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तेलंगाना: किसानों के हालत में आ रहे बदलावों के दावों की हक़ीक़त

लेकिन राज्य में लम्बे समय से किसानों के अधिकारों के लिए काम कर रहे स्वतंत्र सामाजिक कार्यकर्ता नैनला गोवर्धन का मानना है कि तेलंगाना सरकार यह सारी योजनाएँ अगले साल राज्य में होने वाले चुनवों के मद्देनज़र शुरू कर रही है. एक साक्षात्कार के दौरान वह कहते हैं, "यह सब चुनाव के एक साल पहले ही क्यों शुरू हो रहा है ? केसीआर की सरकार राज्य का ख़ज़ाना ख़ाली करके अगले चुनावों की तैयारी कर रही है.

By BBC News हिन्दी
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किसान आत्महत्या
Priyanka Dubey/BBC
किसान आत्महत्या

किसानों की आत्महत्या और कृषि संकट से जुड़ी बीबीसी की इस विशेष रेपोर्टाज आधारित सिरीज़ की पुरानी कड़ियों में हमने जाना कि कैसे पंजाब से महाराष्ट्र तक भारत एक 'कृषि प्रधान' देश से 'फ़ांसी प्रधान' देश में तब्दील होता जा रहा है.

यात्रा के इसी क्रम में अब हम देश के सूदूर दक्षिण में स्थित तेलंगाना राज्य में पहुंचे हैं. बीते मार्च में संसद में आँकड़ों को पेश करते हुए कृषि मंत्री राधा मोहन ने संसद को बताया कि तेलंगाना में 2015 में दर्ज़ हुई 1358 किसान आत्महत्याओं का आंकड़ा 2016 में घटकर 632 पर आ गया है.

इसके साथ ही तेलंगाना सरकार और राष्ट्रीय आर्थिक सहालकारों के एक तबके ने तेलंगाना में कृषि संकट की स्तिथि में बड़े बदलावों के दावे करना शुरू कर दिए. चौतरफ़ा पैर पसारते कृषि संकट के बीच तेलंगाना के कृषि परिदृश्य में आए इन तथाकथित सकारात्मक बदलावों के दावों की ज़मीनी पड़ताल करने हम अपने आख़िरी पड़ाव तेलंगाना पहुंचे.

हम तेलंगाना के सिद्धिपेठ जिले के रायावाराम गांव में हैं. राज्य के मुख्यमंत्री कल्वाकुन्थल चंद्रशेखर राव (केसीआर) के विधान सभा सीट गज्वेल में पड़ने वाले इस गांव में रहने वाले किसानों की ज़िंदगी राज्य के ज़्यादातर किसानों की तरह बदल रही है. यहां रहने वाले 23 वर्षीय किसान उट्टेल अशोक भारत के उन चंद किसानों में से हैं जिन्हें अपने खेत से एक निश्चित रकम मिलना तय है.

किसान आत्महत्या
Priyanka Dubey/BBC
किसान आत्महत्या

वह खेती करें या न करें, उनके खेत में फ़सल लहलहाए या ज़मीन बंजर पड़ी रहे- उन्हें तेलंगाना सरकार की तरफ से साल की हर फ़सल पर प्रति एकड़ ज़मीन के हिसाब से 4 हज़ार रूपये मिलना तय है.

इसका मतलब हुआ साल की दो फ़सलें उगाने वाले अशोक को प्रति एकड़ 8 हज़ार की रकम हर साल मिलना तय है. यह रकम सरकार की तरफ से मुफ्त दी जाएगी. इसके अलावा फ़सल से होने वाली आमदनी अशोक की अपनी होगी. अशोक को सरकार की तरफ से यह मदद कैसे और क्यों मिल रही है - यह विस्तार से जानने से पहले आइए जानते हैं अशोक की कहानी.

किसान आत्महत्या
Priyanka Dubey/BBC
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खेती के लिए लिया गया कर्ज़ न चुका पाने कि वजह से 4 साल पहले अपने पिता उट्टेल नरसिंहमुल्लू को खो चुके अशोक के लिए 8 हज़ार प्रति एकड़ की यह सुनिश्चित सालाना आमदनी किसी चमत्कार से कम नहीं है.

उनसे मिलने के लिए हम हैदराबाद से सुबह 5 बजे सिद्धिपेठ के लिए निकलते हैं. किसान आत्महत्याओं के मामले में राज्य के सबसे अधिक प्रभावित ज़िलों में आने वाले सिद्धिपेठ में इस साल औसत बारिश हुई है. अगस्त की फुहारों से रायावाराम के आस पास मौजूद चावल और कपास के खेत भी भूरी-लाल मिट्टी पर बिछी हरी कालीन से नज़र आते हैं.

तकरीबन सुबह 8 बजे हम रायावाराम गांव के मुहाने पर बने अशोक के घर पहुंचते हैं. रास्ते में गांववालों से मालूम चलता है कि इस गांव में अब तक 4 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. गोबर से ताज़ा-ताज़ा लीपे गए घर के आंगन में घूमती मुर्गियों के बीच बैठे अशोक अपना दिन शुरू कर चुके हैं.

किसान आत्महत्या
Priyanka Dubey/BBC
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पिता नरसिंहमुल्लू के बारे में पूछने पर अशोक तुरंत घर के अंदर से उनकी तस्वीर और आत्महत्या से जुड़े कागजों का एक पुलिंदा लेकर बरामदे में आते हैं.

तेलुगू में लिखी पोस्टमार्टम रिपोर्ट दिखाते हुए अशोक कहते हैं. "हमारी कुल 2 एकड़ ज़मीन है. इसमें से 1.2 एकड़ सरकारी रजिस्ट्री के साथ है और बाकी बेनामी. मेरे पिता तीन एकड़ ज़मीन किराए पर लिया करते थे और फिर कुल 5 एकड़ पर कपास, चावल और मक्का जैसी फ़सलें उगाते. खेती के लिए ही उन्होंने साहूकारों से 4 लाख रुपये का कर्ज़ लिया था. इसका 12 हज़ार रुपया ब्याज़ उन्हें हर महीने देना होता.''

''हमारे पास इतने पैसे नहीं थे इसलिए पिताजी ब्याज़ तक नहीं भर पाते थे. मांगने वाले घर आते तो कहते 'दे दूंगा'. पर अन्दर ही अन्दर परेशान रहते. फिर एक दिन शाम को 6 बजे के आसपास वो घर के पीछे गए और वहां आंगन में पड़ा पेस्टिसाइड पी लिया. हम लोग बाहर ही बैठे थे...हमने थोड़ी देर बाद उन्हें बेहोश देखा तो दौड़ कर अस्पताल ले गए. उनके मुंह से झाग निकल रहा था. अस्पताल में डॉक्टर ने उनको मृत घोषित कर दिया."

किसान आत्महत्या
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नरसिंहमुल्लू के जाने के बाद अशोक के परिवार का खेती से जैसे भरोसा ही उठ गया था. लेकिन केसीआर की मौजूदा राज्य सरकार द्वारा किसानों के लिए शुरू की गयी 'रयत बंधू स्कीम' जैसी योजनाओं ने उनको दोबारा ढांढस बंधाकर खेती करने के लिए प्रेरित किया है.

तेलुगू शब्द 'रयत-बंधू' के मायने हिंदी में 'किसान-मित्र' से है. इस साल की शुरुआत से तेलंगाना में लागू हुई इस योजना के तहत राज्य के सभी 'ज़मीन-धराक' किसानों को हर फ़सल पर प्रति एकड़ 4 हज़ार रुपये दिए जायेंगे. अशोक को अपनी 1.2 एकड़ ज़मीन पर साल की फ़सल के लिए 6 हज़ार रुपये का चेक मिल चुका है.

वह जोड़ते हैं, "मुझे रयत-बंधू से फायदा हुआ है. मैंने इसके पैसों से ही अगली फ़सल के बीज खरीदें हैं."

किसान आत्महत्या
Priyanka Dubey/BBC
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कम हुए किसान आत्महत्या के आंकड़े

लेकिन 'रयत बंधू स्कीम' तेलंगाना में किसानों और खेती के बदलते चेहरे के कई कारणों में से सिर्फ़ एक कारण है.

आमतौर पर किसान आत्महत्याओं के राष्ट्रीय आंकड़ों में हर साल दूसरे या तीसरे स्थान पर पर बने रहने वाले तेलंगाना राज्य में अचानक किसान आत्महत्या के आकंडे 50 फीसदी तक गिर गए हैं.

यहां यह बताना ज़रूरी है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी) ने 2015 के बाद से किसान आत्महत्याओं से जुड़े आंकड़े आधिकारिक रूप से जारी नहीं किए हैं. इसलिए कृषि मंत्री द्वारा संसद में एक प्रश्न के जवाब के तौर पर रखे गए 2016 के इन आंकड़ों को लिखित में 'प्रोविजनल' या अनंतिम आंकड़े कहा गया है. हांलाकि 50 फीसदी गिरावट के बाद भी तेलंगाना महाराष्ट्र (2550) और कर्नाटक (1212) के बाद किसान आत्महत्याओं के मामले में देश में तीसरे स्थान पर है.

किसान आत्महत्या
Priyanka Dubey/BBC
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कैसे आधी हो गई किसान आत्महत्या?

पंजाब और महाराष्ट्र में किसानों की एक उदासीन तस्वीर देखने के बाद तेलंगाना आकर यह कौतुहल स्वाभाविक था. आखिर क्या वजह है कि साल 2015 तक देश में किसान आत्महत्याओं के केंद्र बिंदु के तौर पर पहचाने जाने वाले तेलंगाना राज्य में आत्महत्यायों की संख्या आधी कर पाने में सफल रहा?

क्या वजह है कि देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुभ्रमन्यम ने रयत-बंधू स्कीम को 'देश के भविष्य की कृषि नीति' कहा है? इस स्कीम की ख़ामियां क्या हैं?

इस सब सवालों के जवाब तलाशते के लिए हमने तेलंगाना के जनगांव, सिद्धिपेठ और ग्रामीण वारंगल ज़िलों के दौरा किया. साथ ही रयत बंधू स्कीम के चेयरमैन, सांसद और तेलंगाना राष्ट्रिय समिति के वरिष्ठ नेता सुकेन्दर रेड्डी से तेलंगाना के कृषि परिदृश्य में आए इस परिवर्तन पर विस्तृत बातचीत की.

हैदराबाद स्थित रयत बंधू कमीशन के दफ्तर में हुई इस बातचीत में सुकेन्दर ने बताया की कैसे तेलंगाना सरकार राज्य से किसान आत्महत्याओं की घटनाओं को पूरी तरह ख़त्म करने के लिए कई स्तर पर प्रयास कर रही है.

किसान आत्महत्या
Priyanak Dubey/BBC
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कर्ज़ माफ़ी से बात शुरू करते हुए उन्होंने कहा, "हमने किसानों के लिए 24 घंटे मुफ्त बिजली और खेती के लिए मुफ्त पानी देना शुरू किया. ग्राउंड वाटर ऊपर लाने के लिए हमने 'मिशन कगातिया' के तहत पूरे राज्य में जल संग्रहण और संरक्षण के लिए छोटे-छोटे तालाब बनवाना शुरू किए. हमारा लक्ष्य है 1 करोड़ एकड़ कृषि भूमि को सिंचाई के लिए पानी देना. इसके लिए राज्य में कई परियोजनाएं भी शुरू की गईं हैं".

अपनी सरकार और मुख्यमंत्री को 'किसानों' की सरकार बताते हुए सुकेन्दर कहते हैं की 'रयत बंधू स्कीम' तेलंगाना के कृषि परिदृश्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला रही है.

किसान आत्महत्या
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"इसका नाम ही 'इन्वेस्टमेंट सपोर्ट स्कीम' है. हम खेती के खर्चे उठाने में किसान की मदद करना चाहते हैं. ताकि कर्ज़ का बोझ कम हो और फ़सल के खराब होने पर भी नुकसान कम हो. इस साल खरीफ की पहली फ़सल के लिए किसानों में 57.89 लाख चेक बांटने के लिए सरकार ने 6 हज़ार करोड़ रुपया खर्च किया है.

आधे से ज्यादा चेक बांट दिए गए हैं लेकिन अब भी 7.79 लाख चेक बांटना बाकी है. इस साल की अगली फ़सल में 6 हज़ार करोड़ और बांटा जाएगा".

लेकिन राज्य में लम्बे समय से काम आकर रहे कृषि कार्यकर्ताओं का मानना है कि 'रयत बंधू स्कीम' की सबसे बड़ी कमी इसमें ज़मीन ठेके पर लेकर खेती करने वाले किसानों को न शामिल किया जाना है.

रयत बंधू स्कीम' की कमियां

हैदराबाद स्तिथ 'रयतू स्वराज वेदिका' नामक किसानों के मुद्दों पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठन से जुड़े किरण वास्सा बताते हैं, "हमारी रिसर्च के मुताबिक तेलंगाना में तकरीबन 75 प्रतिशत किसान किसी न किसी रूप में ज़मीन किराए पर लेकर खेती करता है. इस 75 प्रतिशत में दरअसल राज्य के लाखों किसानों का भविष्य उलझा हुआ है. इसमें से 18 प्रतिशत किसान ऐसे हैं जिनके पास कोई ज़मीन नहीं. इन्हें तेलंगाना में 'कौल रयतू' कहा जाता है. इनके हितों का क्या होगा? 'रयत बंधू स्कीम' कौल रयतू के हितों को पूरी तरह दरकिनार करती है. यह सिर्फ तात्कालिक समाधान है. इस योजना से मिली लोकप्रियता से मुख्यमंत्री अगला चुनाव तो जीत जाएंगे लेकिन किसानी का संकट लॉन्ग टर्म में दूर नहीं होगा. किसानों को अपने उपज का सही दाम चाहिए, वह सबसे ज़रूरी है".

ज़मीन पर किसानों का मानना है की रयत बंधू स्कीम से उन्हें आंशिक फायदा तो हुआ है लेकिन अगर सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य का सही सही पालन सुनिश्चित कर दे तो उन्हें इन सरकारी पैसों की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी.

किसान आत्महत्या
Priyanka Dubye/BBC
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ग्रामीण वारंगल के आत्मकुरू गांव के निवासी किसान राज रेड्डी बताते हैं की उन्हें हर साल एक एकड़ पर कपास या चावल उगाने में लगभग 6000 का खर्चा आता है और अनाज बेचने पर मंडी में 3500 रूपये तक ही मिल पाते हैं.

वह जोड़ते हैं, "हर एकड़ पर 2500 का नुकसान है. कोई भी व्यापार क्या इतने नुकसान में चल सकता है? ये सच है की मिशन कागतिया से खेतों की सिंचाई में सुविधा हुई है और रयत बंधू से मिलने वाले पैसे से भी हमारी बहुत मदद हो जाती है. लेकिन एक तो यहां वारंगल में एक एकड़ में 10 क्विंटल की जगह सिर्फ़ 3 क्विंटल कपास उगता है. यहां की ज़मीन हल्की है न इसलिए. ऊपर से फ़सल में फायदे की बजाय हजारों का नुकसान होता है. ऐसे में किसान आत्महत्या न करे तो और क्या करे? अगर सरकार हमको हमारी फ़सल का ठीक ठीक दाम मंडी में दिलवा दे, तो हमको उनको ये 4 हज़ार रुपयों की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी".

किसान आत्महत्या
Priyanka Dubey/BBC
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न्यूनतम समर्थन मूल्य के सवाल से बचते हुए सुकेन्द्र रेड्डी ने सिर्फ इतना कहा, "फ़सल में नमी रह जाये तो सरकारी दाम मिलने में मुश्किल तो होती है. हम इसको भी ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं. आज कल फ़सल कट कर सुखाने वाले ड्राई हार्वेस्टर भी आ रहे हैं. तकनीक के आगे बढ़ने के साथ ही ये समस्या भी सुलझ जाएगी"

सरकार के वादों से दूर, तेलंगाना के गांवों में आज भी किसान अपनी फ़सल के लिए अदद न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए तरस रहे हैं. मज़दूरी करके अपना घर चालने वाली शोभा जनगांव में अपने 2 बेटों और सास के साथ रहती हैं. उनके पति श्रीनिवास के पास कोई ज़मीन नहीं थी और वो ज़मीन ठेके पर लेकर खेती करते थे.

किसानी के लिए लिया क़र्ज न चुका पाने की वजह से उन्होंने 2014 में पेस्टिसाइड पी कर ख़ुदकुशी कर ली. पिता की मौत के बाद पढ़ाई छोड़ कर मेकेनिक का काम सीखने को मजबूर शोभा का 21 वर्षीय बेटा गणेश केसीआर की इन जनहित योजनाओं से ख़ुद को बेदख़ल महसूस करते हैं.

किसान आत्महत्या
Priyanka Dubey/BBC
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अपने पिता की तस्वीर हाथ में लिए वह कहते हैं , "मेरे पिता के पास कोई ज़मीन नहीं थी. सरकार की नई योजनाओं में मेरे पिता और हमारे परिवार जैसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं है. रयत बंधू स्कीम से और लोगों को फ़ायदा हुआ होगा. पर मेरे परिवार को और मेरे जैसे कौली किसानों को तो सरकार से बिना किसी मदद के बेसहारा छोढ़ दिया"

वहीं जनगांव के हरीगोपाला गांव के रहने वाले किसान सुखमारी सुमैया को लगता है कि रयत बंधू स्कीम से सिर्फ बड़े किसानों को फायदा है.

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Priyanka Dubey/BBC
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वह कहते हैं, "बीमा योजना तो बहुत अच्छी है. लेकिन 'रयत बंधू स्कीम' से सिर्फ बड़े किसानों को फायदा है. मेरे पास 4 एकड़ खेत है और मुझे इस फसल का 16 हज़ार रुपया मिला भी पर मेरे खर्चे बहुत हैं. आज कल लेबर, पेस्टिसाइड, खाद, बीज सब बहुत महंगा है. फिर मंडी में हमें ठीक दाम भी नहीं मिलाता. इसलिए मुझे लगाता है कि 25 एकड़ से ऊपर ज़मीन वाले बड़े किसनों के लिए रयत बंधू का पसिया कम कर हम छोटे किसानों का पैसा बढ़ाया जाना चाहिए"

रयत बंधू के अलवा तेलंगाना में किसानों के लिए शुरू करवाई गयी दूसरी बड़ी योजना 'रयतू बीमा योजना' के नाम से शुरू हुई 5 लाख रुपयों की बीमा योजना है.

किसान आत्महत्या
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इस योजना के बारे में बताते हुए सुकेन्द्र कहते हैं, "हम किसान को भरोसा देना चाहते हैं कि अगर वो नहीं भी रहा तो उसका परिवार सड़क पर नहीं आएगा. इसलिए भारतीय जीवन बीमा निगम (एल.आई.सी) के साथ करार करके हमने 18 से 60 वर्ष के बीच के तेलंगाना के हर किसान को 5 लाख रूपये का बीमा करवाया है. इस बीमा के लिए 2271 रूपये का सालाना प्रीमियम सरकार हर किसान की तरफ से एल.आई.सी को भरेगी. पहली किश्त में 630 करोड़ का प्रिमियम भरा जा चुका है. इसमें दुर्घटना और स्वाभाविक हर तरह की मौत कवर की जाती है"

किसान आत्महत्या
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रिपोर्टिंग के दौरान मैंने सिद्धिपेठ के रायवराम गांव के पंचायत ऑफिस से 'रयतू बीमा योजना' के बांड सर्टिफिकेटों का वितरण होते हुए देखा. सिद्धिपेठ के साथ-साथ जनगांव के अकराजबलि और हरीगोपाला गांव से लेकर ग्रामीण वारंगल के आत्मकूरु गांव तक तीन जिलों में किसान 'रयतू बीमा योजना' से खुश नज़र आए. अकराजबलि गांव के किसान प्रसाद ने बताया, "मेरे पास 2.5 एकड़ खेत है. इस बीमा योजना से तो हमको फायदा है लेकिन मिशन कागतिया से हमारे गांव को फायदा नहीं है. क्योंकि कोई भी तालाब हमारे खेतों के पास नहीं".

लेकिन राज्य में लम्बे समय से किसानों के अधिकारों के लिए काम कर रहे स्वतंत्र सामाजिक कार्यकर्ता नैनला गोवर्धन का मानना है कि तेलंगाना सरकार यह सारी योजनाएँ अगले साल राज्य में होने वाले चुनवों के मद्देनज़र शुरू कर रही है. एक साक्षात्कार के दौरान वह कहते हैं, "यह सब चुनाव के एक साल पहले ही क्यों शुरू हो रहा है ? केसीआर की सरकार राज्य का ख़ज़ाना ख़ाली करके अगले चुनावों की तैयारी कर रही है. कर्ज़ा माफ़ी की जो घोषणाएँ की गयीं..वह तो आज तक पूरी हुई नहीं, वोटों के लिए क़ानूनी तौर पर भ्रष्टाचार कर ऐसी योजनाएँ लाकर लोगों का ध्यान बटांया जा रहा है. जबकि असल में किसान आज भी अपनी फ़सल के उचित दामों जैसी मूलभूत अधिकारों के लिए तरसना पड़ रहा है"

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English summary
Telangana Claims of changes in the condition of farmers
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