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करतारपुर साहिब: बंटवारे के बाद पाकिस्‍तान को मिला गुरुद्वारा, पुल पार करके दर्शन के लिए जाते थे श्रद्धालु

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नई दिल्‍ली। नौ नवंबर को भारत और पाकिस्‍तान के बीच एक नई शुरुआत देखने को मिलेगी जब कई दशकों से अटका करतारपुर कॉरिडोर वाकई श्रद्धालुओं के लिए खुलेगा। कॉरिडोर का उद्घाटन ऐसे समय हो रहा है जब सिख धर्म के संस्‍थापक गुरुनानक देव की 550वीं जन्‍मतिथि का जश्‍न मनाया जाएगा। पाकिस्‍तान के करतारपुर में स्थित दरबार साहिब गुरुद्वारे में गुरुनानक देव ने अपनी जिंदगी के अंतिम क्षण बिताए थे। सन् 1947 में जब भारत और पाकिस्‍तान के बीच बंटवारा हुआ तो यह जगह पाकिस्‍तान के हिस्‍से चली गई। इस एतिहासिक गुरुद्वारे से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जिन्‍हें शायद आप नहीं जानते होंगे।

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Kartarpur Sahib Corridor: बंटवारे के वक्त Pakistan को क्यों मिला Gurudwara ?, जानें | वनइंडिया हिंदी
सिख धर्म की पहचान बना गुरुद्वारा

सिख धर्म की पहचान बना गुरुद्वारा

सिख धर्म के संस्‍थापक गुरुनानक देव ने करतारपुर की स्‍थापना सन् 1504 में की थी। रावी नदी के तट पर मौजूद यह गुरुद्वारा सिख धर्म की पहचान बना। सन् 1539 में उनकी मृत्‍यु के बाद हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों के लोगों ने गुरुनानक जी को अपने धर्म से जुड़ा हुआ बताया और उनकी याद में एक समाधि भी बनाई। रावी नदी के बहाव में वह समाधि जो बह गई। सन् 1947 में दोनों देशों का बंटवारा हो गया और रावी नदी के दायीं तरफ शकर गढ़ तहसील में रैडक्लिफ रेखा आ गई। इस सीमा की वजह से रावी नदी के दायीं तरफ स्थित शकरगढ़ जिसमें करतारपुर भी आता था उसे पाक को सौंप दिया। रावी नदी के बायीं तरफ का हिस्‍सा भारत को मिला जिसमें गुरदासपुर आया और जहां पर डेरा बाबा नानक है।

पुल को पार करके करतारपुर जाते थे श्रद्धालु

पुल को पार करके करतारपुर जाते थे श्रद्धालु

बंटवारे के बाद श्रद्धालु एक पुल को पार करके करतारपुर जाते थे जो रावी नदी पर बना था। लेकिन 1965 में हुई जंग में यह पुल पूरी तरह से नष्‍ट हो गया। सन् 1948 में अकाली दल ने मांग की कि भारत को नानकाना साहिब और करतारपुर में स्थित जमीन को हासिल करना चाहिए। सन् 1959 तक यह मांग बनी रही और सन् 1969 में जब गुरु नानक देव जी की 500वीं जन्‍मतिथि थी तो तत्‍कालीन इंदिरा गांधी ने इस तरह का एक वादा किया। उन्‍होंने कहा था कि वह पाक सरकार से अनुरोध करेंगे कि करतारपुर साहिब की जमीन भारत को दे दी जाए। इसके बाद सन् 1974 में भारत और पाक के बीच एक प्रोटोकॉल साइन हुआ जिसमें श्रद्धालुओं को पवित्र जगहों के दर्शन करने की बात पर रजामंदी बनी।

सन् 1947 से 2000 तक बंद रहा गुरुद्वारा

सन् 1947 से 2000 तक बंद रहा गुरुद्वारा

करतारपुर को इस प्रोटोकॉल से बाहर रखा गया था। भारत के विदेश मंत्रालय के मुताबिक कई बार पाक से इस बाबत अनुरोध किया गया लेकिन इस पर वह कभी राजी नहीं हुआ। करतारपुर गुरुद्वारे के प्रबंधक गोबिंद सिंह ने जानकारी दी थी कि सन् 1947 से साल 2000 तक यह गुरुद्वारा बंद था। करतारपुर कॉरिडोर मिशन की शुरुआत सबसे पहले भाभिशन सिंह गोराया ने की थी और वह पिछले 24 सालों से इस मकसद को आगे बढ़ा रहे हैं। सन् 2003 तक इस गुरुद्वारे को ऐसे ही छोड़ दिया गया और यह जगह जानवरों को बांधने के काम आने लगी।

जब दूरबीन से श्रद्धालुओं को मिली दर्शन की सुविधा

जब दूरबीन से श्रद्धालुओं को मिली दर्शन की सुविधा

सन् 1998 में जब नवाज शरीफ पाकिस्‍तान के और अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थे तो पहली बार इस मसले पर चर्चा हुई थी। फिर सन् 1999 में लाहौर बस सेवा के दौरान पाकिस्‍तान ने करतारपुर कॉरिडोर का रंग-रोगन कराया और रेनोवेशन के ज‍रिए इसे नया स्‍वरूप दिया। साथ ही इसी समय भारत की सीमा से श्रद्धालुओं को इसके दर्शन की सुविधा दी गई। फिर कारगिल की जंग के बाद दोनों देशों के बीच तनाव ने इस पर असर डाला।

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English summary
The interesting history of Kartarpur Sahib Gurudwara which was shut from 1947 to 2000.
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