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तेजस्वी यादव: क्या बिहार में राजद की नई पीढ़ी भी सत्ता से दूर रह जाएगी, जानिए?

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नई दिल्ली। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव होने में 5-6 से महीने ही बाकी हैं, लेकिन सत्तासीन जदयू-बीजेपी गठबंधन को सत्ता से उखाड़ फेंकने की रणनीति बनाने के बजाय विपक्ष में बैठी महागठबंधन का नेतृत्व संभाल रहे पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के छोटे पुत्र तेजस्वी यादव अपना सिर पकड़कर बैठे हैं।

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वजह हालिया घटनाक्रम है, जब सत्ता का सेमीफाइनल मानी जा रही एमएमलसी चुनाव में दो-दो हाथ के बजाय तेजस्वी यादव समेत पूरे महागठबंधन को दोनों हाथ पीछे टिकाने पडउधऱ, पार्टी के कद्दावार नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी उपाध्यक्ष पद से इसलिए इस्तीफा दे दिया, क्योंकि उनके इच्छा के विपरीति ऐसे नेताओं को पार्टी में शामिल किया जा रहा था, जिन्हें वो पार्टी में देखना चाहते थे।

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तेजस्वी यादव में लालू यादव की करिश्माई छवि और पार्टी को एकजुट रखने की कलात्मकता की कमी ही कहेंगे कि ऐन चुनाव से पूर्व 5 आरजेडी नेता पार्टी छोड़कर जदयू में शामिल हो गए। इसमें पार्टी की फजीहत जो हुई सो हुई, विधान परिषद में पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की सदन नेता की कुर्सी भी डगमगाने लग गई है। सत्ता के सेमीफाइनल से पार्टी की दुर्गति का आलम ही कहेंगे कि नेतृत्व से परेशान होकर पार्टी के सबसे कद्दावर नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी पार्टी उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

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रघुवंश प्रसाद सिंह के पार्टी पद से इस्तीफे से तेजस्वी को लगा दोहरा झटकारघुवंश प्रसाद सिंह के पार्टी पद से इस्तीफे से तेजस्वी को लगा दोहरा झटका

गौरतलब है 2019 लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की करारी हार के बाद से ही तेजस्वी यादव की नेतृत्व क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लग गया था। इस प्रश्नचिन्ह की रेखा और मोटी तब होती गई जब चुनाव में हार के बाद तेजस्वी यादव बिहार से तीन महीने के लिए गायब हो गए। कमोबेश तेजस्वी यादव अपनी आदतों और हरकतों से पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की याद दिलाते हैं, जो चुनाव काल में जमीन पर और चुनाव संपन्न होते हुए फुर्र हो जाया करते हैं।

बिहार में चालू है चुनावी दांव-पेंच का खेल, बगैर लालू पटरी से धीरे-धीरे उतर रही महागठबंधन की रेलबिहार में चालू है चुनावी दांव-पेंच का खेल, बगैर लालू पटरी से धीरे-धीरे उतर रही महागठबंधन की रेल

महागठबंधन में विधानसभा चुनाव की तैयारियों के नाम पर कुछ नहीं हो रहा

महागठबंधन में विधानसभा चुनाव की तैयारियों के नाम पर कुछ नहीं हो रहा

फिलहाल, बिहार विधानसभा चुनाव 2020 की चुनाव की तैयारियों के नाम पर महागठबंधन में कुछ नहीं हो रहा है, बल्कि कुछ हो रहा है, तो वह खेमेबाजी। इनमें पूर्व बिहार सीएम जीतन राम मांझी और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा प्रमुख हैं, जिन्हें एनडीए के खिलाफ खड़े दिखने के लिए महागठबंधन में शरण लेनी पड़ी। वर्तमान में महागठबंधन के नेता को लेकर विभिन्न दलों के बीच नूराकुश्ती हो रही है, जिससे गठबंधन में बनी दरार को आसानी से देखा जा सकता है।

महागठबंधन में अब तेजस्वी यादव के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं

महागठबंधन में अब तेजस्वी यादव के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं

पूर्व मुख्यमंत्री और हम चीफ जीतन राम मांझी और रालोसपा चीफ कुशवाहा के बीच ब्रेकअप ने दरार और बड़ा कर दिया, लेकिन विधान परिषद चुनाव से पूर्व 5 राजद एमएलसी नेताओं के टूटकर जदयू में शामिल होने की खबर ने दरार को खाई में तब्दील कर दिया है। यही कारण है कि अब महागठबंधन में शामिल सभी दल के नेता अब खुलकर तेजस्वी यादव के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाने लगे हैं।

कांग्रेस ने भी तेजस्वी के नेतृत्व में चुनाव में उतरने के जोखिम से इनकार किया

कांग्रेस ने भी तेजस्वी के नेतृत्व में चुनाव में उतरने के जोखिम से इनकार किया

यहां तक कांग्रेस ने भी तेजस्वी के नेतृत्व में चुनाव में उतरने के जोखिम से इनकार कर चुकी है, जिनको साथ लेकर तेजस्वी यादव बिहार विधानसभा 2020 की वैतरणी पार करने का सपना देख रहे हैं। हाल ही में पिता लालू यादव से रांची जेल में मुलाकात के बाद तेजस्वी यादव ने मीडिया को दिए एक बयान में कांग्रेस को छोड़कर किसी भी अन्य दल के साथ गठबंधन को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई थी।

बिहार 2020 में कांग्रेस ने 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का शिगूफा छोड़ा

बिहार 2020 में कांग्रेस ने 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का शिगूफा छोड़ा

उधर, मौके की नजाकत को समझते हुए कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का शिगूफा छोड़ दिया है। इसके पीछे कांग्रेस का तर्क है कि पिछले चुनाव में महागठबंधन में शामिल जदयू अलग हो चुकी है और पार्टी ने पिछले चुनाव में 40 सीटों पर लड़कर 27 सीटों पर विजयी रही थी। हालांकि सच्चाई यह है कि महागठबंधन का चेहरा रहे सुशासन बाबू नीतीश कुमार को मिले वोटों से कांग्रेस को बिहार में पुनर्जीवन मिला था और आगामी चुनाव में यह कांग्रेस की यह गलतफहमी भी दूर हो जाएगी।

बिहार में लालू यादव के जेल जाने के बाद यादव वोटर्स का अस्तित्व बिखरा

बिहार में लालू यादव के जेल जाने के बाद यादव वोटर्स का अस्तित्व बिखरा

निः संदेह बिहार में लालू यादव के जेल जाने के बाद यादव वोटर अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा है और एक नेता के रूप में तेजस्वी यादव पिता की जगह भरने में अभी तक नाकाम साबित हुए हैं। लालू यादव को बिहार में यादव वंश का संस्थापक माना जाता है और बिहार में यादव और मुस्लिम वोटरों के समीकरण लालू यादव बिहार की सत्ता में सत्तासीन हुए, लेकिन यादव राजघराने के राजकुमार तेजस्वी यादव के नेतृत्व में यादव और मुस्लिम दोनों वोटर नाराज चल रहे हैं।

राजद के कोर वोटर ही नहीं, विधायक भी दूसरे दल में रूख करने लगे हैं

राजद के कोर वोटर ही नहीं, विधायक भी दूसरे दल में रूख करने लगे हैं

यही कारण है कि राष्ट्रीय जनता दल के कोर वोटर ही नहीं, अब राजद के विधायक भी भाजपा और जदयू की ओर रूख करने लगे हैं। 5 आरजेडी एमएलसी का जदयू में शामिल होना, इसका बड़ा उदाहरण है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद के वफादार मतदाता जैसे यादव और मुस्लिम वोटरों का मोहभंग पहले ही हो चुका है। बिहार में तेजस्वी यादव की हालत कमोबेश उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव जैसी हो गई है, जहां समाजवादी पार्टी भी ख़राब दौर से गुजर रहीं है।

राजद ने 2005 के बाद से हर चुनाव में अपना वोट शेयर खोया है

राजद ने 2005 के बाद से हर चुनाव में अपना वोट शेयर खोया है

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में 1.7 फीसदी की मामूली वृद्धि को छोड़कर राजद ने 2005 के बाद से हर चुनाव में अपना वोट शेयर खोया है। पार्टी के सबसे वफादार मतदाता यादव भी विकल्प तलाश कर रहे हैं। 2019 का सीएसडीएस-लोकनीति का सर्वेक्षण दर्शाता है कि 2014 के 64 फीसदी के मुकाबले 2019 में केवल 55 फीसदी यादवों ने राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन को वोट दिया था।

लोकसभा चुनाव में हार के बाद तीन महीने तक बिहार से लापता रहे तेजस्वी

लोकसभा चुनाव में हार के बाद तीन महीने तक बिहार से लापता रहे तेजस्वी

लोकसभा चुनाव में राजद की पराजय के बाद तेजस्वी का गायब होना दर्शाता है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी की तरह एक राजनीतिक परिवार की विरासत के अलावा उनके पास कुछ नहीं है, जिससे जनता और राजद का कोर वोटर पार्टी से जुड़ाव महसूस करे। लोकसभा चुनाव में हार के बाद तीन महीने तक लापता रहना बताता है कि तेजस्वी के पास पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए कुछ नहीं है। यही वजह था कि महागठबंधन वजूद में आया और दलितों को जोड़ने की कवायद भी धरी की धरी रह गई।

तेजस्वी यादव को दो सालों में दो बार राजनीतिक पटखनी का मौका मिला

तेजस्वी यादव को दो सालों में दो बार राजनीतिक पटखनी का मौका मिला

तेजस्वी यादव की अक्षमता ही कहेंगे कि उन्हें पिछले दो सालों में दो बार नीतीश कुमार के खिलाफ राजनीतिक पटखनी देने का मौका मिला। एक बार तब जब मुजफ्फर नगर में इंसेफ्लाइटिस से 100 से अधिक बच्चों की मौत हुई थी, लेकिन तब तेजस्वी यादव लापता था और एक बार भी बिहार की ओर रूख नहीं किया।

प्रवासियों की घऱवापसी और कोटा से छात्रों की वापसी को लेकर घिरे नीतीश

प्रवासियों की घऱवापसी और कोटा से छात्रों की वापसी को लेकर घिरे नीतीश

दूसरा मौका कोरोना काल में मिला था जब प्रवासियों की घऱवापसी और कोटा से छात्रों की वापसी को लेकर नीतीश की नीतियों को लेकर खूब फजीहत हुई थी। तेजस्वी तब भी परिदृश्य से गायब थे, जिसका उनका राजनीतिक फायदा मिल सकता है। कमोबेश यही सिलसिला बिहार में बाढ़ में दिखा, जहां पप्पू यादव ने लोगों के बीच पहुंच कर अपना राजनीतिक कद बढ़ाया।

तेजस्वी यादव को लेकर लोग पहले ही आशंकित थे

तेजस्वी यादव को लेकर लोग पहले ही आशंकित थे

हालांकि तेजस्वी यादव को लेकर लोग पहले ही आशंकित थे, जिनमें एक गंभीर नेता लायक परिपक्वता की कमी है, जो कठिन परिस्थितियों से निपटने के लिए तैयार नहीं दिखते हैं। राजद जो लगातार अपने कोर वोटरों का आधार खो रही है, उसे एक कुशल नेतृत्व की जरूरत है ताकि राजनीतिक अवसरों में कैश किया जा सके, लेकिन तेजस्वी यादव अभी इसके लिए तैयार नहीं है या शायद उनमें वो क्षमता ही नहीं है।

हम चीफ जीतन राम मांझी राजद नेता तेजस्वी को अनुभवहीन बता चुके हैं

हम चीफ जीतन राम मांझी राजद नेता तेजस्वी को अनुभवहीन बता चुके हैं

महागठबंधन में शामिल हम चीफ जीतन राम मांझी राजद नेता तेजस्वी को अनुभवहीन बता चुके हैं। कांग्रेस के विरेंद्र सिंह राठौड़ भी तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए उन्हें गठबंधन का नेता नहीं मानते है। यही कारण है कि राठौड़ ने हाल में कहा है कि अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाएगा, यह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही तय करेंगे।

कई दल और नेता तो महागठबंधन से अलग होने तक की बात कर चुके हैं

कई दल और नेता तो महागठबंधन से अलग होने तक की बात कर चुके हैं

यही नहीं, कई कांग्रेसी नेता तो महागठबंधन से अलग होने तक की बात कर चुके हैं। हालांकि राजद आगामी किसी भी चुनाव में तेजस्वी के नेतृत्व में ही मैदान में उतरने की घोषणा कर चुकी है। यही कारण है कि महज 5 महीने में चुनाव होने हैं और महागठबंधन द्वारा अब तक अपना नेता घोषित नहीं किए जाने पर विरोधी दल जदयू और बीजेपी जमकर कटाक्ष कर रहे हैं।

Comments
English summary
Lalu Yadav's charismatic image in Tejashwi Yadav and lack of artistry to keep the party united will say that 5 RJD leaders left the party and joined the JDU before the election. In this, due to the frustration of the party, the chair of the House Leader of former Chief Minister Rabri Devi has started to waver. Alam of the party's plight from the semi-finals of power will say that troubled by the leadership, the party's strongest leader Raghuvansh Prasad Singh has also resigned from the post of party vice-president.
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