पहियों पर तैरने, उड़ने वाली लब्धि की उपलब्धियों की कहानी
पैरों मे पहिए बांधे वो पलक झपकते ही फिसलन भरी फर्श पर मानो पानी में तैरती सी नज़र आती है.
पैरों मे पहिए बांधे वो पलक झपकते ही फिसलन भरी फर्श पर मानो पानी में तैरती सी नज़र आती है.
स्केट्स के पिछले पहियों पर खड़ी होकर 'शक्तिमान' बन जाती है. स्केटिंग कोर्ट का चक्कर लगाकर लौटने पर उसकी नन्ही कलाइयां पापा की कलाइयों में घुलमिल सी जाती हैं.
टाइम पूछकर नन्हे से मुंह से वो कहती है, 'पापा मैं और तेज़ कर सकती हूं.'
सात साल की उम्र में उदयपुर की लब्धि सुराणा के पास स्केटिंग के 64 मेडल हैं, जिसमें से 8 इंटरनेशनल मेडल हैं.
14 नवंबर को असाधारण प्रतिभा के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से सम्मानित हुई लब्धि अब ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतना चाहती हैं.
बदपरहेज़ी से परहेज़
जिस उम्र में बच्चे चॉकलेट, पिज्ज़ा, बर्गर, चाट के लिए जीभ लपलपाते नज़र आते हैं. लब्धि प्रैक्टिस पर असर पड़ने के खौफ से भिंडी, केले, दो अंडे खाकर खुश रहती हैं.
इस छोटी सी उम्र में वो जानती हैं कि अगर एक दिन भी बदपरहेज़ी की तो प्रैक्टिस पर असर पड़ेगा. दिन के 24 घंटे का सारा काम तय रहता है.
पहियों पर 'तैरने' का शौक कैसे चढ़ा?
लब्धि बताती हैं, 'पापा मुझे टेनिस प्लेयर बनाना चाहते थे लेकिन मेरे पैर मज़बूत नहीं थे. कोच ने कहा कि स्वीमिंग या स्केटिंग करने से पैर मज़बूत होते हैं. तभी से मैं स्केटिंग करने लगी. मुझे इसमें बहुत मज़ा आता है.'
लब्धि के आगे बढ़ने में उनकी मम्मी अंजलि सुराणा का रोल भी कम नहीं है.
अंजलि बताती हैं, ''मैं खुद भी बास्केटबॉल की खिलाड़ी रह चुकी हूं. इसलिए समझती हूं कि खेलना बच्चे के लिए कितना ज़रूरी है. लब्धि की सबसे अच्छी बात ये है कि उसे किसी काम के लिए कहना नहीं पड़ता है. उसे पता है कि उसे क्या करना है. कितनी कैलोरी लेनी है, कितने घंटे प्रैक्टिस करनी है और कितने घंटे सोना है.
लब्धि ज़िद नहीं करती है. लेकिन अगर किसी दिन उसे प्रैक्टिस पर लेकर नहीं जाओ तो वो गुस्से में घर के भीतर ही स्केटिंग करने लगती है.''
इस छोटी सी उम्र में लाब्धी स्ट्रिक्ट डाइट फॉलो करती हैं और टीवी कम देखती हैं. शादी-बर्थडे पर नहीं जाती है क्योंकि वहां का खाना खाकर प्रैक्टिस ज्यादा करनी होती है. लब्धि किसी मौसम में प्रैक्टिस मिस नहीं करती.
लाब्धी को भाई नहीं, बहन क्यों चाहिए?
जवाब है मेकअप के लिए. दरअसल कुछ दिन पहले ही लब्धि की मां ने नन्हे से बच्चे को जन्म दिया है.
अंजलि बताती हैं, ''लब्धि को भाई के होने की बिल्कुल भी खुशी नहीं थी. उसे भाई नहीं बहन चाहिए थी ताकि वो उसका मेकअप कर सके. बड़ी मुश्किल से उसे समझाया कि भाई भी अच्छा होता है. जब वो थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो हम उससे दंगल करवाएंगे. इसके बाद उसने अपने भाई को प्यार करना शुरू किया.''
लब्धि कहती है, ''मेरा भाई बड़ा होकर ज़ायरा दीदी (ज़ायरा वसीम) जैसा बनेगा. जब वो सोता है तो मुझे लात मारता है.''
स्केटिंग के अलावा लाब्दी के शौक
सुबह पांच बजे उठकर स्केटिमग कॉस्ट्यूम पहनकर कोर्ट पर वॉर्मअप और चक्कर लगाने वाली लब्धि एक अच्छी जिमनास्ट भी हैं.
लब्धि के मम्मी-पापा डरते भी हैं कि कहीं किसी दिन वो स्केटिंग छोड़कर जिमनास्ट न करने लगे. हालांकि जिमनास्ट और स्केटिंग की बात छोड़ दी जाए तो लब्धि को मेकअप करना बहुत पसंद है.
लब्धि के पिता कपिल सुराणा बताते हैं कि जब मैं कहीं बाहर जाता हूं तो वो अपने लिए मेकअप का सामान लाने को कहती है.
कैसा रहा राष्ट्रपति से सम्मान पाने का अनुभव?
इस सवाल पर अंजलि भावुक होकर कहती हैं, ''मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरी बेटी को राष्ट्रपति से सम्मान मिलेगा. रेड कार्पेट पर जब वो ईनाम पाने के लिए आगे बढ़ रही थी तो उसके हर कदम के साथ मेरे सपने पूरे हो रहे थे. हमने इस सम्मान के लिए लब्धि का नाम भेज तो दिया था लेकिन 10 नवंबर तक कोई सूचना नहीं थी. हम भी उम्मीद छोड़ चुके थे लेकिन शाम को ही फ़ोन आया.''
लब्धि के घर में 15 लोग हैं. अब तक वो सबसे छोटी थी लेकिन अब जब भाई आ गया है तो बड़ी हो गई है.
कपिल कहते हैं, ''हमने कभी भी लब्धि पर अपने सपनों का बोझ नहीं लादा. वो कुछ जीतकर आती है तो खुशी होती है लेकिन जिस दिन वो स्केटिंग छोड़ना चाहे छोड़ दे. आगे का तो नहीं पता लेकिन वो खुद स्केटिंग के बिना नहीं रह सकती.''
लिपस्टिक, आईलाइनर, रूज़ लगाकर ड्रैसिंग टेबल के सामने बैठी लब्धि आइने से एक क्यूट सवाल पूछती हैं, 'इस दुनिया में सबसे खूबसूरत कौन?'
ये पूछकर लाब्धी मुस्कुराते हुए खुद ही जवाब देती है, ''मेरा मिरर हमेशा मेरा ही नाम लेता है. आइने को सबसे सुंदर मैं ही लगती हूं.''
खुद के सवाल का जवाब पाकर लब्धि फिर पहियों को पैरों में पहन लेती हैं, ताकि तैर सके या ये कहें कि उड़ सके.