मोदी सरकार का वो पर्यावरण मसौदा जिसे राहुल गांधी ने 'देश की लूट' कहा
इस मसौदे पर पर्यावरणविद चिंता जता रहे हैं और विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि इसके ज़रिए मोदी सरकार उद्योगपतियों को फ़ायदा पहुंचाना चाहती है.
पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए), 2020 के ड्राफ़्ट की विपक्ष के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने आलोचना की है. सरकार ने इस मसौदे को आम लोगों की प्रतिक्रिया के के लिए पेश किया था. इसका अंग्रेज़ी नाम 'एनवायरंमेंट इंपैक्ट असेसमेंट' है.
इस मसौदे को लेकर आम लोग पर्यावरण मंत्रालय को मंगलवार (11 अगस्त) तक अपनी प्रतिक्रियाएं और सुझाव भेज सकते हैं. इस मसौदे का बड़े स्तर पर विरोध और आलोचना हो रही है. छात्रों से लेकर कार्यकर्ता और राजनीतिक पार्टियां इसे वापस लेने की मांग कर रही हैं.
सोमवार को कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने एक ट्वीट किया. इस ट्वीट के जरिए उन्होंने ईआईए 2020 मसौदे को 'लूट ऑफ़ द नेशन' (देश की लूट) कहा है.
EIA2020 ड्राफ़्ट का मक़सद साफ़ है - #LootOfTheNation
यह एक और ख़ौफ़नाक उदाहरण है कि भाजपा सरकार देश के संसाधन लूटने वाले चुनिंदा सूट-बूट के ‘मित्रों’ के लिए क्या-क्या करती आ रही है।
EIA 2020 draft must be withdrawn to stop #LootOfTheNation and environmental destruction.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 10, 2020
राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में लिखा है, "ईआईए2020 ड्राफ़्ट का मकसद साफ है - # LootOfTheNation. यह एक और ख़ौफ़नाक उदाहरण है कि भाजपा सरकार देश के संसाधन लूटने वाले चुनिंदा सूट-बूट के 'मित्रों' के लिए क्या-क्या करती आ रही है."
राहुल गांधी ने कहा कि ईआईए 2020 ड्राफ्ट को वापस लिया जाना चाहिए ताकि # LootOfTheNation और पर्वायरण को नष्ट होने से रोका जा सके."
हालांकि, उनके ट्वीट के बाद पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ख़ुद मैदान में उतर आए. उन्होंने कहा कि ईआई ड्राफ्ट नोटिफ़िकेशन का विरोध वो लोग कर रहे हैं जो खुद जब सत्ता में थे तब 'बिना राय-मशविरा किए बड़े फैसले लिया करते थे.'
जावड़ेकर ने कहा, "यह कोई अंतिम नोटिफ़िकेशन नहीं है. कोविड-19 की वजह से इसे आम लोगों से चर्चा के लिए 150 दिन दिए गए हैं. नियमों के हिसाब से केवल 60 दिन दिए जाते हैं."
इससे पहले आइसा और जेएनयूएसयू समेत करीब 50 छात्र और युवा संगठन सरकार से इस मसौदे को वापस लेने की मांग कर चुके हैं. छात्रों का कहना है कि नए बदलाव पर्यावरण और समाज के लिए गंभीर ख़तरा पैदा कर सकते हैं.
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क्यों हो रहा है इस क़दर विरोध?
इस ड्राफ़्ट नोटिफिकेशन में आखिर ऐसा क्या है जिसे लेकर इतना विरोध शुरू हो गया है?
दरअसल भारत में सभी विकास परियोजनाओं को 'ग्रीन क्लियरेंस' की ज़रूरत होती है. पर्यावरण पर ऐसी किसी भी परियोजना के पड़ने वाले असर को देखते हुए उसे मंज़ूर या नामंज़ूर किया जाता है.
गुजरे वक्त में पर्यावरणविदों की आपत्तियों के बाद कई परियोजनाओं को मंज़ूरी नहीं दी गई थी.
इस मसौदे में चार-पांच ऐसे प्रावधान हैं जिन्हें लेकर पर्यावरणविद और कार्यकर्ता चिंता जता रहे हैं.
आम लोगों की राय लेने के नियमों में ढील
टेरी यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ़ एनर्जी एंड एनवायरंमेंट में एसोसिएट प्रोफ़ेसर कामना सचदेवा के मुताबिक, "बी1 और बी2 कैटेगरी में आने वाली परियोजनाओं के के लिए आम लोगों की राय से जुड़े हुए नियमों को काफी लचीला बना दिया गया है. इसके अलावा, रणनीतिक मानी जाने वाली परियोजनाओं के लिए इन नियमों में ढील दी गई हैं."
बी2 की लिस्ट में खनन और छोटी सड़क परियोजनाएं जैसे काम आते हैं. इन परियोजनाओं को ईसी (एनवायरंमेंटल क्लियरेंस या पर्यावरण मंजूरी) से बाहर कर दिया है.
प्रोफ़ेसर सचदेवा कहती हैं, "पहले भी लोग इन नियमों से बचकर निकल जाते थे लेकिन अब तो एक तरह से इसकी मंज़ूरी मिल गई है."
हालांकि, वो यह भी कहती हैं कि ये नोटिफिकेशन अभी ड्राफ़्ट है और इसका अंतिम रूप सभी लोगों की राय और सुझाव के बाद आएगा. ऐसे में इसे लेकर अभी ज्यादा हंगामा करना ठीक नहीं होगा.
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बिना मंज़ूरी के प्रोजेक्ट में भी दिक्कत नहीं
एक बड़ी आपत्ति इस बात को लेकर है कि यह 'पोस्ट-फैक्टो क्लियरेंस' को मंजूरी देता है. इसका मतलब यह है कि बिना पर्यावरण मंजूरी के अगर कोई परियोजना शुरू हो जाती है तो उसे बाद में यह मंज़ूरी दी जा सकती है और वो जारी रह सकती है.
यह भी कहा जा रहा है कि इसमें पर्यावरण पर असर के आकलन के नियमों को उदार किया गया है. इससे नियामन प्रक्रिया लचीली बनेगी और कुल मिलाकर यह पर्यावरण के लिए ख़तरनाक होगा.
प्रोफ़ेसर सचदेवा कहती हैं, "जहां आपने पर्यावरण मंज़ूरी को हटाया है, वहां पर आप पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भरपाई कैसे करेंगे? इसे लेकर दिशा-निर्देश स्पष्ट होने चाहिए थे.''
आलोचकों का यह भी कहना है कि इसमें जलवायु परिवर्तन और इससे जुड़े मसलों पर कोई बातचीत ही नहीं की गई है.
अंतिम रूप में संतुलन ज़रूरी
इस मसौदे में जिस चीज़ को लेकर ज़्यादा विरोध हो रहा है, वो यह है कि यह लोगों की भागीदारी को कथित रूप से सीमित करता है.
यानी अगर किसी परियोजना में कोई गड़बड़ी है या उसके ज़रिए पर्यावरण को नुकसान हो रहा है तो इसका संज्ञान केवल ख़ुद परियोजना चलाने वाला या स्थानीय प्रशासन ही ले सकता है. आम लोग इसकी शिकायत नहीं कर सकते हैं.
प्रोफ़ेसर सचदेवा कहती हैं, "हालांकि, सरकार कहती रही है कि आम लोगों की राय पहले भी बहुत ज्यादा नहीं आती थी. लेकिन इस वजह से आप लोगों की राय और उनकी आपत्तियों को लेना बंद नहीं कर सकते हैं."
माना जा रहा है कि इस मसौदे के जरिए उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को फ़ायदा पहुंचाने की कोशिश की जा रही है.
सचदेवा कहती हैं, "अंतिम नोटिफ़िकेशन में एक संतुलन का होना जरूरी है ताकि पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों साथ-साथ चल सकें."