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असम में मंदिरों के निर्माण में मदद करने वाले मुस्लिम जोड़े की कहानी

असम में एक मुस्लिम दंपती हिंदू पूजा स्थलों के निर्माण और मरम्मत में आर्थिक मदद करके सांप्रदायिक सौहार्द का उदाहरण पेश कर रहें हैं.

By दिलीप कुमार शर्मा
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हामिदुर रहमान
Dilip Kumar Sharma/BBC
हामिदुर रहमान

धर्म के नाम पर होने वाली राजनीति से बिल्कुल परे असम में एक मुस्लिम दंपती हिंदू पूजा स्थलों के निर्माण और मरम्मत में आर्थिक मदद करके सांप्रदायिक सौहार्द का एक उदाहरण पेश कर रहें हैं.

इस मुस्लिम दंपती की ये मदद सिर्फ़ मंदिर-मस्जिदों तक ही सीमित नहीं है बल्कि उन्होंने अपने आसपास के इलाकों में कई रास्ते भी बनवाए हैं.

जोरहाट ज़िले में कई मंदिरों और 'नामघरों' के निर्माण और मरम्मत कार्य करवाने की इस पहल से 39 वर्षीय हामिदुर रहमान और उनकी पत्नी पारसिया सुल्ताना रहमान इन दिनों सुर्खियों में आ गए हैं. हालांकि, हामिदुर अपने योगदान को लेकर मीडिया में हो रही चर्चा को सही नहीं ठहराते.

तिताबर बोकाहोला के स्थायी निवासी हामिदुर ने बीबीसी से कहा,"मेरे पिता जिस चाय बागान में नौकरी करते थे वहां बतौर मुसलमान केवल हमारा परिवार ही था बाकि सारे लोग हिंदू थे. हमारी कॉलोनी के लोगों और दोस्तों ने कभी इस बात का अहसास ही नहीं होने दिया कि हम मुसलमान हैं."

"चाय बागान में एक हरि मंदिर था जहां भाओना अर्थात पौराणिक नाटक होते थे. मैं अपने दोस्तों के साथ भाओना में कई भूमिकाएं निभाता था और यह सिलसिला मेरे कॉलेज पहुंचने तक चलता रहा. यही वजह है कि मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं और मेरी हैसियत के अनुसार थोड़ी बहुत मदद कर देता हूं. मैं यह काम मीडिया में आने के लिए नहीं बल्कि दिल के सुकून के लिए करता हूं."

हामिदुर रहमान और उनकी पत्नी पारसिया सुल्ताना
Dilip Kumar Sharma/BBC
हामिदुर रहमान और उनकी पत्नी पारसिया सुल्ताना

असम में धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश

असम में मीडिया की सुर्खियाँ बन रही सांप्रदायिक सौहार्द की ऐसी ख़बरों के बारे में राज्य के वरिष्ठ पत्रकार बैकुंठ नाथ गोस्वामी कहते हैं, "हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की राजनीति के कारण असम में सांप्रदायिक सौहार्द की एक छोटी ख़बर भी बड़ी हेडलाइन बन रही है. दरअसल हाल के कुछ सालों में असम की राजनीति में जो बदलाव देखने को मिला है उससे हिंदू-मुस्लिम के बीच खाई पैदा करने की कोशिश होती रही है. जबकि इससे पहले राज्य में ऐसा माहौल कभी नहीं था."

"आम लोगों को भी अब महसूस होने लगा है कि हिंदू-मुस्लिम को एक-दूसरे के ख़िलाफ़ करके वोट हासिल करने की कोशिश हो रही है. लेकिन खासकर ऊपरी असम में हिंदू-मुसलमान जिस कदर एकसाथ है वहां विभाजन की राजनीति सफल नहीं हो सकती."

असम में मंदिरों के निर्माण में मदद करने वाले मुस्लिम जोड़े की कहानी

क्या हामिदुर किसी तरह के डर के माहौल की वजह से मंदिरों और 'नामघरों' के निर्माण और मरम्मत कार्य में मदद कर रहें है?

इस सवाल का जवाब देते हुए शांतिपुर सार्वजनिक नामघर संचालन समिति के अध्यक्ष बिनोंदो शर्मा कहते हैं, "हमारे समाज में हिंदू-मुस्लिम के बीच कोई भेदभाव नहीं है. इसलिए किसी के मन में कोई डर नही है. यह श्रीमंत शंकरदेव और अजान फकीर का देश है और उन्होंने हमें साथ मिलकर रहना सिखाया है. हम श्रीमंत शंकरदेव के शिष्य हैं, लिहाजा हमारे मन में हिंदू-मुसलमान को लेकर कोई दुर्भावना आ ही नहीं सकती. हामिदुर खुद चलकर हमारे नामघर के कुछ निर्माण कार्य में मदद करने आए हैं जिसे हम लोगों ने सम्मान के साथ स्वीकार किया है."

श्रीमंत शंकरदेव और अजान फकीर की धरती

असम को श्रीमंत शंकरदेव और अजान फकीर की धरती कहा जाता है. इन दोनों महापुरुषों की भूमि में सांप्रदायिक सद्भाव की सदियों पुरानी परंपरा चली आ रही है.

श्रीमंत शंकरदेव असम के प्रसिद्ध वैष्णव संत और सामाजिक-धार्मिक सुधारक थे जिन्होंने सर्वप्रथम बटद्रवा नामक स्थान में सत्र (मठ) की स्थापना की. इस सत्र में एक प्रार्थना घर अर्थात नामघर बनाया गया जहाँ नाम (कीर्तन) किया जाता था. असम के हिंदू बहुल गांवों में एक नामघर जरूर मिल जाता है.

जबकि मुस्लिम उपदेशक अजान फकीर के बारे में कहा जाता है कि वो बगदाद से असम के शिवसागर आए थे और उन्होंने यहां सूफी इस्लाम की स्थापना की.

असम में मंदिरों के निर्माण में मदद करने वाले मुस्लिम जोड़े की कहानी

पांच वक्त की नमाज पढ़ने वाले हामिदुर यहां मंदिरों और नामघर में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में भी बराबर भाग लेते हैं. मुसलमानों में मूर्ति पूजा करने वालों को काफ़िर कहा जाता है जबकि हामिदुर ने यहां हिंदुओं की प्रमुख देवी मां काली की मूर्ति भेंट करने से लेकर त्रिशूल, मंदिर में बजने वाला घंटा तक दान में दिया है.

बुतपरस्ती पर वे कहते हैं, "सबका धर्म अलग-अलग है और ईश्वर की उपासना के तरीके भी अलग हैं. मैं अपने धर्म के नियमों को मानता हूं और वे लोग (हिंदू) अपने नियम से सबकुछ करते हैं. इसलिए किसी को कोई ऐतराज़ क्यों होगा. मैं 2013-14 से लोगों की मदद कर रहा हूं क्योंकि मुझे इस तरह के काम करना अच्छा लगता है. कुछ लोग मेरे पास मदद मांगने आते हैं और कहीं पर मैं जाता हूं और अगर वहां किसी भी चीज़ की कमी देखता हूं तो उसे ठीक करने की कोशिश करता हूं."

सड़कों की भी मरम्मत

हिंदू धर्म के लोगों की मदद कर रहे हामिदुर के काम की स्थानीय मुसलमान भी प्रशंसा करते हैं.

बोकाहोला जामा मस्जिद निर्माण समिति के सचिव अब्दुल रऊफ़ अहमद कहते हैं, "हामिदुर ने हमारी मस्जिद के निर्माण और सौंदर्यीकरण के लिए करीब 12 लाख रुपये दान में दिए हैं. इसके बाद वो दूसरे धर्म के लोगों की भी मदद कर रहा है. दरअसल यह बहुत नेक काम है और इसमें किसी को भी आपत्ति नहीं है. तिताबर में हमेशा सांप्रदायिक सद्भाव का माहौल रहा है और यहां किसी के धर्म को लेकर कोई बुरा अनुभव आज तक नहीं हुआ है."

असम में तिताबर विधानसभा क्षेत्र की अहमियत इसलिए ज़्यादा है क्योंकि तरुण गोगोई यहीं से चुनाव जीतकर लगातार 15 साल राज्य के मुख्यमंत्री रहें हैं और वे आज भी यहां से विधायक हैं. लेकिन हामिदुर की चर्चा इसलिए हो रही है कि उन्होंने मंदिर-मस्जिद की मदद के अलावा कई इलाक़ों में रास्ते भी बनवाए हैं.

शहर के शाह आलम पथ का ज़िक्र करते हुए बुबुल हुसैन कहते हैं, "पहले बारिश के दिनों में ये रास्ता पानी से भर जाता था. रात के समय तो हमारे यहां कोई भी व्यक्ति इस रास्ते से जाने का जोख़िम नहीं उठाता था. गांव वालों ने जब यह बात हामिदुर रहमान को बताई तो उन्होंने खुद खड़े होकर इस रास्ते की मरम्मत करवाई. पानी निकलने के लिए नालियों की व्यवस्था की. अब इस रास्ते पर गाड़ी- मोटरसाइकिल आसानी से आना-जाना कर रहें हैं."

असम में मंदिरों के निर्माण में मदद करने वाले मुस्लिम जोड़े की कहानी

तिताबर शहर के साप्ताहिक बाज़ार में मौजूद सार्वजनिक शिव मंदिर के निर्माण में हामिदुर से मिली वित्तिय सहायता पर मंदिर कमेटी के अध्यक्ष राजेन हजारिका कहते हैं, "2008 में यह मंदिर बांस और टिन से बनाया था. लेकिन कुछ सालों बाद मंदिर की हालत खराब हो गई थी."

"हमने उस समय तरुण गोगोई की सरकार से भी मदद मांगी थी लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ. फिर स्थानीय लोगों की मदद से मंदिर के पक्के निर्माण का थोड़ा बहुत काम शुरू किया था और उसी दौरान हामिदुर ने मंदिर निर्माण के लिए ईंटे दीं और सामने का गेट बनवा कर दिया. इस शिव मंदिर का घंटा और त्रिशूल भी हामिदुर ने ही दिया है. आज हमारा मंदिर अच्छा हो गया और हामिदुर को भी कोरोबार में काफी उन्नति हुई है."

तिताबर हैंडिक गांव में मौजूद नामघर में एक प्राथना हॉल का निर्माण करवाने से लेकर हामिदुर ने यहां के बंगाली पट्टी के राधा कृष्ण हरि मंदिर में लोगों के लिए टॉयलेट बनाव कर दिया है. राधा कृष्ण मंदिर कमिटी के अध्यक्ष निकु मालाकार मंदिर के सामने वाली रोड को दिखाते हुए कहते हैं कि हामिदुर की वजह से ही इस रास्ते का निर्माण हुआ है.

असम में मंदिरों के निर्माण में मदद करने वाले मुस्लिम जोड़े की कहानी

पहले थी ख़राब आर्थिक हालत

जोरहाट के चिनामारा में स्टील इंडस्ट्री चलाने वाले हामिदुर रहमान के बारे में स्थानीय लोग कहते हैं कि पहले उनके आर्थिक हालात बहुत खराब थे लेकिन बीते कुछ सालों में उन्होंने काफी उन्नति की है.

हामिदुर के इस नेक काम में हर कदम पर सहयोग करने वाली उनकी पत्नी पारसिया सुल्ताना कहती हैं, "लोगों की मदद करने से ज्यादा अच्छा काम और क्या हो सकता है. हमारा पूरा परिवार इसका समर्थन करता है. हमें लोगों की बहुत दुआएं मिली हैं."

"मेरी दो बेटियां हैं और हम चाहते हैं कि वो इस तरह के एक समाज में आगे बढ़ें जहां लोग धर्म से परे एक-दूसरे की मदद करते हों. मैं अक्सर अपने पति के साथ यहां के मंदिरों में जाती हूं और वहां प्रथाना करती हूं. किसी ने भी आज तक कोई आपत्ति नहीं की. हमारे परिवार में तो एक बहू हिंदू धर्म से है और हम सब लोग सालों से बेहद खुशी के साथ रह रहें हैं."

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English summary
The story of a Muslim couple who helped build temples in Assam
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