निजीकरण नहीं, बल्कि इसलिए जा रही है लाखों रेलवे कर्मचारियों की नौकरी!
बेंगलुरू। भारतीय रेल बोर्ड द्वारा निजी संचालक आईआरसीटीसी को तेजस एक्सप्रेस के संचालन का जिम्मा सौंपने के बाद से भारतीय रेल के निजीकरण को लेकर अटकलें तेज हो गई। इसको हवा तब और बल मिल गया जब नीति आयोग ने रेलवे बोर्ड को देश 150 पैसेंजर ट्रेन और 50 रेलवे स्टेशन के संचालन और रखरखाव का जिम्मा निजी संचालकों को सौंपने का निर्देश दिया है।
खबर है रेल मंत्रालय ने विभिन्न विभागों में कर्मचारियों की आवश्यकता का नए सिरे से आकलन कर नॉन-कोर गतिविधियों को आउटसोर्स करने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। अगर ऐसा होता है कि निजी संचालकों के देखरेख में ऐसे रेलवे कर्मचारियों पर गाज गिर सकती है, जो रेलवे पर अनावश्यक बोझ बने हुए है, लेकिन रेलवे की यह कवायद जुलाई, 2019 में शुरू की थी, जो एक रूटीन का हिस्सा है और रेलवे हर वर्ष यह करती है, जिसका निजीकरण से कुछ लेना-देना नहीं है।
दरअसल, रेलवे बोर्ड की ओर से जुलाई, 2019 को रेलवे के विभिन्न कार्यो के लिए कर्मचारियों की आवश्यकता के नए मानदंड निर्धारित किए गए थे। महाप्रबंधकों से कहा गया है कि वे नए मानदंडों के मुताबिक हर विभाग में विभिन्न कार्यो के लिए आवश्यक कर्मचारियों की संख्या का नए सिरे से आकलन कर इस बात का पता लगाएं कि कहां कितने कार्यो को आउटसोर्स किया जा सकता है ताकि रेलवे को फालतू सरकारी कर्मचारियों को बोझ से मुक्त कर वेतन और अन्य खर्चो में कमी की जा सके।
उदाहरण के लिए ओएचई नॉन पावर ब्लॉक, ओएचई के अन्य कार्य, पीएसआई मेंटीनेंस एवं पीएसआई ऑपरेशन और टीपीसी, ड्राइंग व तकनीकी और क्लेरिकल स्टाफ/हेल्पर के कार्य आउटसोर्स कर्मचारियों को सौंपने को कहा गया है। कोर गतिविधियों में भी नए मानकों के अनुसार इलेक्टि्रक लोको और कोच के मेंटीनेंस के लिए इलेक्ट्रिक व मैकेनिकल कर्मचारियों की संख्या भी अब पहले से कम की जाएगी, जिससे लाखों सरकारी कर्मचारियों की छंटनी की संभावना है।
रेलवे में कर्मचारियों के पुनः आकलन की उक्त मुहिम सरकार के उस आदेश के बाद शुरू हुई है, जिसमें सभी मंत्रालयों से अपने यहां के विभिन्न विभागों में कर्मचारियों का नए सिरे से आकलन कर फालतू कर्मचारियों में कमी करने व गैर-कोर गतिविधियों को आउटसोर्स करने को कहा गया है। रेलवे के इस रूटीन प्रक्रिया के जरिए कर्मचारियों के परफॉर्मेंस को आंका जाता है। बताया गया है कि हर साल की तरह इस साल भी यही निर्देश जारी किया गया है।
रेलवे के मुताबिक वर्ष 2014 से 19 के बीच रेलवे ने विभिन्न श्रेणियों में 1,84,262 कर्मचारियों की भर्ती की गई है। वहीं, 2 लाख 83 हजार 637 पदों पर भर्ती प्रक्रिया चल रही है। इस मुहिम के तहत 55 वर्ष से अधिक रेलवे कर्मचारियों को वोलेंटरी रिटायरमेंट किया जाएगा। इसकी शुरूआत रेलवे में मार्च, 2020 तक 55 वर्ष से अधिक उम्र अथवा 30 वर्ष की सेवा पूरी करने वाले अक्षम कर्मचारियों और अधिकारियों को वोलेंटरी रिटायर करने के 27 जुलाई के पिछले आदेश के कार्यान्वयन के बीच में शुरू हुई है।
Indian Railways have recruited approximately 1,84,262 employees in various categories during year 2014-19.Recruitment exercise for 2,83,637 posts is underway,out of which tests have already been conducted for 1,41,060 posts and the process shall be completed within next 2 months. pic.twitter.com/DyhQLVdXeB
— Ministry of Railways (@RailMinIndia) July 30, 2019
दिलचस्प बात यह है कि इस संबंध में रेलवे ने जोनल रेलवे ऑफिसर्स को पत्र लिखकर उक्त लिस्ट तैयार करने का आदेश दिया था। मंत्रालय ने उनसे अपने कर्मचारियों की सर्विस रिकॉर्ड तैयार करने को कहा है, जिसमें उनका प्रोफार्मा संलग्न किया हुआ हो। इस लिस्ट में 55 साल की उम्र पार कर चुके या अगले साल की पहली तिमाही तक रेलवे में 30 साल नौकरी कर चुके कर्मचारियों का नाम शामिल करने को कहा था। 9 अगस्त तक जोनल ऑफिसरों को ये लिस्ट तैयार कर भेजने को कहा गया था।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मीडिया में रेलवे से तीन लाख रेलवे कर्मचारियों की नौकरी से निकाले जाने की खबर छप गई। मीडिया में छपी खबरों के बाद 30 जुलाई, 2019 को रेलवे ने ट्वीट कर बताया कि रेलवे में की जा रही उक्त कार्रवाई एक रूटीन का हिस्सा है, जो प्रतिवर्ष किया जाता रहा है, लेकिन एक बार फिर अक्टूबर में रेलवे से लोगों की छंटनी की खबरें सुर्खियां बन गई हैं, जो कि जुलाई, 2019 में जारी हुआ था और इसका निजीकरण से कुछ लेना-देना नहीं है।
उल्लेखनीय है केंद्र सरकार ने फरवरी में पेश किए आम बजट में रेलवे के निजीकरण को लेकर पहले ही संकेत दे चुकी थी। रेल मंत्री पीयूष गोयल ने आम बजट 2019-20 के दौरान रेलवे मे पीपीपी के तहत विनिवेश करने की घोषणा की थी, जिसके तहत वित्त वर्ष 2019-20 में सरकार ने कुल एक लाख करोड़ रुपए विनिवेश के माध्यम से उगाहने का लक्ष्य रखा था।
रेलवे मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित विनिवेश लक्ष्य के तहत ही निजी संचालक आईआरसीटीसी को तेजस एक्सप्रेस के संचालन का जिम्मा सौंपा गया। रेल मंत्रालय विनिवेश लक्ष्य को पूरा करने के लिए रेलवे में सुविधा बढ़ाने के नाम पर अगले 12 साल में 50 लाख करोड़ निवेश जुटाने का लक्ष्य तैयार किया है।
दरअसल, आम बजट में रेलवे में सार्वजनिक निजी साझेदारी, निगमीकरण और विनिवेश पर जोर दिया गया था, जो निजीकरण पर ले जाने का रास्ता है। हालांकि कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष ने रेलवे के निजीकरण की आंशका के चलते सरकार को घेरने का प्रयास किया था और सरकार को बड़े वादे करने की बजाय रेलवे की वित्तीय स्थिति सुधारने के साथ-साथ रेलवे में सुविधा और सुरक्षा सुनिश्चिति करने की सलाह दी थी।
गौरतलब है भारतीय रेलवे में वर्तमान में कुल 13 लाख कर्मचारी रोजगाररत हैं और सरकार इनकी संख्या को घटाकर 10 लाख करना चाहती है। इसके लिए 2014 से 2019 के बीच ग्रुप ए और ग्रुप बी के 1.19 लाख अधिकारियों के कामकाज, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य, हाजिरी तथा समयपालन की समीक्षा की गई है।
रेलवे के निजीकरण की पहल रेल मंत्रालय ने रेलवे में अच्छी सेवा, सुरक्षा, हाई स्पीड ट्रेन जैसी सुविधा उपलब्ध कराने के लिए रेल मंत्रायल निजी संचालकों ट्रेनों के संचालन सौंपने का निर्णिय किया है और इसी के मद्देनजर वित्तीय वर्ष 2019-20 में विनिवेश के माध्यम से कुल एक लाख करोड़ रुपए उगाहने का लक्ष्य रखा है।
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निजी ऑपरेटर्स से रेल पैसेंजरों को मिलेंगे ये फायदे-
निजीकरण से यात्रियों सुविधाओं में होगा इजाफा
तेजस एक्सप्रेस पहली ऐसी भारतीय एक्सप्रेस ट्रेन है, जिसके संचालन की जिम्मेदारी आईआरसीटीसी दी गई है। निजीकरण के बाद आईआरसीटीसी ने पैसेंजरों के साथ अच्छा व्यवहार करने व सहयोगी की तरह पेश आने के लिए अपने कर्मचारियों को यात्रियों के साथ अच्छा व्यवहार करने और सहयोगी की तरह पेश आने की विशेष ट्रेनिंग दी गई है।
एक घंटे होने पर पैसेंजर्स को मिलेंगे रिफंड
निजी संचालकों के हाथ में रेलवे के जाने से यात्री सुविधाओं की पूरी गुंजाइश है, लेकिन लेट-लतीफी के लिए जाने-जाने वाली भारतीय रेल पैसेंजरों को निजीकरण के बाद ट्रेन के एक घंटे से ज्यादा लेट होने पर उनके पैसे रिफंड मिलने के भी प्रावधान हैं। जी हां, एक घंटे से अधिक लेट होने पर 100 रुपए और दो घंटे से अधिक देरी पर 250 रूपए रिफंड दिया जाएगा। यह रिफंड टीडीआर से नहीं होगा। यह सीधे आईआरसीटीसी करेगा।
पैसेंजरों को मिलेगा 25 लाख रुपए का बीमा लाभ
आईआरसीटीसी की ओर से संचालित पहले तेजस एक्सप्रेस में यात्रा करने वाले पैसेंजरों को 25 लाख़ का बीमा का लाभ दिया जा रहा है। इतना ही नहीं, यात्रा के दौरान लूटपाट होने या सामान चोरी होने पर एक लाख रुपए का मुआवजा भी दिया जाएगा। जबकि सितंबर, 2018 में रेलवे ने फ्री पैसेंजर बीमा को समाप्त कर दिया है और इसके बदले बीमा को आप्सनल बना दिया गया है, जो यात्री की इच्छा पर निर्भर होगा। इससे पहले भारतीय रेल आरक्षित यात्रियों के लिए 10 लाख रुपये तक के बीमे का प्रावधान किया गया था, जिसके लिए रेलवे प्रति यात्री से .92 पैसे प्रीमियम वसूलती थी।
प्राइवेट ऑपरेटर्स चलाएंगे अत्याधुनिक पैसेंजर ट्रेन
प्राइवेट ऑपरेटर्स अत्याधुनिक पैसेंजर ट्रेन चलाएंगे, जिसकी व्यवस्था पूरी तरह से पारदर्शी रखी जाएगी। निजी कंपनियों को ट्रेन चलाने के लिए मांगे गए प्रस्ताव के आधार पर रेलवे पैसेंजर ट्रेनों को चलाने के लिए रेट तय करेगी। यह सभी बेस प्राइस होंगे। इनकी आधार पर ही रेलवे टेंडर आमंत्रित किया जाएगा। यानी निजी ऑपरेटर्स अपनी मनमर्जी से ट्रेन टिकटों के दर का निर्धारण नहीं कर सकेंगे।