विधानसभा उपचुनाव में कौन किस पर पड़ेगा भारी, दांव पर लगी हैं प्रतिष्ठा
बेंगलुरु। देश में राजनीतिक दंगल शुरु हो चुकी हैं। चुनाव आयोग द्वारा शनिवार को महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनावों के साथ 18 राज्यों की 64 सीटों पर होने वाले उपचुनाव की भी घोषणा कर दी है। जिसके बाद से इन प्रदेशों में चुनावी सरगर्मियां तेज हो गयी हैं।
कर्नाटक की सीएम बीएस येदियुरप्पा की सरकार का भविष्य इसी उपचुनाव पर टिका हुआ हैं। वहीं अन्य राज्यों के चुनाव इसलिए भी अहम माने जा रहे हैं कि क्योंकि इसके परिणाम देश भर की राजनीतिक पार्टियों के समीकरण भी निर्धारित करेंगे।
18 राज्यों की 64 सीटों पर 21 अक्टूबर को उपचुनाव
चुनाव आयोग ने बताया कि अरुणाचल प्रदेश-1, बिहार-5, छत्तीसगढ़-1, असम-4, गुजरात-4, हिमाचल प्रदेश-2, कर्नाटक-15, केरल-5, मध्य प्रदेश-1, मेघालय-1, ओडिशा-1, पुडुचेरी-1, पंजाब-4, राजस्थान-2, सिक्किम-3, तमिलनाडु-2, तेलंगाना-1 और उत्तर प्रदेश-11 की कुल 64 सीटों के लिए उपचुनाव 21 अक्टूबर को होंगे जबकि मतों की गिनती 24 अक्टूबर को होगी।
2019 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत के बाद हो रहा यह पहला चुनाव बीजेपी के लिए जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत भाजपा की लोकप्रियता की परीक्षा होगी वहीं कांग्रेस, सपा, बसपा समेत अन्य पार्टियों के लिए यह चुनाव अपनी स्थिति को सुधारने का मौका भी हैं। इसलिए बड़ी से छोटी स भी राजनीतिक पार्टियां उपचुनाव में अपना पूरा दम खम लगा रहे हैं। भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के साथ इन 63 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भी कई राजनीतिक पार्टियां गठबंधन कर सकती हैं। इस उपचुनाव में मिली जीत के बाद के नतीजे कई राज्यों में सियासत की नई स्क्रिप्ट लिखेंगे।
कर्नाटक में टिका हैं येदियुरप्पा सरकार का भविष्य
बता दें इस उपचुनाव में सबसे अहम कर्नाटक में 15 सीटों पर होने वाले उपचुनाव हैं। चुंकि यहां भारी बड़े सियासी जद्दोजहद के बाद भापजा यहां सत्ता पर काबिज हुई है इसलिए कर्नाटक में विधानसभा उपचुनाव सीएम बीएस येदियुरप्पा और भापजा के लिए करो या मरो का सवाल के साथ प्रतिष्ठा का सवाल हैं। गौर करने वाली बात ये हैं कि जिन 15 सीटों पर विधानसभाउपचुनाव होने वाले हैं वह वहीं सीटें हैं जो कांग्रेस और जदएस के विधायक के इस्तीफे से खाली हुई है। बहुमत हासिल करने के लिए सत्ता पर काबिज भाजपा को हर हाल में 8 सीटें जीतनी होगी। ऐसा नहीं होने पर येदियुरप्पा और भाजपा सरकार संकट में आ सकती हैं। विशेषज्ञ मान रहे है कि येदियुरप्पा की चुनौती इसलिए भी बड़ी है कि जिन इलाकों की ये सीटें हैं उन्हें कांग्रेस-जदएस का गढ़ माना जाता है। इस समय 224 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के पास 105 विधायक हैं जो बहुमत से 8 कम हैं।
यूपी में प्रतिष्ठा बचाने का है सवाल
उत्तर प्रदेश की भापजा सरकार के लिए यह उपचुनाव उसकी प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ हैं। वहं समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और बहुजन समाजवादी पार्टी सुप्रीमों मायावती के लिए यह चुनाव जीतना अपनी स्थिति को बेहतर बनाने से जुड़ा हैं। यूपी के सीएम योगीआदित्यनाथ के सामने जहां भाजपा की 11 में से 9 सीटें बचाने की चुनौती है, वहीं नतीजे यह साबित करेंगे कि सपा और बसपा में से कौन सही मायने में भाजपा को टक्कर दे रहा है। सपा और बसपा दोनों को पता है कि उपचुनाव के नतीजे में विपक्ष का वोट जिस दल की ओर ज्यादा झुकेगा उस दल के पक्ष में भविष्य में भाजपा विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण भी होगा। यही कारण है कि सपा और बसपा ने उपचुनाव के लिए सारी ताकत झोंक दी है।
उपचुनाव में फिलहाल सपा ने अब तक 3 प्रत्याशी घोषित किए हैं। वहीं, बहुजन समाज पार्टी की बात करें तो 12 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में से 11 सीटों पर बसपा ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा पहले ही कर दी है। वैसे आम तौर पर विधानसभा उपचुनाव को सत्तारूढ़ दल का चुनाव माना जाता है। लोकसभा चुनाव के रिजल्ट के बाद पहली बार सभी सियासी पार्टियां अलग-अलग होकर अपना चुनाव लड़ रही हैं. यह चुनाव इसलिए भी और ज्यादा खास हो जाता है, क्योंकि सभी सियासी पार्टियों को अपने बेस वोट के साथ-साथ अपनी आइडियोलॉजी पर वोट मांगने का मौका मिलेगा।
बिहार
यूपी की ही तरह बिहार में भी यह उपचुनाव सीएम नीतीश कुमार की प्रतिष्ठा टिकी हुई हैं। बिहार में ऐसे समय में विधानसाभा की पांच सीटों और लोकसभा की एक सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं जब भाजपा और जदयू में तनातनी चल रही है। विधानसभा की चार सीटों पर जदयू तो लोकसभा की एक सीट पर लोजपा का कब्जा था। नीतीश अगर अपनी सीटें बचाने में कामयाब रहे तो उनका कद बढ़ेगा, मगर तब अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे राजद की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी।
राजस्थान और मध्यप्रदेश
राजस्थान और मध्यप्रदेश दोनों राज्यों में कांग्रेस ने बमुश्किल सरकार बनाई थी। इन दोनों राज्यों के उपचुनाव के नतीजे बताएंगे कि वहां की सियासत में जारी रस्साकसी के खेल में भाजपा और कांग्रेस में किसका पलड़ा भारी है। इन दोनों राज्यों हालांकि, लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। अब मध्यप्रदेश की एक और राजस्थान की जिन दो सीटों पर उपचुनाव होने हैं, वह सीटें भाजपा और उसके सहयोगी की थी। जाहिर तौर पर अगर कांग्रेस ये सीटें छीनने में कामयाब रही तो उसका मनोबल बढ़ेगा, दूसरी स्थिति में भाजपा को मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल होगा।
केरल
केरल के नतीजे तय करेंगे कि वाम दलों की देश की सियासत में आखिरी उम्मीद भी बचेगी या नहीं ? क्योंकि केरल वाम दलों की आखिरी उम्मीद है, जिसे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने हिला कर रख दिया था। इस राज्य की पांच सीटों पर चुनाव होने हैं। नतीजे तय करेंगे कि क्या मतदाताओं ने वाम राजनीति के ताबूत में आखिरी कील ठोकने का फैसला कर लिया है।
इसे भी पढ़े- पंजाब में होने वाले उपचुनाव के लिए कांग्रेस की ओर से उम्मीदवारों के नाम घोषित