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अयोध्या में प्रस्तावित मस्जिद के 'बाबरी मस्जिद' नामकरण पर फंस सकता है पेंच!

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बेंगलुरू। देश के बहुप्रतीक्षित रामजन्मभूमि विवाद केस पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से 134 वर्ष पुराने का अंत हो चुका है और अब विवादित भूमि पर भगवान श्रीराम को भव्य मंदिर बनने का रास्ता आसान हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में प्रदेश की योगी सरकार को मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन मुहैया करने का निर्देश दिया है।

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कोर्ट के निर्देश के बाद यूपी सरकार द्वारा प्रस्तावित मस्जिद के लिए भूमि की तलाश भी शुरू कर दी गई है। बताया जा रहा है कि राजस्व विभाग ने अयोध्या के 14 कोसी परिक्रमा क्षेत्र से बाहर सोहावल, बीकापुर और सदर तहसील में मस्जिद की भूमि के लिए तेजी से तलाश शुरू कर दी है, लेकिन इस बीच एक बड़ा सवाल उभर कर सामने आया है कि नवनिर्मित मस्जिद का नामकरण क्या किया जाएगा।

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दरअसल, विश्व हिंदू परिषद ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित नवनिर्मित मस्जिद के नामकरण को लेकर सवाल खड़े किए हैं। वीएचपी का कहना है कि नवनिर्मित मस्जिद का नामकरण बाबरी मस्जिद के नाम पर नहीं होना चाहिए। वीएची के मुताबिक उसका स्टैंड अभी भी वहीं कायम है।

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रामलला के नेक्स्ट फ्रेंड त्रिलोकीनाथ पांडेय कहते हैं कि वीएचपी किसी उपासना पद्धित के विरोध में नहीं खड़ी है, लेकिन उसे बाबर के नाम की मस्जिद अयोध्या क्या पूरे देश में स्वीकार नहीं है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी को मान्य है और कोर्ट के आदेश पर मस्जिद का निर्माण कराया जाता है तो उन्हें जरा भी एतराज नहीं है, लेकिन अगर उसका नामकरण बाबरी मस्जिद किया गया तो उसका पुरजोर विरोध किया जाएगा।

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गौरतलब है प्रस्तावित मस्जिद के लिए शहनवां ग्रामसभा में जमीन की चर्चा जोरों पर हैं, जहां बाबर के सिपहसालार मीरबाकी के क्रब होने का दावा किया जाता है। इस गांव के निवासी शिया बिरादरी के रज्जब अली व उनके बेटे मो. असगर को बाबरी मस्जिद का मुतवल्ली कहा गया।

इसी परिवार को ब्रिटिश हुकूमत की ओर से 302 रुपए छह पाई की धनराशि मस्जिद के रखरखाव के लिए दी जाती थी। सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के दावे में भी इसका जिक्र किया गया है। यह अलग बात है कि बाबरी मस्जिद पर अधिकार को लेकर शिया वक्फ बोर्ड व सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के बीच विवाद के बाद वर्ष 1946 में कोर्ट ने सुन्नी बोर्ड के पक्ष में सुनाया था।

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इतिहास के मुताबिक मुगल शासक बाबर का सिपहसलार रहे मीर बाकी ने वर्ष 1528 में अयोध्या के विवादित परिसर पर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। माना जा रहा है कि शहनवां ग्राम सभा में जहां कथित रूप से स्थित मीर बाकी की कब्र है, वहां के आसपास की भूमि प्रस्तावित मस्जिद के लिए उपयुक्त हो सकती है।

क्योंकि अयोध्या के विवादित परिसर पर मीर बाकी द्वारा बनवाए गए बाबरी मस्जिद के मतव्वली के वारिसान की ओर से भी मस्जिद के निर्माण के लिए अपनी जीम दिए जाने की घोषणा कर दी गई है। इससे संभावना जताई जा रही है कि प्रस्तावित मस्जिद के लिए शहनवां ग्रामसभा की 5 एकड़ भूमि को योगी सरकार प्रस्तावित मस्जिद के लिए अधिसूचित कर सकती है।

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उल्लेखनीय है वर्ष 1990-91 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के कार्यकाल में हिन्दू-मुस्लिम पक्ष की वार्ता के दौरान मस्जिद के लिए विहिप की ओर से ही शहनवां गांव में जमीन दिए जाने का प्रस्ताव किया गया था। यह अलग बात है कि मुस्लिम पक्ष ने विवादित परिसर से अपना दावा वापस लेने से इंकार कर दिया था।

इसके बाद से ही वीएचपी ने भी बाबर के नाम पर देश में कहीं भी मस्जिद नहीं स्वीकारने का ऐलान कर दिया था और 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए ऐतिहासिक फैसले में विवादित परिसर की जमीन रामलला विराजमान दिए जाने के बाद भी वीएचपी का स्टैंड कायम है।

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अगर मुगल शासक बाबर के सिपहसलार रहे मीर बाकी के कथित कब्र स्थान वाली भूमि अगर प्रस्तावित मस्जिद के लिए अधिगृहित किया जाता है, तो वहां निर्मित मस्जिद का नामकरण मीर बाकी के नाम पर किया जा सकता है। हालांकि मंगोल बाबर और उसका सिपहसलार मीर बाकी ताशकंद यानी आज के उजबेकिस्तान का निवासी था।

कहा जाता है कि मंगोल आक्रमणकारी बाबर के आदेश पर वर्ष 1528-29 में उसके सिपहसलार मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद का निर्माण रामकोट यानी विवादित परिसर में करवाया था। उस वक्त मीर बाकी तक अवध प्रदेश का शासक था। ऐतिहासिक दस्तावेजों में जनवरी-फरवरी 1526 में बाकी की चर्चा शाघावाल नाम से मिलती है। अब अगर नवनर्मित मस्जिद का नामकरण मीर बाकी के नाम पर किया जाता है तो किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

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हालांकि बाबरनामा में मीर बाकी की कई नामों से चर्चा की गई है। उसे मीर ताशकंदी, बाकी शाघावाल, बाकी बेग और बाकी मिंगबाशी नामों से उसकी चर्चा मिलती है, लेकिन बाबरनामा में कहीं उसके लिए मीर नाम का प्रयोग नहीं किया गया है। माना जाता है कि फ्रांसिस बुकानन ने 1813-14 में बाकी के नाम के आगे मीर लगाया।

वहीं, मस्जिद के शिलालेखों के अनुसार बाबर के आदेश पर मीर बाकी ने 1528-29 में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया था। बाकी ने मस्जिद बनाने के लिए रामकोट यानी राम के किले को चुना था। मस्जिद बनाने के लिए मीर बाकी ने राम के किले पर पहले से मौजूद भगवान श्री राम के मंदिर को तोड़ा था।

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वैसे, मुस्लिम पक्षकार यहां मंदिर के होने से इंकार करते हैं, लेकिन 19वीं सदी की शुरुआत के साथ ही यह हिंदू-मुसलमानों के बीच बड़े विवाद के कारण के रूप में तब्दील होने लगा था और अब तो सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यीय न्यायाधीशों की पीठ ने अपने निर्णय ने इसकी पुष्टि कर दी है कि उक्त परिसर ही रामजन्मभूमि है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मुस्लिमों के लिए मस्जिद बनाने के लिए प्रदेश सरकार को 5 एकड़ जमीन विकल्प के तौर अलग जगह देने का फैसला किया है। प्रदेश सरकार फैसले के बाद से मस्जिद के लिए भूमि की तलाश शुरू भी कर दी है, लेकिन नवनिर्मित मस्जिद के नामकरण को लेकर एक बार फिर पेंच फंस सकता है।

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क्योंकि माना जा रहा है कि मुस्लिम समुदाय बाबरी मस्जिद के बदले नवनिर्मित मस्जिद के नए नामकरण के लिए शायद ही आसानी से तैयार होगी, लेकिन बाबरी मस्जिद नामकरण के खिलाफ खड़ी वीएचपी के बयानों से एक बार फिर बाबरी मस्जिद का मुद्दा गर्मा सकता है।

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हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विवादित परिसर में राम मंदिर के निर्माण को लेकर जिस तरह की गर्मजोशी मुस्लिम वर्ग द्वारा दिखाई जा रही है, उससे लगता नहीं है कि नवनिर्मित मस्जिद के बाबरी मस्जिद नामकरण को लेकर विवाद बढ़ेगा, क्योंकि सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि बाबर विदेशी आक्रांता था और भारत में नवनिर्मित किसी मस्जिद को विदेशी आक्रमणकारी के नाम पर रखना भारतीय मुस्लिम भी पसंद नहीं करेंगे।

यह भी पढ़ें- अयोध्या फैसले के बाद क्या काशी-मथुरा का विवाद पहुंचेगा कोर्ट? SC ने दिया ये जवाब

Comments
English summary
After Supreme court final verdict on historical Ayodhya Ram temple issue all over world relaxed whether it Hindu or Muslims? Court hand over disputed land to Ramlala virajwan while direct government to occupy 5 acre land for mosque in ayodhya.Question raised what will named the newly constructed mosque? Because VHP warned to naming the babari mosque.
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