जिस बीमारी ने ली थी करोड़ों की जान, महात्मा गांधी भी हुए थे उस बीमारी से ग्रसित
नई दिल्ली- सौ वर्ष से ज्यादा बीत गए। 1918 में दुनिया भर के करीब 50 करोड़ लोग स्पैनिश फ्लू नाम की वैश्विक महामारी की चपेट में आए थे। लाखों लोगों की मौत हुई थी। भारत में भी त्राहिमाम मचा था। पहले विश्व युद्ध में जंग जीतने वाली कई मुल्कों की सेनाएं इसकी चपेट में आकर खत्म होने की कगार पर पहुंच गई थी। उस स्पैनिश फ्लू के वायरस ने महात्मा गांधी को भी संक्रमित कर दिया था। बापू बहुत ज्यादा गंभीर रूप से बीमार हो गए थे। उन्हें असहनीय पीड़ा झेलनी पड़ी। उनकी बहू और पोते भी संक्रमित हो गए थे। लेकिन, बापू ने अपने आत्मबल की शक्ति से उस जानलेवा बीमारी पर विजय पा लिया। हालांकि, गांधी जी के परिवार में बीमार पड़े लोग उतने खुशनसीब नहीं रहे। (पहली तस्वीर साभार-सोशल मीडिया)
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गांधीजी भी हुए थे स्पैनिश फ्लू से संक्रमित
11 अगस्त, 1918 की बात है, महात्मा गांधी गुजरात के खेड़ा से सत्याग्रह को सफल बनाकर लौट रहे थे कि नाडियाड में अचानक बेहोश होकर गिर पड़े। वह उस समय की वैश्विक महामारी स्पैनिश फ्लू की चपेट में आ चुके थे। एक वक्त ऐसा भी आया जब गांधी जी को लगा कि उनका अंत करीब है। गांधी जी को उस जानलेवा फ्लू से बच निकलने में लंबा वक्त लगा। वो इस गंभीर बीमारी को मात देने में सफल हुए, लेकिन इसके लिए उन्हें बहुत ही ज्यादा शारीरिक पीड़ा झेलनी पड़ी। स्पैनिश फ्लू ने अकेले महात्मा को ही नहीं, उनके परिवार के कुछ सदस्यों को भी संक्रमित किया था। उसी साल अक्टूबर के अंत आते-आते उनकी बड़ी बहू चंचल और पोता शांति दोनों इसी बीमारी के चलते चल बसे। इस फ्लू का कहर दुनिया में करीब 15 महीने तक रहा और विश्व के करीब 50 करोड़ लोग इसकी वजह से बीमार पड़े। स्पैनिश फ्लू के कारण करीब डेढ़ साल में ही दुनिया की आबादी 3 से 5 फीसदी घट गई थी। लेकिन, उससे बीमार होकर बच निकलने वालों में गांधी एक बड़े वर्ल्ड लीडर थे।
फ्रंटियर गांधी की पत्नी की हुई थी मौत
उस बीमारी ने अकेले गांधी और उनके परिवार को ही नुकसान नहीं पहुंचाया था, बल्कि उनसे जुड़ा एक और परिवार था जिसको उसकी त्रासदी झेलनी पड़ी थी। वो था फ्रंटियर गांधी के नाम से मशहूर खान अब्दुल गफ्फार खान का परिवार। पहले बादशाह खान का बेटा गानी स्पैनिश फ्लू से संक्रमित हुआ। जब उसकी हालत बेहद नाजुक हो गई तो उसकी मां यानि बादशाह खान की पत्नी मेहर कंध ने ये दुआ मांगी कि ऊपर वाला उनके बेटे की जान बख्श दे, चाहे तो उसके बदले में उनकी जान ले ले। शायद कुदरत को वही मंजूर हुआ। गानी तेजी से स्वस्थ होने लगा और उसकी मां स्पैनिश फ्लू की गिरफ्त में आती चली गई। आखिरकार वह नहीं बच सकीं। हालांकि, ये तमाम बातें ऐतिहासिक तथ्य हैं, लेकिन हाल में गांधी जी के पोते गोपालकृष्ण गांधी ने एक लेख में इन बातों का जिक्र किया है। (तस्वीर साभार-विकिपीडिया)
महामारी के वक्त स्वच्छता पर होता बापू का जोर
अपने लेख में गांधी जी के पोते ने अपनी कल्पनाशीलता के आधार पर कुछ संभावनाएं जताई हैं कि अगर कोरोना वायरस के इस कालचक्र के दौरान भी महात्मा गांधी होते तो वह लोगों से क्या कहते। उनके मुताबिक बीमारियों और महामारियों के वक्त बापू परिस्थिति के मुताबिक बेहतर उपायों पर ज्यादा जोर देते थे। मसलन, ऐसे वक्त में स्वच्छता पर उनका जोर और ज्यादा बढ़ जाता था। वह शारीरिक व्यायाम पर जोर देते और पश्चिमी और परंपरागत उपचार करने वाले विशेषज्ञ दोनों की सलाहों पर गौर फरमाते। लेकिन, वे अंधविश्वासों को कभी भी फटकने नहीं देते। हालांकि, वे हमेशा डॉक्टरी सलाह को मान ही नहीं लेते थे, लेकिन उसे अपनी तर्क की कसौटी पर जरूर कसने की कोशिश करते।
अभी गांधीजी होते तो क्या कहते?
गोपालकृष्ण गांधी का मानना है कि ये तो कोई नहीं बता सकता कि वह होते तो कोरोना के समय क्या करते, लेकिन उन्होंने अपना कुछ अनुमान जरूर जताया है कि शायद गांधी इन बातों को अपना सकते थे। वह लोगों से विशेषज्ञों और आधिकारिक सलाहों को मानने के लिए कहते, खासकर स्वच्छता और संक्रमण को मिटाने के बारे में और उन्हें सम्मानपूर्वक लोगों को अपनाने को भी कहते। वह सरकार से भी कहते कि ऐसी हेल्पलाइन दें जिसपर पाबंदियों को लेकर लोग अपनी बातें पहुंचा पाएं। इससे पता चलता कि पाबंदियों से कहां मुश्किलें हो रही हैं और उसका समाधान निकाला जा सकता था। वह इस संकट की घड़ी में मसीहा बने डॉक्टरों, मेडिकल स्टाफ मसलन नर्सों, लैब टेक्निशियनों और जरूरी सेवाओं से जुड़े लोगों को हीरो की तरह सम्मान करने को कहते। इस संकट की वजह से जिन गरीबों-दलितों-वंचितों की भी रोजी-रोटी पर गाज गिरी है, उन्हें हर तरह की सहायता पहुंचाने को कहते।