वो गौरैया जो दंगों में पुलिस की गोली का शिकार हुई थी
आज दुनिया विश्व गौरैया दिवस मना रही है.
इस मौके पर हम आपको उस गौरैया की कहानी सुना रहे हैं जो दंगों में पुलिस की गोली का शिकार हुई थी.
बात 1974 की है. उन दिनों गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन जोरों पर था. आर्थिक संकट और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ ये छात्रों और मध्य वर्ग का सामाजिक आंदोलन था.
इस आंदोलन में हिंसा भी हुई और हालात इतने बिगड़ गए कि 100 लोग मारे गए.
आज दुनिया विश्व गौरैया दिवस मना रही है.
इस मौके पर हम आपको उस गौरैया की कहानी सुना रहे हैं जो दंगों में पुलिस की गोली का शिकार हुई थी.
बात 1974 की है. उन दिनों गुजरात में नवनिर्माण आंदोलन जोरों पर था. आर्थिक संकट और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ ये छात्रों और मध्य वर्ग का सामाजिक आंदोलन था.
इस आंदोलन में हिंसा भी हुई और हालात इतने बिगड़ गए कि 100 लोग मारे गए.
ओ री गोरैया, अंगना में फिर आजा रे...
ताकि ग़ायब न हो जाए गौरैया....
अहमदाबाद के पुराने शहर में लोग उस वाकये को अपनी तरह से याद करते हैं. उन्होंने एक गौरैया की याद में एक स्मारक बनवाया.
ये वही गौरैया थी जो दंगों में पुलिस की गोली का शिकार हुई थी.
गौरैया का ये स्मारक अहमदाबाद के पुराने शहर के 'ढल नी पोल' इलाके में देखा जा सकता है.
एक शख्स जो बनाता है गौरैयों का आशियाना
स्मारक के बाहर लगे पत्थर पर लिखा है, '1974 के दंगों के दौरान दो मार्च, शाम 5:25 बजे एक भूखी गौरैया पुलिस फ़ायरिंग का शिकार हो गई थी.''ढल नी पोल' इलाके के लोग इस स्मारक की आज भी देखभाल करते हैं.