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नागरिकता संसोधन बिल: भाजपा के सामने असली चुनौती तो राज्यसभा में होगी

भाजपा के लिए नागरिकता संसोधन बिल को पास करवाने की असली चुनौती तो राज्यसभा में हैं क्योंकि राज्यसभा में भाजपा के पास बहुमत नहीं है।

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बेंगलुरु। लोकसभा में केन्‍द्र सरकार द्वारा आज नागरिकता बिल संसोधन बिल पेश किया गया। गृहमंत्री अमित शाह द्वारा पेश किए गए इस बिल पर संसद में जोरदार हंगामा हुआ। इस विधेयक को लेकर सरकार और विपक्षी दलों के बीच तीखी बहस हुई। भारतीय जनता पार्टी का इस बिल को लाने का उद्देश्‍य भारत में रह रहे शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देना हैं। लेकिन विपक्षी पार्टियां इस बिल को मुस्लिम समुदाय के लोगों के खिलाफ बता कर बेहद कड़ा रुख़ अख़्तियार कर रखा है और इसे संविधान की भावना के विपरीत बता रहे हैं।

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गौरतलब है कि मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आने के बाद से ही सख्‍त फैसले ले रही है। पहले जम्मू कश्‍मीर से अनुच्‍छेद 370 हटाया और अब नागरकिता से जुड़े मामले में भी बिल्कुल सख्‍त रवैय्या अपनाए हुए है। केन्‍द्रीय मंत्रीमंडल की मंजूरी के बाद सोमवार को यह बिल लोकसभा में पेश किया गया। बता दें प्रधानमंत्री के पिछले कार्यकाल में इस बिल को संसद तक ले जा चुकी हैऔर इसे मंजूरी मिल गयी थी। यह तो केन्‍द्र सरकार को भी पता है कि बहुमत की सरकार होने के कारण इस बार भी लोकसभा में इस बिल को मंजूरी मिलने में कोई मुश्किल नही होगी। बता दें सोमवार को इस बिल को लोकसभा में पेश किए जाने के पक्ष में 293 वोट पड़े और विरोध में केवल 82 वोट पड़े।

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लेकिन भाजपा के लिए नागरिकता संसोधन बिल को पास करवाने की असली चुनौती तो राज्यसभा में हैं क्योंकि राज्यसभा में भाजपा के पास बहुमत नहीं है। बता दें पिछली सरकार में भी यह बिल पेश किया गया लेकिन इसके चलते पूर्वोत्तर में इसका हिंसक विरोध शुरू हो गया, जिसके बाद सरकार ने इसे राज्यसभा में पेश नहीं किया। पिछली सरकार का कार्यकाल पूरा होने के साथ ही यह विधेयक स्वतः ख़त्म हो गया। विपक्ष के विरोध के चलते यह बिल पास नही हुआ था।

आखिर क्यों हो रहा विरोध

आखिर क्यों हो रहा विरोध

बता दें नागरिकता संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया गया। जिससे नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नियमों में बदलाव होगा। नागरिकता बिल में इस संशोधन से बाग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा। इसे सरकार की ओर से अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। गैर मुस्लिम 6 धर्म के लोगों को नागरिकता प्रदान करने के प्रावधान को आधार बना काग्रेस, टीएमसी, माकपा और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट धार्मिक आधार पर नागरिकता प्रदान किए जाने का विरोध कर रहे हैं। इस लिस्ट में मुस्लिम धर्म का जिक्र नहीं हैं। इसलिए राजनीतिक पार्टियां यह बिल मुस्लिमों के खिलाफ बता कर विरोध कर रही है। वहीं दूसरी बात ये हो रही है कि आखिर धर्म के हिसाब से ये कैसे तय हो सकता है कि किसी नागरिकता देनी है। यानी अगर मुस्लिम शरणार्थी है तो उसे नागरिकता नहीं देंगे और हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी, ईसाई हुआ तो नागरिकता दे दी जाएगी।

"अल्पसंख्‍यकों के खिलाफ नहीं है ये बिल''

विपक्षी पार्टियों का कहना है कि ये बिल मुसलमानों के खिलाफ है जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन कर रहा है। बस यही इस बिल का विवादास्पद पहलू है और हो सकता है कि अगर मोदी सरकार बिल में मुस्लिमों को भी जोड़ ले तो सभी का साथ उसे मिल जाए। कांग्रेस समेत अन्‍य विपक्षी पार्टियों ने भाजपा के खिलाफ लड़ी जा रही इस लड़ाई को हिंदू मुस्लिम की लड़ाई का रुप दे दिया है। जबकि सोमवार को लोकसभा में विरोध के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लगातार हमलावर रहे। उन्होंने कहा कि नागरिकता बिल किसी भी तरह से संविधान का उल्लंघन नहीं करता है और ना ही ये बिल अल्पसंख्यकों के खिलाफ है।

राजनीतिक पार्टियां और नागरिकता बिल

राजनीतिक पार्टियां और नागरिकता बिल

एनसीआर के बाद अब नागरिक संशोधन बिल को लेकर पूर्वोत्तर समेत उत्तर बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्र में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गयी है। भाजपा जहां इसे राष्ट्र के हित में बता रही है वहीं विरोधी इसे सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाला बिल बताया जा रहा है। भारत के पूर्वोत्तर में इस नागरिकता संशोधन विधेयक का व्यापक रूप से विरोध होता रहा है। पूर्वोत्तर के लोग इस बिल को राज्यों की सास्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत से खिलवाड़ के साथ मुस्लिम विरोधी भी बता रहे है। बता दें राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का फाइनल ड्राफ्ट आने के बाद असम में विरोध-प्रदर्शन भी हुए थे। हालाकि इसमें जिन लोगों के नाम नहीं हैं,उन्हें सरकार ने शिकायत का मौका भी दिया। सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी से बाहर हुए लोगों के साथ सख्ती बरतने पर रोक लगा दी थी।

पूर्वोत्तर में विरोध क्यों?

पूर्वोत्तर में विरोध क्यों?

वैसे तो नागरिकता संशोधन विधेयक पूरे देश में लागू किया जाना है लेकिन इसका विरोध पूर्वोत्तर राज्यों, असम, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में हो रहा है क्योंकि ये राज्य बांग्लादेश की सीमा के बेहद क़रीब हैं। इन राज्यों में इसका विरोध इस बात को लेकर हो रहा है कि यहां कथित तौर पर पड़ोसी राज्य बांग्लादेश से मुसलमान और हिंदू दोनों ही बड़ी संख्या में अवैध तरीक़े से आ कर बस जा रहे हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक का विरोध इस चिंता के साथ किया जा रहा है कि पिछले कुछ दशकों में बांग्लादेश से बड़ी तादाद में आए हिंदुओं को नागरिकता प्रदान की जा सकती है। विरोध इस बात का है कि वर्तमान सरकार हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की फिराक में प्रवासी हिंदुओं के लिए भारत की नागरिकता लेकर यहां बसना आसान बनाना।

विपक्षी पार्टियों का आरोप

विपक्षी पार्टियों का आरोप

विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि नागरिकता संशोधन बिल 2019 के जरिए मोदी सरकार उन विदेश से आए हिंदुओं को भारत की नागरिकता देना चाहती है जो अवैध रूप से देश में आए थे और एनआरसी की लिस्‍ट से बाहर हो गए हैं। वहीं दूसरी ओर, मुस्लिम लोगों को देश से वापस जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं होगा, क्योंकि इस बिल के तहत मुस्लिमों को नागरिकता देने की बात नहीं कही गई है। विपक्ष का आरोप है कि हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा सरकार ये बिल ला रही है ताकि हिंदू प्रवासियों का भारत में बसना आसान किया जा सके।

इसे भी पढ़े- नागरिकता संशोधन बिल: ओवैसी ने बिल की कॉपी फाड़ी, कहा- देश एक और बंटवारे की तरफ जा रहा है

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English summary
The real challenge for the BJP to get the Citizenship Amendment Bill passed is in the Rajya Sabha because the BJP does not have a majority in the Rajya Sabha.
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