कुंभ में 'भक्तिमय' के बाद 'कचरामय' हुआ मेला क्षेत्र
प्रयागराज में क़रीब 50 दिन तक चले कुंभ मेले के दौरान सरकार ने मेले के इंतज़ाम और साफ़-सफ़ाई की व्यवस्था को लेकर ख़ूब वाहवाही लूटी लेकिन मेला बीत जाने के क़रीब डेढ़ महीने बाद भी मेला क्षेत्र का न तो कचरा पूरी तरह से हटाया जा सका है और न ही हटाए गए कचरे का पूरी तरह से निस्तारण हो सका है.
प्रयागराज में क़रीब 50 दिन तक चले कुंभ मेले के दौरान सरकार ने मेले के इंतज़ाम और साफ़-सफ़ाई की व्यवस्था को लेकर ख़ूब वाहवाही लूटी लेकिन मेला बीत जाने के क़रीब डेढ़ महीने बाद भी मेला क्षेत्र का न तो कचरा पूरी तरह से हटाया जा सका है और न ही हटाए गए कचरे का पूरी तरह से निस्तारण हो सका है.
यही नहीं, पूरे मेला क्षेत्र में जगह-जगह मल-मूत्र, प्लास्टिक, पुआल और कई अन्य तरह के कचरे या तो मेला क्षेत्र में ही गड्ढों में भरकर ऊपर से बालू और मिट्टी डालकर बंद कर दिए गए हैं या फिर उन्हें जला दिया गया है.
हालांकि मेला प्रशासन का दावा है कि ज़्यादातर कचरा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स तक पहुंचा दिया गया है और मेला क्षेत्र में अब कोई कचरा नहीं है लेकिन वास्तविक सच्चाई इससे अलग है. यहां तक कि संगम के बिल्कुल क़रीब भी जलाए गए और रेत में दबाए गए कचरों के अवशेष दूर से ही दिख जाते हैं.
उजड़े हुए मेला क्षेत्र में जगह-जगह चकर्ड प्लेट्स, बिखरी हुई ईंटें और उजड़े हुए अस्थाई आशियानों की तमाम निशानियां दिख जाएंगी लेकिन इन सबके बीच जो सबसे ख़तरनाक निशानी दिख रही है, वह है ठोस कचरे के जगह-जगह पड़े ढेर और बरसात के मौसम में उनसे होने वाली बीमारियों की आशंका.
हालांकि मेला क्षेत्र का एक बड़ा भाग रिहायशी इलाक़ा नहीं है लेकिन संगम किनारे के इलाक़ों में ये ख़तरा बना हुआ है.
मिट्टी और बालू से दबा कचरा
संगम नोज़ के पास सुबह दस-ग्यारह बजे भी इतनी तेज़ धूप है कि बाहर पैदल चलना मुश्किल है लेकिन संगम स्नान करने आए श्रद्धालुओं की संख्या में कोई कमी नहीं दिखती.
ठीक संगम नोज़ के पास दो-तीन जगह कूड़े के बड़े ढेर लगे हुए हैं. पास आकर साफ़ दिखता है कि बड़ी मात्रा में कचरे को मिट्टी और बालू से ढकने की कोशिश की गई है और फिर ऊपर से आग लगा दी गई है ताकि पॉलिथिन, कागज़ इत्यादि की बनी चीज़ें जल जाएं.
कचरे से निकलने वाली और फिर उसके जलने की दुर्गंध से पास खड़ा होना भी मुश्किल रहता है. इसके अलावा संगम के उस पार अरैल क्षेत्र में तंबुओं का शहर उजड़ने के बाद कई तरह के अवशेष पड़े हुए हैं.
शौचालयों की गंदगी भी कुछ जगहों पर बिना साफ़ किए वहीं छोड़ दी गई है. स्थानीय नागरिक वीरेश सोनकर बताते हैं, "मेला ख़त्म होने के बाद तो गंगाजी और यमुना जी की भी सफ़ाई नहीं हुई है. आप देख सकते हैं कि मेले के दौरान नदियों में कितनी सफ़ाई थी और अब जगह-जगह आपको गंदगी दिखेगी."
एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट
कुंभ मेले के दौरान निकले बड़े पैमाने पर इस गंदगी और इसके निस्तारण में कथित लापरवाही को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने भी पिछले दिनों राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी थी.
बताया जा रहा है कि उसके बाद मेला प्रशासन और नगर निगम ने कूड़ा और गंदगी को वहां से हटाने में काफ़ी तेज़ी दिखाई है, बावजूद इसके, अभी तक पूरी तरह से कचरा नहीं हट सका है.
संगम किनारे स्थित कुछ तीर्थ पुरोहितों और नाविकों से बात करने पर पता चलता है कि गंदगी की सफ़ाई तो हुई है लेकिन सिर्फ़ संगम और आस-पास के इलाक़ों में ही.
क़रीब 25 साल से संगम में नाव चलाने वाले महावीर निषाद बताते हैं, "जितनी बढ़िया व्यवस्था मेला के समय हुई थी, मेला ख़त्म होने के बाद उतनी ही ज़्यादा अव्यवस्था देखने को मिल रही है. कहीं कोई गंदगी नहीं हटाई गई है. जो शौचालय प्लास्टिक वाले बने थे, उन्हें हटा दिया गया और गंदगी वहीं की वहीं मिट्टी से ढक दी गई है."
वहीं पास में ही खड़े एक अन्य नाविक ने हँसते हुए कहा, "जरूरतै का है. गंगा मइया बरसात में सब कचड़ा ख़ुदै बहाइ लइ जइहैं."
मेरे साथ खड़े एक स्थानीय पत्रकार बोले, "नाविक इस बात को भले ही मज़ाक़ में बोल रहे हैं लेकिन प्रशासन वास्तव में यही इंतज़ार कर रहा है कि बाढ़ में बालू के अंदर जमा कचरा ख़ुद ब ख़ुद साफ़ हो जाएगा."
प्रशासन का जवाब
मेला अधिकारी विजय किरन आनंद ने बीबीसी को बताया कि कचरा पूरी तरह से हटाया जा चुका है और कचरे को जलाने की बातें तो बिल्कुल बेबुनियाद हैं. वो कहते हैं कि जलाने की घटना को कुछ शरारती तत्वों ने अंजाम दिया था, प्रशासन का उससे कोई लेना-देना नहीं है.
विजय किरन आनंद बताते हैं, "मेला क्षेत्र से ज़्यादातर कचरा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स में भेजा जा चुका है. बसवार में नगर निगम का प्लांट है जो 2015 से चल रहा है.''
''हालांकि वहां 60,000 मीट्रिक टन कचरा काफ़ी दिनों से है लेकिन मेले के दौरान 9,000 मीट्रिक टन कचरा भी वहां गया था और उसके ट्रीटमेंट का काम चल रहा है. लेकिन यह क्षेत्र पूरी तरह से रिहायशी इलाक़े से काफ़ी दूर है, वहां किसी तरह की संक्रामक बीमारी का कोई ख़तरा नहीं है."
विजय किरन आनंद ने बताया कि पूरे क्षेत्र में अभी भी कूड़ा और मल-मूत्र हटाने का काम चल रहा है जिसकी दिन-प्रतिदिन निगरानी हो रही है. उनका दावा है कि बहुत जल्दी ही बची हुई गंदगी भी वहां से हटा दी जाएगी क्योंकि गंदगी सारी मेले के दौरान ही जमा हुई है, अब वहां गंदगी नहीं है.
जहां तक मेला क्षेत्र से गंदगी हटाने का सवाल है तो छोटी गाड़ियों, रिक्शा ट्रालियों पर गंदगी लादकर बाहर ले जाते हुए लोग कड़ी धूप में ही वहां देखे जा सकते हैं.
यहां से वहां होता कचरा
मेला क्षेत्र के सेक्टर 12 और 13 से ट्रॉली पर इसी तरह से गंदगी ढोकर लाते हुए संतोष ने हमें बताया, "हम और हमारे चार-पांच साथी पिछले चार दिन से इसे हटाकर ले जा रहे हैं. हम इस गंदगी को सेक्टर 12 के पास से इकट्ठा करके ले जा रहे हैं और झूंसी में एक जगह जमा कर रहे हैं. वहां से इसे डंपिंग ग्राउंड में पहुंचाया जाएगा."
हालांकि नगर निगम के एक अधिकारी ने बताया कि शहर से बाहर बसवार प्लांट में पिछले कई वर्षों से कूड़ा जमा है और ठीक से निस्तारित नहीं हो रहा था, जिसके चलते पहले से ही वहां ढेर लग रहा था.
अधिकारी के मुताबिक़ मौजूदा समय में इस प्लांट में 75 हजार मीट्रिक टन से ज़्यादा कूड़ा इकट्ठा हो चुका है. नगर निगम ने कूड़ा निस्तारित कराने के लिए शासन से बजट मांगा है.
लेकिन विजय किरन आनंद कहते हैं कि प्लांट बंद नहीं है, बल्कि साल 2015 से लगातार काम कर रहा है. उनके मुताबिक़, ''ये ज़रूर है कि प्लांट अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहा है.''
बीमारियों का ख़तरा
स्थानीय पत्रकार प्रमोद यादव इस पूरे मामले पर शुरू से ही निगरानी रखे हुए हैं. प्रमोद कहते हैं, "एनजीटी की नोटिस के बाद कूड़ा और गंदगी हटाने में काफ़ी तेज़ी आई है, नहीं तो संगम क्षेत्र में तो छोड़िए, दारागंज, अरैल, नैनी जैसे गंगा किनारे के मोहल्लों तक में कूड़े और गंदगी के ढेर लगे थे.''
''बताया जा रहा है कि मई महीने के अंत तक, शासन से बजट स्वीकृत होने के बाद डंप किए गए कूड़े को बायोमाइनिंग के ज़रिए निस्तारित कराया जाएगा. इसके लिए किसी प्राइवेट एजेंसी को ठेका दिया जाएगा. लेकिन लगता तो नहीं है कि ये सब इतनी जल्दी हो जाएगा क्योंकि बसवार प्लांट में वैसे ही सालों से कूड़ा जमा हुआ है."
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कूड़े के लगे ढेर और इसके सही से निस्तारण न होने को लेकर चिंता ज़ाहिर की है और कहा है कि शहर में गंदगी से फैलने वाली बीमारियों जैसे, डायरिया, हेपाटाइटिस, कॉलेरा इत्यादि का ख़तरा कई गुना बढ़ गया है. ट्रिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से इस पूरे मामले में सफ़ाई भी मांगी है.
कुंभ से पहले एनजीटी गंगा नदी को और प्रदूषित होने से रोकने के लिए एक कमेटी बनाई थी. इसी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर ट्रिब्यूनल ने राज्य सरकार से जवाब मांगा है. एनजीटी की रिपोर्ट के मुताबिक़, इस कचरे और गंदगी की वजह से भूमिगत जल भी दूषित हो सकता है.
दरअसल, कुंभ मेले के दौरान पूरे मेला क्षेत्र में क़रीब सवा दो लाख अस्थाई शौचालय बनाए गए थे.
नगर निगम के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि राजापुर स्थित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को क्षमता से अधिक सीवेज मिला है जिसकी वजह से महज़ आधा सीवेज ही साफ़ हो सका है जबकि बाक़ी बचे सीवेज को बिना ट्रीटमेंट के ही सीधे गंगा नदी में बहाया जा रहा है.