‘केरल टू पटना’ की सवारी कहीं पड़ न जाए भारी, जैसे-तैसे आये तो लेकिन खाएंगे कैसे?
पटना। बिहार में एक तरफ सख्त लॉकडाउन है तो दूसरी तरफ बाहर से आने वाले लोगों की भीड़भाड़ बनी हुई है। रेलवे स्टेशन पर भीड़ होने से सोशल डिस्टेंसिंग का आदेश बेअसर है। प्रधानमंत्री मोदी लोगों से अपील कर रहे हैं कि जो जहां हैं, वहीं रहें। लेकिन उनकी इस अपील का कुछ असर नहीं हो रहा। रोजगार के लिए बिहार से बाहर गये लोग दोहरी मार झेल रहे हैं। एक तो उनका रोजगार छीन गया दूसरे उन्हें घर जाने के लिए मजबूर किया जा रह है। इसकी वजह से वे जैसे-तैसे बिना किसी परवाह के पटना लौट रहे हैं। बुधवार को एर्नुकुलम एक्सप्रेस करीब चार हजार यात्रियों को लेकर दानापुर पहुंची। लेकिन ट्रेन प्लेटफॉर्म पर पहुंचने के पहले आउटर सिग्नल के पास रुक गयी थी। इसकी वजह से करीब एक सौ यात्री बिना स्क्रीनिंग के बाहर निकल गये। कोरोना से प्रभावित राज्यों में केरल सबसे ऊपर है। अगर केरल से आया कोई यात्री बिना जांच कराये अपने गांव में पहुंचता है तो यही दुआ करनी चाहिए कि वह ठीक ठाक हो। वर्ना रेलवे की लापरवाही ने तो लोगों के मन में आशंकाएं पैदा कर दी हैं।
केरल टू पटना
दानापुर रेलवे स्टेशन के अफसरों को एर्नाकुलम एक्सप्रेस के आने की जानकारी थी। उन्हें मालूम था ये ट्रेन उस केरल राज्य से आ रही है जहां सबसे पहले कोरोना संक्रिमत को पाया गया था। इसके बावजूद ट्रेन को सीधे प्लेटफॉर्म पर नहीं लाया गया। उसे आउटर सिग्नल के पास रोक दिया गया। जैसे ही ट्रेन आउटर सिग्नल के पास रुकी करीब एक सौ यात्री इधर-उधर उतर कर बाहर निकल गये। जैसे ही इस बात की जानकारी रेलवे के मुलाजिमों को लगी उन्हें चूक का अंदाजा हो गया। रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स के सहयोग से रेलवे कर्मचारियों ने आउटर सिग्नल के पास ही ट्रेन को घेर लिया। करीब साढ़े तीन हजार यात्रियों को प्लेटफॉर्म पर लाया गया। सबकी जांच की गयी। प्रारंभिक जांच में कोई कोरोना संदिग्ध नहीं पाया गया। सोमवार को पटना में बेंगलुरू से आये भी कई यात्री बिना जांच कराये ही बार निकल गये थे। रेलवे स्टेशनों पर जो जांच हो रही है वह प्रारंभिक चरण की है। वास्तविक जांच में समय लगता है और उसकी रिपोर्ट देर से मिलती है। कई मामलों में कोरोना के लक्षण देर से प्रगट हुए हैं। इसलिए दूसरे राज्यों से जो आ रहे हैं उन्हें बिल्कुल एहतियात से रहने की जरूरत है।
सरकार का दावा फेल, आलू -प्याज के दाम में लगी आग
वैसे तो सरकार का दावा है कि खाद्य सामग्री की कोई कमी नहीं है और उसकी आपूर्ति जारी रहेगी, लेकिन हकीकत अलग है। व्यापारी कम माल आने का बहाना बना कर महंगा सामान बेचने लगे हैं। 22 मार्च को पटना समेत देश के 75 जिलों में 31 मार्च तक लॉकडाउन लागू किया गया था। उस दिन पटना के खुदरा दुकानदार 20 रुपये किलो आलू और 28 रुपये किलो प्याज बेच रहे थे। लेकिन जैसे 24 मार्च की रात प्रधानमंत्री मोदी ने 21 दिनों के सख्त लॉकडाउन की घोषणा की लोग बाजार की तरफ झोला लेकर दौड़ पड़े। एक दिन पहले जो आलू 20 रुपये किलो बिक रहा था उसका दाम 32 रुपये प्रतिकिलो पर पहुंच गया। प्याज 28 रुपये की जगह 36 रुपये बिकने लगा। पंद्रह घंटे बाद ही (25 मार्च) प्याज-आलू के दाम में आग लग गयी। दोपहर तक यह पचास से साठ रुपये किलो बिकने लगा। आलू 35 से 40 रुपये किलो तक पहुंच गया। ये भाव कहां तक उछाल मारेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता।
पेट भरने की मशक्कत
कई दुकानों में आटा नहीं मिल रहा। हालांकि पटना जिला प्रशासन ने कालाबाजारी पर अंकुश के लिए मंगलवार को बड़ी मंडियों के गोदामों में छापा मारा। गोदामों में आटा भरा पड़ा था। व्यापारियों के पास बहानों की कमी नहीं। उन्होंने कहा कि चूंकि लोड करने वाले मजदूर नहीं आ रहे हैं इस लिए आटा दुकानों तक नहीं पहुंच रहा। अफसर हर दुकान की निगरानी तो नहीं कर सकते। ऐसे में दुकानदार लोगों की मजबूरी का फायदा उठाने से बाज नहीं आ रहे। केवल पटना में ही नहीं बल्कि अन्य शहरों में लोगों के बीच आलू-प्याज और आटा खरीदने की होड़ लग गयी है। इसकी वजह से से भी दाम तेजी से भाग रहा है। फल और सब्जियों के वाहनों को आने जाने की मंजूरी है लेकिन इसकी आपूर्ति मांग के हिसाब से नहीं हो रही। सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन की वजह से सब्जी मंडी में बहुत कम लोग आ रहे हैं। फल कच्चा सौदा है इसलिए दुकानदार भी जरूरत से कम सामान ला रहे हैं।
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