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वो मामला जिसके चलते तीन तलाक़ अंसवैधानिक क़रार दिया गया

सुप्रीम कोर्ट ने भारत में तीन तलाक़ को संवैधानिक करार दिया है लेकिन ये सफ़र इतना आसान भी नहीं था.

By गीता पांडे - बीबीसी संवाददाता
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File photo of a Muslim woman praying
Getty Images
File photo of a Muslim woman praying

देश की सर्वोच्च अदालत की संवैधानिक पीठ ने मंगलवार को 'तीन तलाक़' के मुद्दे पर अपना फ़ैसला सुना दिया है. पीठ ने अपने फ़ैसले में बहुमत से इस विवादित प्रथा को असंवैधानिक क़रार दिया है.

'तीन तलाक़' के ख़िलाफ़ लंबे समय से देश की तमाम अदालतों में लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं और महिलाएं इसे अपनी जीत के रूप में देख रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट: '3-2 के बहुमत से तीन तलाक़ असंवैधानिक करार'

मुग़ल काल में तलाक़ के क्या नियम थे?

आसान नहीं थी ये जीत

भारत में रहने वाली मुस्लिम महिलाएं एक लंबे समय से अपने वैवाहिक जीवन के एक झटके में ख़त्म हो जाने के डर में जी रही हैं क्योंकि मुस्लिम पुरुष अपनी मर्जी के मुताबिक सालों लंबी शादी को पल भर में एक साथ तीन तलाक़ देकर तोड़ सकते हैं.

भारत में बीते कई सालों से इस विवादित प्रथा को रोकने के लिए अभियान चलाया जा रहा है.

लेकिन बीते साल दो बच्चों की मां 35 वर्षीय मुस्लिम महिला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचती है तो ये पूरा अभियान एक बार फ़िर ज़िंदा हो उठता है.

तीन तलाक़
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तीन तलाक़

ये महिला हैं शायरा बानो जिन्होंने साल 2016 की फ़रवरी में अपनी याचिका दायर की. वे कहती हैं कि जब वह अपना इलाज कराने के लिए उत्तराखंड में अपनी मां के घर गईं तो उन्हें तलाक़नामा मिला.

शायरा बानो ने इलाहाबाद में रहने वाले अपने पति और दो बच्चों से मिलने की कई बार गुहार लगाई लेकिन उन्हें हर बार दरकिनार कर दिया गया.

और, उन्हें अपने बच्चों से भी मिलने नहीं दिया गया.

शायरा बानो ने अपनी याचिका में इस प्रथा को पूरी तरह प्रतिबंधित करने की मांग उठाई. उन्होंने ये भी कहा है कि हलाला और कई पत्नियां रखने की प्रथा को भी गैर क़ानूनी ठहराया जाए.

वे कहती हैं, "ये सारी प्रथाएं गैरक़ानूनी, असंवैधानिक, लैंगिक न्याय के ख़िलाफ़ और भेदभाव करने वाली हैं."

इस्लाम में तलाक़ की प्रक्रिया

इस्लाम के जानकारों के मुताबिक़, क़ुरान में तलाक़ की व्यवस्था कहती है कि तलाक़ को तीन महीने में दिया जाना चाहिए. इससे शादीशुदा जोड़े को अपने फ़ैसले पर विचार करने का समय मिल जाता है.

लेकिन बीती कई शताब्दियों से भारत में मौलवियों की सहमति से तलाक़ ए-बिदत यानी एक समय पर तीन बार तलाक़ बोलकर तत्काल शादी तोड़ने का चलन रहा है.

फ़ारसी भाषा में बिदत शब्द का अर्थ पाप होता है और यह मुस्लिम पुरुषों को 'तलाक़, तलाक़, तलाक़' कहकर शादी तोड़ने की इजाज़त देता है.

आधुनिक तकनीक ने इस प्रक्रिया को और भी सरल बना दिया है. अब मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नियों को टेक्स्ट मैसेज़, पोस्ट और फ़ोन पर तलाक़ कहकर तलाक़ दे सकते थे.

पिछले दिनों स्काईप, वॉट्सऐप और फ़ेसबुक को भी तलाक़ देने के लिए प्रयोग किया गया था.

तीन तलाक़
AFP
तीन तलाक़

क़ुरान और शरिया में एक बार में तीन बार तलाक़ बोलने की प्रथा का जिक्र नहीं है. बीते कई सालों में कई महिलाएं अलग-अलग अदालतों में तीन तलाक़ को चुनौती देती आई हैं.

जब मुसलमानों ने ही तीन तलाक़ को ग़लत माना तो ये दख़ल क्यों?

ऐसे में शायरा बानो की कहानी में ऐसा क्या था जिसकी वजह से इस अभियान में नई जान फूंक दी गई.

शायरा बानो के वकील बालाजी श्रीनिवासन ने बीबीसी से बात करते हुए बताया, "ये पहला मौका था जब एक मुस्लिम महिला ने अपने तलाक़ को इस आधार पर चुनौती दी कि इससे उनके मूल अधिकारों का हनन हुआ."

भारतीय संविधान के तहत इन अधिकारों को भारतीय संविधान की रीढ़ माना जाता है. ऐसे में इन अधिकारों को आसानी से छीना नहीं जा सकता है और ऐसा होने पर नागरिक अदालत का सहारा ले सकते हैं.

शायरा बानो
BBC
शायरा बानो

"एक मौलवी ने उनसे कहा, आपके धर्म की वजह से आपके पास मूल अधिकार नहीं हैं."

ऐसे में अगर आप हिंदू, ईसाई या किसी अन्य धर्म को मानने वाली महिला हैं तो आप ठीक हैं लेकिन अगर आप मुस्लिम हैं तो आपके पास मूल अधिकार नहीं हैं?

श्रीनिवासन कहते हैं, "इसलिए, शायरा बानो ने कोर्ट में जाकर अपने संवैधानिक अधिकारों के हनन की बात रखी और सर्वोच्च अदालत ने इस मामले पर सुनवाई करने का फ़ैसला लिया."

वे कहते हैं मुझे आश्चर्य है कि आज तक किसी ने इस बारे में क्यों नहीं सोचा, शायद ये एक ऐसी चीज़ थी जिसका सही वक्त आ चुका है.

इस अभियान को भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की ओर से भी मदद मिली.

बीएमएमए की संस्थापक सदस्य ज़ाकिया सोमन कहती हैं, "ये और कुछ नहीं धर्म के रूप में पितृसत्ता है. किसने लॉ बोर्ड को हमारे वो अधिकार छीनने का अधिकार दिया जो हमें अल्लाह ने दिए हैं.

तीन तलाक़
AFP
तीन तलाक़

साल 2007 में बीएमएमए ने उन महिलाओं की लिस्ट बनानी शुरू की जो तीन तलाक़ और बहुविवाह का शिकार हुई थीं.

सोमन कहती हैं, "हमने 4710 महिलाओं को अपने सर्वे में शामिल किया. इनमें से 525 महिलाओं को तलाक़ मिला था और इनमें से 414 महिलाओं को एक ही साथ तीन बार तलाक़ बोलकर तलाक़ मिला था."

इसके बाद संस्था ने 100 मामलों पर एक रिपोर्ट जारी की जिनमें महिलाओं को बिना किसी सहारे के छोड़ दिया गया.

साल 2012 में इस संस्था ने इस मामले पर सार्वजनिक मीटिंग की जिसे 500 लोगों ने ज्वॉइन किया. इन महिलाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, क़ानून मंत्री, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री और महिला एवं बालकल्याण मामलों के मंत्री को पत्र लिखा.

इसके बाद तीन तलाक़ को प्रतिबंधित करने की मांग करने वाले 50 हज़ार हस्ताक्षरों को इकट्ठा किया.

शायरा बानो की याचिका के दो महीने बाद एक और महिला आफ़रीन रहमान ने भी सुप्रीम कोर्ट में अपने तलाक़ को चुनौती देती हुई याचिका दायर की.

इसके बाद तीन अन्य महिलाओं और बीएमएमए समेत दो महिला संस्थाओं ने इसी तरह की याचिका डाली. इसके बाद इन मामलों को एक साथ जोड़कर कोर्ट ने सभी धर्मों के जजों वाली एक बेंच बनाई जिसमें एक हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी और मुस्लिम जज शामिल थे.

मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर के नेतृत्व में 11 मई से शुरू होकर छह दिनों तक सुनवाई चली और दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने के लिए बराबर समय दिया.

An India woman who was divorced through triple talaq
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An India woman who was divorced through triple talaq

तीन तलाक़ पर बैन का विरोध करने वाले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि ये 14 सौ साल पुरानी प्रथा है जो हालांकि ग़लत है लेकिन तीन तलाक़ मुस्लिमों के लिए आस्था का विषय है.

अगर पुरुष अपनी पत्नियों से अलग नहीं पाएंगे तो वह गैरक़ानूनी और आपराधिक तरीकों जैसे उनकी हत्या और उन्हें ज़िंदा जलाना शुरू कर देंगे.

इसके वकीलों का कहना है कि बीजेपी हिंदू राष्ट्र के एजेंडा के साथ चल रही है. और, मुस्लिम निजी क़ानून और तौर-तरीकों पर ख़तरा मंडरा रहा है.

इस बोर्ड ने वादा किया था कि ये इस प्रथा को कम कराने और एक साथ तीन तलाक़ देने वाले लोगों को समुदाय से बाहर किया जाएगा.

ये एक ऐसा विचार था जो वकील इंदिरा जयसिंह को कतई रास नहीं आया. जयसिंह मुस्लिम महिलाओं के संगठन बेबाक कलेक्टिव का प्रतिनिधित्व करती हैं.

इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि एक गैरक़ानूनी तरीके के ऊपर दूसरा गैरक़ानूनी तरीका, उम्मीद करती हूं कि कोर्ट तीन तलाक के मामले के लिए संवैधानिक दायरे से बाहर जाकर किसी समाधान न निकाले."

तीन तलाक़
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तीन तलाक़

जयसिंह ने ये भी कहा था कि सुनवाई के दौरान पितृसत्ता को महसूस किया गया, देखा गया और सुना भी गया.

महिलाओं के ख़िलाफ़ द्वेष और अन्याय ने न्यायाधीशों को भी परेशान किया और उन्होंने कहा कि अगर एक बार में तीन तलाक़ धार्मिक रूप से ख़राब है तो क़ानूनी रूप से ठीक कैसे हो सकता है.

चीफ़ जस्टिस ख़ेहर ने कहा था, "आप हर शुक्रवार को मस्ज़िद में नमाज़ पढ़ते हैं. इसमें आप तलाक़ को पाप और ग़लत बताते हैं. आप ये कैसे कह सकते हैं कि ये इस्लाम का अटूट हिस्सा है?"

जस्टिस कुरियन जोसेफ़ ने भी कहा, "क्या जिस चीज़ को भगवान ने ग़लत माना है उसे इंसान क़ानून के द्वारा सही ठहरा सकता है."

आखिर में कोर्ट ने इस तर्क को नहीं माना कि इसे बस इसलिए स्वीकार किया जाना चाहिए क्योंकि ये 1400 साल पुरानी प्रथा है.

मंगलवार को आए कोर्ट के आदेश में भारत के पास आख़िरकार इस सवाल का जबाब है कि एक बार में तीन तलाक़ न सिर्फ़ ग़लत है बल्कि गैरक़ानूनी भी है.

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English summary
That case whose three divorces were declared unconstitutional
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