बाला साहेब की छवि बदलने की कोशिश है 'ठाकरे'?
सांसद संजय राउत शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे पर फ़िल्म बना रहे हैं.
बाल ठाकरे पर बन रही फ़िल्म 'ठाकरे' का टीज़र आ चुका है और सोशल मीडिया से लेकर आम लोगों तक हर तरफ़ इसकी चर्चा है.
मुखर बालासाहेब केशव ठाकरे पर बन रही ये फ़िल्म क्या उनके चरित्र के साथ न्याय करेगी, इसका जवाब तो फ़िल्म रिलीज़ होने के बाद मिलेगा.
लेकिन फ़िलहाल जिन तीन बातों ने सबका ध्यान खींचा है. उनमें से पहली यह कि फ़िल्म बाल ठाकरे की ज़िंदगी पर बनी है और उसका निर्माण शिवसेना के वरिष्ठ नेता और सांसद संजय राउत कर रहे हैं.
दूसरी यह कि इस फ़िल्म में बाल ठाकरे का क़िरदार नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी निभा रहे हैं. उत्तर प्रदेश से आए नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी ने कुछ समय पहले इन ख़बरों को ख़ारिज कर दिया था कि वह बाल ठाकरे की किसी बायोपिक में काम कर रहे हैं.
तीसरी और सबसे अहम बात यह कि टीज़र में गले में ताबीज़ डाले एक शख़्स बाल ठाकरे के समर्थन में नारे लगा रहा है. साथ ही एक धुंधला सा शॉट आता है जिसमें भगवा वस्त्र पहने एक शख़्स मीटिंग कर रहा है और उसी कमरे में कोई दूसरा व्यक्ति नमाज़ पढ़ रहा है.
छाती ठोक कर हिंदुत्व का समर्थन करने वाले ठाकरे
यूपी के नवाज़ुद्दीन, महाराष्ट्र के 'बाल ठाकरे'
'बाल ठाकरे मुस्लिम विरोधी नहीं थे'
इन तीन बातों में आख़िरी बात चौंकाने वाली है क्योंकि नेता बनने से पहले पेशे से कार्टूनिस्ट रहे बाल ठाकरे की छवि मुसलमानों के हिमायती नेता की नहीं रही.
बीबीसी ने इन दृश्यों के बारे में फ़िल्म के निर्देशक और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना से जुड़े अभिजीत पांसे से बात की तो उन्होंने कहा कि 'बाल ठाकरे मुस्लिम विरोधी नहीं थे, वह केवल उन मुसलमानों के विरोधी थे जो पाकिस्तान परस्त थे.'
पांसे के मुताबिक़, "यह बाला साहेब पर फ़ेयर पॉलिटिकल बायोपिक है. इसका उद्देश्य उन कहानियों को भी बताना है जो लोगों को पता नहीं है. टीज़र में जो शॉट आप देख रहे हैं वो ऐसे ही क़िस्से हैं और यह आपको फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलेगा."
नवाज़ुद्दीन को फ़िल्म में लेने के सवाल पर पांसे कहते हैं, "कला में हम हिंदू-मुस्लिम कलाकार नहीं देखते. नवाज़ुद्दीन, ठाकरे के कैरेक्टर में अच्छे से उतर सकते थे इसलिए हमने उन्हें लिया. हमारी दिक्कत पाकिस्तानी कलाकारों से है."
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शिवसेना हमेशा से ऐसी नहीं थी
बाल ठाकरे की पार्टी शिवसेना आज भले ही कट्टर हिंदुत्ववादी पार्टी नज़र आती हो लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था.
70 के दशक में शिवसेना ने मुस्लिम लीग के साथ मुंबई के स्थानीय निकाय चुनावों में गठबंधन भी किया था.
तो शिवसेना कट्टर हिंदुत्व की तरफ़ कैसे मुड़ गई? इस सवाल के जवाब में मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार वैभव पुरंदरे कहते हैं कि शिवसेना में मुसलमानों को लेकर विरोधाभास रहा है.
पुरंदरे के मुताबिक़, "मुस्लिम लीग के साथ के अलावा शिवसेना ने कई पार्टियों के साथ गठबंधन किया. राजनीतिक रूप से उसे जहां ठीक लगा उसने वहां उस पार्टी के साथ गठबंधन किया."
पुरंदरे कहते हैं, "फ़िल्म का उद्देश्य यह दिखाना हो सकता है कि बाल ठाकरे मुसलमानों के ख़िलाफ़ नहीं थे."
हालांकि वह यह भी जोड़ देते हैं कि 'भाजपा ने सीधे तौर पर बाबरी मस्जिद गिराने का श्रेय कभी नहीं लिया लेकिन बाल ठाकरे इसे खुलकर स्वीकारते थे.'
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जब ठाकरे का मताधिकार छीन लिया गया
राम मंदिर आंदोलन के समय शिवसेना तेज़ी से हिंदुत्व की तरफ़ बढ़ती नज़र आई. 1985 के बाद शिवसेना ने पूरी तरह हिंदुत्व की राह पकड़ ली.
1987 में विले पार्ले के विधानसभा उपचुनाव में हिंदुत्व के नाम पर लड़ने वाली शिवसेना इकलौती पार्टी थी.
पुरंदरे बताते हैं कि, "इस चुनाव में हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने के बाद चुनाव आयोग ने ठाकरे से छह साल के लिए मतदान का अधिकार छीन लिया था."
शिवसेना पर 1992-93 के मुंबई दंगों में शामिल होने का आरोप भी लगा था. पुरंदरे कहते हैं कि, ''बाल ठाकरे कहते थे कि अगर मुसलमानों ने कुछ किया तो शिवसेना उसका जवाब देगी.''
पुरंदरे के मुताबिक़, "वह विवादों में रहने वाले व्यक्ति थे और खुलकर बोलते भी थे. लेकिन शिवसेना और ठाकरे की रणनीति थी कि 'देशभक्त' मुसलमानों' का समर्थन करना है. ठाकरे कहते थे कि पाकिस्तान क्रिकेट टीम की जीत पर जहां पटाखे फूटते हैं, मैं उसके ख़िलाफ़ हूं. भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी मोहम्मद अज़हरुद्दीन को वह देशभक्त कहते थे."
बाल ठाकरे की भव्य अंतिम यात्रा
पुरंदरे ठाकरे के अंतिम संस्कार का ज़िक्र भी करते हैं.
वह बताते हैं, "जब उनकी अंतिम यात्रा निकल रही थी, तब माहिम दरगाह के ख़ादिमों ने उनके सम्मान में एक चादर पेश की थी. ठाकरे और मुस्लिमों के इन्हीं संबंधों को पुरंदरे विरोधाभासी बताते हैं."
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फ़िल्म इंडस्ट्री में ज़बरदस्त पकड़
पुरंदरे बताते हैं कि बॉलीवुड के कई नामी मुस्लिम लोगों की बाल ठाकरे से दोस्ती थी, दिलीप कुमार भी उनमें से एक हैं.
फ़िल्मों के लिए शिवसेना की भारतीय चित्रपट सेना नाम से विंग है, जिसकी टेक्नीशियनों और दूसरे कर्मचारियों के बीच अच्छी पहुंच है.
हालांकि शिवसेना का फ़िल्मों में दखल ज़्यादा नहीं रहा. वो मराठी फ़िल्मों के लिए गाहे-बगाहे प्रदर्शन करती रही.
बीबीसी मराठी सेवा के संपादक आशीष दीक्षित बताते हैं, "फ़िल्म इंडस्ट्री की हड़ताल भी इसी चित्रपट सेना के आह्वान पर होती है. यह काफ़ी मज़बूत है. लेकिन शिवसेना ने कभी भी फ़िल्मों को हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया. उसने पिछले साल अपनी पार्टी पर मराठी में फ़िल्म बनाई जो अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी."
हिंदी, मराठी और अंग्रेज़ी में आएगी 'ठाकरे'
दीक्षित बताते हैं कि शिवसेना को अब फ़िल्मों की ताक़त का अंदाज़ा लग चुका है तभी वो पार्टी पर फ़िल्म बनाने के बाद अब पार्टी के निर्माता बाल ठाकरे पर फ़िल्म बना रही है.
अभिजीत पांसे भी दीक्षित की राय से इत्तेफ़ाक रखते हैं. वो कहते हैं, ''वह इस फ़िल्म को हिंदी के साथ-साथ मराठी में भी बना रहे हैं जो अंग्रेज़ी भाषा में भी डब होगी ताकि दुनिया को बाल ठाकरे के बारे में पता चल सके.''