांव' ने 'हिंदू की लाश को खाते हुए पकड़े गए' लिखा था. यानी पहले से भड़काऊ अफ़वाह को और अधिक भड़काऊ बना दिया गया.
इस अफ़वाह की जांच के लिए बीबीसी ने मेवात के एसपी राजेश दुग्गल से बात की तो उन्होंने बताया कि, "यह एक फ़र्ज़ी ख़बर है. मेवात में रोहिंग्या मुसलमानों के ख़िलाफ़ कभी इस तरह की कोई आपराधिक वारदात दर्ज नहीं की गई है."
फिर किस आधार पर 'आज तक गुड़गाँव' अख़बार ने इस ख़बर को छापा? ये जानने के लिए हमने अख़बार के दफ़्तर में बात की.
इस अफ़वाह के बारे में बीबीसी ने 'आज तक गुड़गाँव' अख़बार के संपादक सतबीर भारद्वाज से बात की.
सतबीर भारद्वाज ने बताया कि वो 'आज तक गुड़गाँव' अख़बार के साथ-साथ पंजाब केसरी अख़बार के गुड़गाँव एडिशन के ब्यूरो चीफ़ भी हैं. पंजाब केसरी अख़बार के दिल्ली दफ़्तर ने बीबीसी से इस बात की पुष्टि की है.
भारद्वाज ने कहा, "हरियाणा में हिंदू माँस खाने वाले रोहिंग्या मुसलमानों की एक फ़ोटो वायरल हो रही थी. मेरे पास भी ये फ़ोटो व्हॉट्सऐप के ज़रिए आई थी."
सतबीर कहते हैं कि उन्होंने 'काशिफ़' नाम के किसी नौजवान के बयान के आधार पर ही 'हिंदू माँस खाये जाने' की पूरी कहानी लिखी थी.
काशिफ़ से उनकी मुलाक़ात किस जगह हुई? क्या उन्होंने मेवात या गुड़गाँव के किसी अधिकारी से बयान लिया? या किसी सामाजिक कार्यकर्ता और नेता से उन्होंने इस बारे में बात की? इन सवालों का कोई जवाब सतबीर भारद्वाज नहीं दे पाए.
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मेवात के एसपी राजेश दुग्गल ने बीबीसी को बताया कि मेवात ज़िले में 1356 रोहिंग्या मुसलमान हैं, सभी पंजीकृत हैं और उनका डेटा पुलिस के पास मौजूद है.
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अब जानिए तस्वीर की सच्चाई
सतबीर भारद्वाज ने अपने अखबार में जो तस्वीर छापी है, वीभत्स होने की वजह से बीबीसी ने उसे न छापने का फ़ैसला किया, जब इस तस्वीर की जांच की गई तो उसका सच सामने आ गया.
इंटरनेट पर इस तस्वीर से जुड़े कई सर्च रिज़ल्ट सामने आए.
इस तस्वीर का इस्तेमाल पहली बार अक्तूबर 2009 में एक ब्लॉग में किया गया था, इस ब्लॉग के मुताबिक़ ये तिब्बती लोगों की अंतिम संस्कार की क्रिया को दिखलाती तस्वीर है जो अपने परिजनों के मृत शरीर को जंगली पक्षियों को खिलाने में विश्वास करते हैं.
इसके अलावा हमें ये तस्वीर ब्लॉग में लिखे संदेश के साथ एक फ़ेसबुक पेज पर भी दिखी. इसे @PhramahaPaiwan नाम के फ़ेसबुक यूज़र ने 14 अगस्त, 2014 को पोस्ट किया था.
2014 में ही ये तस्वीर ट्विटर पर भी कुछ यूज़र्स ने ट्वीट की थी. इन तस्वीरों के साथ भी तिब्बती अंतिम क्रिया का ज़िक्र था और लिखा गया था कि ये तस्वीरें तिब्बत की हैं.
तिब्बती लोगों के अंतिम संस्कार के कई यू-ट्यूब वीडियो भी हैं. इनमें मृत शरीर को गिद्ध जैसे पक्षियों को खिला दिया जाता है.
उस तस्वीर को रोहिंग्या मुसलमानों की मेवात की तस्वीर बताकर झूठ को फैलाया गया.