वो मिसाइल, जो नेतन्याहू मोदी को बेचना चाहते हैं
अमरीकी जेवलिन और फ्रांसीसी मोएनी मिसाइल से कमतर होने के बावजूद भारत इसे क्यों खरीद सकता है?
भारत और इसराइल के बीच स्पाइक एंटी टैंक मिसाइल की डील दोबारा फ़ाइनल हो सकती है.
इसराइल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने देर रात इसकी घोषणा अपने ट्विटर हैंडल पर की. नेतन्याहू छह दिन की भारत यात्रा पर है. बुधवार को वो प्रधानमंत्री मोदी के साथ गुजरात के अहमदाबाद शहर में थे.
इस डील के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने लिखा, "भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बातचीत के बाद, भारत सरकार ने मुझे सूचित किया है कि स्पाइक एंटी टैंक मिसाइल डील दोबारा ट्रैक पर है. ये इसराइल के लिए बेहद अहम है. आने वाले दिनों में दोनों देशों के बीच कई और ऐसे डील होगें."
यहां ये जानना बेहद जरूरी है कि 2017 दिंसबर के महीने में भारत ने इसराइल के साथ स्पाइक एंटी टैंक मिसाइल सौदे को रद्द कर दिया था.
उस वक्त रक्षा मंत्रालय ने दलील ये दी थी कि डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपंमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) अगले चार साल यानी 2022 तक इसी तरह की वर्ल्ड क्लास मिसाइल बना देगा.
उस वक्त ये डील 500 मीलियन डॉलर की बताई गई थी. लेकिन इस बार ये सौदा थोड़ा और किफायती रहने की उम्मीद है.
लेकिन अब इसराइल के साथ इस नए समझौते के बाद चार साल का इंतज़ार ख़त्म हो जाएगा.
भारत के लिए क्यों ज़रूरी है इसराइल?
स्पाइक एंटी टैंक मिसाइल की ख़ासियत ?
रक्षा मामलों के जानकार राहुल बेदी के मुताबिक स्पाइक एक मानव पोर्टेबल मिसाइल है. इसका मतलब ये कि लॉन्चर और आदमी दोनों की मदद से इसे दागा जा सकता है.
इस मिसाइल की दूसरी ख़ासियत है इसकी मारक क्षमता. इस मिसाइल से 3-4 किलोमीटर की दूरी से हमला किया जा सकता है. इसका मतलब ये हुआ कि दागने वाला सैनिक भी इस मिसाइल के साथ सुरक्षित रह सकता है.
ये मिसाइल मैदानी और रेगिस्तानी इलाकों में बॉर्डर पर तैनात सैनिकों के लिए ज्यादा कारगर साबित होते हैं.
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आखिर इसराइल ही क्यों ?
आख़िर इसराइल के साथ ही क्यों किया भारत ने ये करार? इस सवाल के जवाब में राहुल बेदी कहते हैं, "वैसे तो फ्रांस और अमरीका दोनों के पास ये तकनीक उपलब्ध है. लेकिन इसराइल के मुकाबले ये ज्यादा महंगे हैं."
राहुल के मुताबिक़, "पहले ये सौदा 500 मिलियन डॉलर तक जाने की उम्मीद है, लेकिन अब लगता है कि 350 से 400 मिलियन डॉलर में ही इसराइली सरकार भारत को स्पाइक एंटी टैंक मिसाइल दे देगी."
राहुल आगे कहते हैं, "वैसे तो अभी तक ये डील फाइनल नहीं हुई है, लेकिन जो खबरें आ रहीं है उसके मुताबिक भारत और इजराइल के बीच 3500 मिसाइल सीधे तौर पर खरीदने का करार हो सकता है."
पहले क्यों रद्द हुआ था करार ?
भारतीय सीमा पर तैनात सैनिकों को इसकी खासी जरूरत है.
जानकारों की मानें, वैसे तो भारत को तकरीबन 38000 ऐसे मिसाइल की जरूरत है. लेकिन डीआरडीओ भी इसी तरह की मिसाइल बना रहा है, इसलिए फौरी तौर पर इसराइल से 3500 स्पाइक एंटी टैंक मिसाइल खरीद कर काम चला सकते हैं.
भारत और इसराइल के इसी मिसाइल सौदे पर वरिष्ठ पत्रकार अजय शुक्ला ने एक ब्लॉग लिखा है. उनके मुताबिक रफायल सौदे की तरह ही भारत ने स्पाइक एंटी टैंक मिसाइल सौदे पर दोबारा आगे बढ़ने के लिए इसे समय की मांग से जोड़ कर देखने को कहा है. सरकार इसके पीछे "ऑपरेशनल नेसिसिटी" करार दे रही है.
अजय शुक्ला के मुताबिक़, "भारत इससे पहले इसराइल के साथ ऐसी 30 हजार मिसाइल के लिए टेक्नलॉजी ट्राँसफर का करार करना चाहता था, जिसके तहत भारत डायनमिक्स लिमिटेड को तकनीक ट्रांसफ़र की जाती, लेकिन स्वदेश में ही जब ऐसी मिसाइल बनाई जा रही हो तो विदेश से क्यों खरीदें, इसलिए डील रद्द कर दी गई.".
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क्या स्पाइक है सबसे बेहतर ?
अजय शुक्ला का मानना है कि स्पाइक ही इस तरह की मिसाइल में सबसे बेहतर तकनीक नहीं है. अमरीका की जेवलिन और फ्रांस की मिसाइल मोएनी पोर्टी इसराइल की स्पाइक एंटी टैंक मिसाइल से ज्यादा बेहतर हैं.
उनके मुताबिक़ इसराइल के प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेत्नयाहू के साथ जो 130 सदस्यी प्रतिनिधि मंडल भारत आया हुआ है, उसमें रफायल एडवांस डिफेंस सिस्टम के मुखिया शामिल है और इसलिए इस सौदे पर दोबारा बात शुरू हुई है.
गौरतलब है कि स्पाइक एंटी टैंक मिसाइल रफायल ही बनाती है.