क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

दिल्ली अग्निकांड में ज़िंदा बचने वाले मज़दूर की आपबीती

"सुबह के चार बजे थे, हम सब लड़के गहरी नींद में सो रहे थे, तभी एक लड़के के चिल्लाने की आवाज़ आई..." ये शब्द दिल्ली की आग में ज़िंदा बचने वाले मज़दूर मुबारक के हैं. इस अग्निकांड में मुबारक के अपने भाई समेत 40 से ज़्यादा लड़कों की मौत हो चुकी है. और कई लोगों की हालत अभी भी गंभीर बताई जा रही है. ये लड़के जिस इमारत में काम करते थे वह छह सौ वर्ग गज क्षेत्र में बनी थी.

By अनंत प्रकाश
Google Oneindia News
ज़िंदा बचने वाला शख़्स मुबारक
BBC
ज़िंदा बचने वाला शख़्स मुबारक

"सुबह के चार बजे थे, हम सब लड़के गहरी नींद में सो रहे थे, तभी एक लड़के के चिल्लाने की आवाज़ आई..."

ये शब्द दिल्ली की आग में ज़िंदा बचने वाले मज़दूर मुबारक के हैं.

इस अग्निकांड में मुबारक के अपने भाई समेत 40 से ज़्यादा लड़कों की मौत हो चुकी है.

और कई लोगों की हालत अभी भी गंभीर बताई जा रही है.

ये लड़के जिस इमारत में काम करते थे वह छह सौ वर्ग गज क्षेत्र में बनी थी.

वो कारखाना जिसमें आग लगी
Getty Images
वो कारखाना जिसमें आग लगी

इस इमारत में चार मंज़िलें थीं.

हर मंज़िल पर अलग-अलग चीज़ों का निर्माण किया जाता था जिनमें बच्चों के खिलौने, कपड़े, स्कूल बैग शामिल हैं.

इमारत की हर मंज़िल पर हर समय कच्चा माल मौजूद रहता था.

और सीढ़ियों पर तैयार हुए माल की पैकिंग करने का सामान रहता था.

बिल्डिंग से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता था, जिसमें आग लगी हुई थी.

हर मंज़िल पर काम सुबह नौ बजे से शुरू होकर शाम 9-10 बजे तक चलता था.

यहां काम करने वाले यहीं काम करते थे, सोते थे, नहाते थे और खाना पकाते थे.

दिल्ली अग्निकांड
Getty Images
दिल्ली अग्निकांड

इस हादसे में एक परिवार के छह-सात लड़कों की मौत हुई है. तो वहीं कई परिवारों में दो लड़कों और एक ही गाँव से आधा दर्जन से ज़्यादा लड़कों की मौत हुई है.

लेकिन इसके बाद जहां एक ओर केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार और दिल्ली एमसीडी इस हादसे के लिए एक दूसरे पर उंगलियां उठा रहे हैं.

वहीं, इस हादसे में ज़िंदा बचने वाले शख़्स मुबारक की आपबीती आपको उस दुनिया से रूबरू कराती है जिनमें ज़िंदगी आपके साथ और मौत आगे-आगे चलती है.

पढ़िए मुबारक की आपबीती...


जब आग लगी...

उस दिन सुबह के चार बजे थे. हम लोग वहीं ज़मीन पर दरी डालकर सोए हुए थे. छुट्टी का दिन था. हम सब लोग सो रहे थे.

तभी चार बजकर कुछ मिनट पर अचानक से एक लड़के के चिल्लाने की आवाज़ आई.

वो सुबह-सुबह टॉयलेट करने के लिए उठा था.

जब वो बाथरूम की ओर गया तो उसने देखा कि बाथरूम की लाइट नहीं जल रही है.

वैसे हमेशा बाथरूम की लाइट जलती रहती थी. लेकिन इसी दिन नहीं जल रही थी और बाथरूम का दरवाज़ा भी बंद था.

दिल्ली अग्निकांड
Getty Images
दिल्ली अग्निकांड

ये देखकर इस लड़के ने एमसीबी ऑन करने की कोशिश की. लाइट फिर भी नहीं जली तो इस लड़के ने बाथरूम का दरवाज़ा खोला तो धुआँ एक दम से उसकी ओर आया.

उसने तुरंत चिल्लाकर सब लड़कों को जगाने की कोशिश की.

कुछ जाग गए लेकिन कुछ लोग सोते ही रह गए...

जो खिड़की से चिपके रहे वही ज़िंदा बचे

जब ज़्यादा हो हल्ला हुआ तो हम सब लोग जाग गए. शायद कुछ लोग सोते भी रह गए होंगे.

क्योंकि घुप्प अंधेरा था. और बिलकुल भी दिखाई नहीं दे रहा था. ऐसे में कौन कहां था. पता ही नहीं चल रहा था.

बाहर भी रोशनी नहीं थी तो खिड़की भी ठीक से नहीं दिख रही थी कि किस ओर है.

लेकिन जब किसी तरह हम खिड़की पर पहुंचे तो थोड़ी राहत मिली.

कमरे में धुआँ इतना था कि खिड़की से मुँह हटाते ही लग रहा था कि बस अब साँस नहीं ले पाएंगे.

तो थोड़ी थोड़ी देर हम लोग बदल-बदलकर खिड़की से चिपककर साँस ले रहे थे.

दिल्ली अग्निकांड
BBC
दिल्ली अग्निकांड

क्योंकि इस खिड़की की शक्ल में एक लोहे का जंगला लगा हुआ था जिससे बाहर की हवा भी नहीं आ रही थी.

हम पांच छह लड़के खिड़की से चिपके हुए थे. लेकिन एक छोटी सी खिड़की से कितने लोगों की साँस मिल सकती है...

इसी वजह से हम ज़िंदा बच पाए...

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
The story of the workers who survived the Delhi fire
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X