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गूगल के इंडिया से इश्क़ की असल कहानी, क्यों भेज रहे अरबों डॉलर सुंदर पिचाई

गूगल ने भारत में अगले पाँच से सात सालों में भारत में 10 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की है. क्या सोचकर भारत में इतनी बड़ृी रक़म लगा रहे हैं सुंदर पिचाई?

By अपूर्व कृष्ण
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सुंदर पिचाई
Reuters
सुंदर पिचाई

विश्वविख्यात टेक कंपनी गूगल ने भारत के लिए एक स्पेशल फ़ंड बनाया है- गूगल फोर इंडिया डिजिटाइज़ेशन फ़ंड. वो अगले पाँच से सात साल में भारत में 10 अरब डॉलर यानी लगभग 750 अरब रुपए का भारी निवेश करेगा.

गूगल कंपनियों में पैसा लगाएगी, या साझीदारी करेगी? इस बारे में कंपनी के सीईओ सुंदर पिचाई ने अख़बार इकोनॉमिक्स टाइम्स से कहा - "हम निश्चित तौर पर दोनों तरह की संभावनाओं को देखेंगे, हम दूसरी कंपनियों में पैसा लगाएँगे, जो हम पहले से ही अपनी ईकाई गूगल वेंचर्स के ज़रिए कर रहे हैं, मगर निश्चित तौर पर ये फ़ंड जितना बड़ा है, उसमें ये भी संभावना है कि हम दूसरी बड़ी कंपनियों में भी निवेश करेंगे. हम डेटा सेंटर जैसे बड़े इंफ़्रास्ट्रक्चर से जुड़े निवेश भी करेंगे. हमारे फ़ंड का बहुत बड़ा हिस्सा भारतीय कंपनियों में निवेश होगा."

तो सुंदर पिचाई ने अभी पूरे पत्ते नहीं खोले हैं, कि वो क्या करेंगे. ऐसे में ये कुछ बुनियादी सवाल हैं जो तैर रहे हैं -

कहाँ पैसा लगाने जा रहा है गूगल?

निवेश है, तो इसका रिटर्न भी आएगा. किसकी जेब से मोटी होगी गूगल की तिजोरी?

और जेब हल्की करने वालों को बदले में क्या मिलेगा?

इसका आम लोगों पर भी कोई असर होगा, या ये सिर्फ़ तकनीकी कंपनियों के काम की ख़बर है?

क्या इसमें कुछ ऐसा है जिससे लोगों को सतर्क होना चाहिए?

ये कुछ ज़रूरी सवाल हैं जिन्हें समझने से पहले ये समझ लेना ज़रूरी है कि हाल के समय में गूगल भारत में पैसा लगाने का एलान करने वाली अकेली दिग्गज कंपनी नहीं है.

गूगल से पहले इसी साल अमेज़ॉन ने भारत में एक अरब डॉलर का निवेश करने की घोषणा की थी. उसने इससे पहले भी पाँच अरब डॉलर के निवेश का एलान किया था.

इसके बाद फ़ेसबुक ने रिलायंस के जियो में 5.7 अरब डॉलर लगाने का एलान किया.

और पिछले महीने माइक्रोसॉफ़्ट की निवेश इकाई एमवनटू ने कहा कि वो भारत में निवेश की संभावनाओं के लिए अपना एक दफ़्तर खोलेगी जिसमें मुख्यतः बिज़नेस-टू-बिज़नेस सॉफ़्टवेयर स्टार्टअप कंपनियों पर ध्यान दिया जाएगा.

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महिलाएँ
AFP
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भारत क्यों?

इसका सीधा जवाब है- बाज़ार. मगर बाज़ार तो भारत पहले से भी था, फिर अचानक से इस वक़्त ये बड़ी कंपनियाँ यहाँ पैसा क्यों ठेल रही हैं?

जानकार बताते हैं कि भारत में ये बाज़ार अब बदल रहा है. ख़ास तौर से डिज़िटल क्रांति और स्मार्ट फ़ोन क्रांति आने के बाद.

अख़बार फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस के एग्ज़ेक्यूटिव एडिटर और तकनीकी मामलों के जानकार ऋषि राज कहते हैं कि पिछले कुछ समय में ये दिखने लगा है कि इन कंपनियों के काम में एक कन्वर्जेंस की स्थिति आती जा रही है.

ऋषि राज कहते हैं, "अब एक ही कंपनी टेलिकॉम सेवा देती है, वही एंटरटेनमेंट भी उपलब्ध कराती है, ई-कॉमर्स भी करती है, वही ई-पेमेंट का ज़रिया है, वो सर्च इंजिन का भी काम करती है, नेविगेशन का भी काम करती हैं. पहले भी कन्वर्जेंस की बात होती थी, पर पहले वो बहुत मोटे तौर पर होती थी, कि टीवी-मोबाइल का कन्वर्जेंस होगा, अब उसका दायरा बहुत बढ़ गया है."

टेक्नोलॉजी और इससे जुड़े बिज़नेस मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार माधवन नारायण कहते हैं कि इंटरनेट सुपरमार्केट बन चुका है जहाँ सॉफ़्टवेयर भी बिकता है, कॉन्टेन्ट भी. वो कहते हैं जैसे अमेज़ॉन अब प्रोड्यूसर बन गया है, फ़िल्में रिलीज़ हो रही हैं वहाँ, फ़ेसबुक की तो बात ही अलग है, दोस्ती से लेकर कारोबार तक हो रहा है.

माधवन नारायण कहते हैं, "कॉन्टेन्ट, कॉमर्स, कनेक्टिविटी और कम्युनिटी- ये चारों सी इंटरनेट में उपलब्ध हैं. और ये फ़ैन्ग यानी फ़ेसबुक, अमेज़ॉन, नेटफ़्लिक्स और गूगल- इनमें ये चारों सी उपलब्ध हैं. नेटफ़्लिक्स को अगर थोड़ा अलग कर दें तो बाक़ी की तीनों कंपनियाँ छोटे व्यवसायियों के काम आ रही हैं, जहाँ आप ऐडवर्टाइज़ भी कर सकते हैं, उनके सॉफ़्टवेयर भी किराए पर ले सकते हैं, जैसे वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग आदि. ये तीनों कंपनियाँ कहीं ना कहीं छू जाती हैं सबको, चाहे यूट्यूब हो, ओला-उबर हो, डिज़िटल क्लास हों."

वो कहते हैं कि ऐसी स्थिति में जब भारत में इतनी भारी आबादी और बाज़ार का मिश्रण हो तो ज़ाहिर है कि बड़ी कंपनियाँ इनमें दिलचस्पी लेंगी.

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इंटरनेट का फैलाव और बढ़ती कमाई

भारत की एक अरब 30 करोड़ की आबादी में मोबाइल फ़ोन लगभग एक अरब हाथों में पहुँच चुके हैं, लेकिन इनमें 40 से 50 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास साधारण फ़ीचर फ़ोन हैं जिनमें इंटरनेट नहीं है. लेकिन फ़ीचर फ़ोन और स्मार्टफ़ोन का अंतर लगातार घट रहा है.

माधवन नारायणन कहते हैं कि ये संख्या अगले चार-पाँच साल में आराम से दोगुनी हो जाएगी क्योंकि फ़ोन सस्ते हो रहे हैं और डेटा प्लान भी.

ऋषि राज कहते हैं कि ये जो 60 करोड़ इंटरनेट स्मार्टफ़ोन ग्राहक हैं, वो मोबाइल ऑपरेटर्स के पास है, और उनके माध्यम से ही वो अमेज़ॉन प्राइम, नेटफ़्लिक्स जैसी कंपनियों की सामग्रियाँ उपभोक्ताओं तक पहुँच रही हैं.

वो कहते हैं, "मेरे हिसाब से गूगल को ये आभास हो गया है कि यही समय है भारत में जब वो अपनी पहले से उपलब्ध सेवाओं को किसी भी कंपनी के साथ टाइ-अप कर ले, तो वो पैसा जो वो लगाएगी, वो किसी ना किसी तरह से उपभोक्ता तक पहुँचे ताकि वो किसी ना किसी तरह से उससे कमाई भी कर सकें, जो अभी तक नहीं हो पा रही था."

दिल्ली में फ़ोन चेक करते दो लोग
Getty Images
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डेटा का भंडार और चिंताएँ

गूगल जैसी बड़ी अंतराष्ट्रीय कंपनियों के भारत की ओर रुख़ करने की एक और बड़ी वजह है डेटा जो भारत मे बड़े आराम से इकट्ठा किया जा सकता है.

ऋषि कहते हैं,"ये कंपनियाँ भारत इसलिए भी आती हैं क्योंकि इन्हें यहाँ डेटा मिल जाता है, और डेटा प्रोफ़ाइलिंग से कंपनियों के पास एक बहुत बड़ा भंडार बन जाता है जिससे वो उपभोक्ताओं की आदतों का पता लगा सकते हैं, मार्केट रिसर्च कर सकते हैं."

लेकिन इससे फिर चिंता भी पैदा होती है कि कहीं इस डेटा का ग़लत इस्तेमाल तो नहीं होने लगेगा?

ऋषि कहते हैं कि सबसे परेशानी की बात ये है कि जिस तेज़ी से ये काम बढ़ रहा है, उस हिसाब से डेटा की निगरानी के बारे में, उनको सुरक्षित रखने के बारे में, उनके एकाधिकार को नियंत्रित करने के बारे में कोई काम नहीं हुआ है.

वो कहते हैं,"उसका कोई ज़रिया या प्रक्रिया ही नहीं है तो मंज़ूरी या नामंज़ूरी कैसे देंगे? इस पर काम हो रहा है मगर धीमी गति से हो रहा है और पहले हमने देखा है कि प्लेयर अगर बहुत बड़ा हो जाए तो जो रेगुलेशन आता है, वो इससे कमज़ोर ही आता है."

Sundar Pichai
AFP
Sundar Pichai

माधवन भी कहते हैं, "डेटा को कहाँ और कैसे रखा जाए, इसे लेकर आने वाले दिनों में रिलायंस-जियो और गूगल-फ़ेसबुक-अमेज़ॉन जैसी कंपनियों के साथ एक टकराव हो सकता है."

हालाँकि माधवन कहते हैं कि निजता की रक्षा के नाम पर आने वाले दिनों में मार्केट में पाबंदियाँ ना लगें, शायद इसी को ध्यान में रखकर ये कंपनियाँ ये जताने की कोशिश कर रही हैं कि हम इस डेटा का इस्तेमाल केवल विज्ञापन के लिए करेंगे ना कि निजी जीवन में दखल देने के लिए.

छवि की चिन्ता

गूगल जैसी बड़ी कंपनियों के भारत में जमकर निवेश करने की एक और वजह ये दिखाना भी है कि वो भारत को केवल बाज़ार भर नहीं मानतीं.

माधवन नारायणन कहते हैं, "ये कंपनियाँ चाहती हैं कि वो ये छवि ना हो कि वो भारत में केवल पैसा बनाने आए हैं, वो इस बात को सरकारों और लोगों तक पहुँचाना चाहते हैं, कि वो हैं तो अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ हैं पर चाहती हैं कि भारत में पैसे लगाना चाहती हैं कि उनकी एक छवि अच्छी हो ताकि वो राष्ट्रवाद के पैरों तले ना कुचली जाएँ."

फिर ये कंपनियाँ ऐसा भी प्रयास करना चाहती हैं कि उनकी नज़र केवल उपभोक्ताओं पर ही नहीं है.

ऋषि राज कहते हैं, "इन कंपनियों के बहुत सारे प्रोजेक्ट ऐसे भी होते हैं जिनमें इन कंपनियों को सरकारों के साथ प्रोजेक्ट करना होता है, तो उनके लिए सरकार को ये दिखाना भी ज़रूरी हो जाता है कि एक कंपनी ने अगर निवेश किया तो मैं भी पीछे नहीं हूँ, क्योंकि ऐसा नहीं करने पर सरकारी प्रोजेक्टों के जो फ़ायदे होते हैं उनसे आप चूक सकते हैं."

फ़ेसबुक जियो
Getty Images
फ़ेसबुक जियो

टैक्स बचाने की कोशिश तो नहीं?

गूगल या डिज़िटल सर्विस देने वाली कंपनियों पर टैक्स लगाने की बात दुनिया भर में चल रही है क्योंकि ये कंपनियाँ सर्च और विज्ञापन से अच्छी ख़ासी कमाई करती हैं, तो जानकारों के अनुसार भारत जैसे देश में निवेश करने के पीछे एक सोच ये भी हो सकती है.

माधवन कहते हैं,"वो अगर भारत जैसे बढ़ते बाज़ार में आते हैं तो अपने मुनाफ़े का एक हिस्सा वो यहीं निवेश कर देना चाहेंगे जिससे कि उनका ख़र्चा ज़्यादा हो जाएगा, उनका काम भी फैल जाएगा और साथ ही टैक्स भी कम देना पड़ेगा."

तो इसमें कहीं कोई चिन्ता वाली बात तो नहीं?

माधवन कहते हैं कि ये इंडस्ट्री ऐसी है जिसमें जल्दबाज़ी में आरोप लगाना भी ठीक नहीं होगा, जल्दबाज़ी में उछलना-कूदना भी ठीक नहीं होगा.

सुंदर पिचाई
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सुंदर पिचाई

वो कहते हैं,"चिन्ता की बात नहीं है पर चिन्तन ज़रूर होना चाहिए, गड़बड़ियाँ तो भारतीय कंपनियाँ भी करती हैं, कर्ज़ लेकर भाग जाते हैं लोग, टैक्स चोरी करते हैं, पर ये अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ वैसी नहीं होतीं, फिर भी वो समाज सेवा तो करने आए नहीं हैं, इसलिए हाथ मिलाना है, पर नज़र नहीं झुकाना है."

ऋषि कहते हैं कि ये कंपनियाँ भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश को लेकर काफ़ी सतर्क होंगी क्योंकि यहाँ अगर कुछ भी आप कामयाबी से लॉन्च कर देते हैं जिससे कि आप उपभोक्ताओं तक पहुँच सकते हैं, उससे पैसे बना सकते हैं, तो इस मॉडल को कंपनियाँ बाकी ऐसे ही देशों में भी जाकर दोहरा सकती हैं.

तो गूगल को भारत पर 10अरब डॉलर का प्यार क्यों आया, इसका जवाब माधवन नारायणन के इस कथन से मिल सकता है- "भारत के पक्ष में जो बातें जाती हैं, उन सब बातों को अगर आप ध्यान में रखें तो गूगल जो 10 अरब डॉलर का निवेश करेगा, वो राशि आपको कम लगेगी, वो इतनी बड़ी इकोनॉमी के साथ रोमांस कर रहे हैं तो कुछ पैसा तो फूलों और चॉकलेट पर ख़र्च करेंगे ही."

BBC Hindi
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English summary
The real story of Google's love affair with India, why Sundar Pichai sending billions of dollars
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