‘बिहार में शिक्षकों को जाति के आधार पर मिलेगा वेतन’, क्या है सच?
सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है कि बिहार में अब शिक्षकों को जाति के आधार पर वेतन बांटा जाएगा.
इसे मोदी सरकार के सामान्य वर्ग के ग़रीब लोगों को 10 फ़ीसदी आरक्षण देने के फ़ैसले से जोड़कर भी शेयर किया जा रहा है.
कुछ लोगों ने लिखा है, "एक ही विद्यालय में काम करने वाले दो अलग जाति के शिक्षकों में से एक जाति विशेष के टीचर को वेतन देने में प्राथमिकता. भले ही अल्पसंख्यक व पिछड़ी जाति के शिक्षकों को तीन माह तक वेतन न मिले."
जबकि कुछ लोगों ने फ़ेसबुक पर पोस्ट किया है कि "मोदी सरकार का फ़ैसला, जाति के आधार पर करें वेतन भुगतान. एससी/एसटी कर्मचारियों को पहले वेतन दे बिहार सरकार."
इस ख़बर की पुष्टि के लिए कुछ लोगों ने बिहार सरकार के आदेश की एक धुंधली कॉपी भी सोशल मीडिया पर शेयर की है.
वहीं कुछ लोगों ने बिहार की स्थानीय वेबसाइटों में छपी ख़बरों का लिंक भी सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है.
इन्हीं में से एक वेबसाइट ने दावा किया है कि 'नई नीति के आधार पर ही शिक्षकों को अक्तूबर और नवंबर का वेतन दिया गया है और कई जातियों के शिक्षकों का वेतन अभी भी अटका हुआ है'. वेबसाइट के अनुसार 6 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने इस ख़बर को सोशल मीडिया पर शेयर किया है.
लेकिन ये सभी दावे ग़लत हैं. अपनी पड़ताल में बीबीसी ने पाया कि बिहार सरकार ने ऐसी कोई 'नई नीति' नहीं बनाई है जिसके तहत शिक्षकों को जाति के आधार पर वेतन दिया जाए.
कहाँ से आई जाति आधारित वेतन की बात?
बिहार की शिक्षा परियोजना परिषद् के राज्य परियोजना निदेशक संजय सिंह ने बीबीसी को बताया कि बिहार सरकार ने ऐसी कोई नीति नहीं बनाई है जिसके तहत शिक्षकों को उनकी जाति के आधार पर वेतन दिया जाएगा.
उन्होंने कहा, "3 जनवरी को हमने प्रारंभिक स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों का दो महीने का बकाया वेतन उपलब्ध कराया था. वेतन की राशि हमेशा की तरह हमने दो मदों (जेनरल और एससी) में भेजी थी. लेकिन राज्य के ज़िलाधिकारियों को लिखे गए इस आधिकारिक पत्र को लोगों ने ग़लत समझा."
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संजय सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार शिक्षा से जुड़ी केंद्र प्रायोजित योजनाओं जैसे सर्व शिक्षा अभियान के लिए जो पैसा राज्य सरकार को भेजती है, उसे दो मदों (जेनरल और एससी) में ही भेजा जाता है.
संजय सिंह ने कहा कि सरकार फ़ंड में इस तरह का बंटवारा लेखांकन और ऑडिट के लिए करती है.
बिहार के राज्य प्राथमिक शिक्षा संघ के कार्यकारी अध्यक्ष मिथिलेश शर्मा ने बीबीसी को बताया कि वेतन में अनियमितता को लेकर प्राथमिक शिक्षकों की काफ़ी शिकायतें हैं. लेकिन जिस तरह से अक्तूबर और नवंबर का वेतन जनवरी में जारी किया गया और आदेश में दो मदों का ज़िक्र किया गया, इससे शिक्षकों में ये चर्चा ज़रूर उठी थी कि क्या अब सरकार जाति के आधार पर वेतन देगी.
संजय सिंह ने 3 जनवरी को जो आदेश जारी किया था, उसके आधार पर राष्ट्रीय अख़बार दैनिक भास्कर में भी 4 जनवरी को एक ख़बर छपी थी जिसका शीर्षक है- "जाति के आधार पर अब शिक्षकों को मिलेगा वेतन, विरोध में जलाएंगे आदेश की प्रतियां". इस ख़बर को भी सोशल मीडिया और व्हॉट्सऐप पर काफ़ी लोगों ने शेयर किया है.
संजय सिंह ने बताया कि उन्होंने 5 जनवरी को एक और आदेश जारी कर, 3 जनवरी के आदेश को स्पष्ट करने की कोशिश की थी.
इस आदेश में उन्होंने लिखा है कि 'ज़िला कार्यक्रम पदाधिकारी भेजी गई समेकित राशि से शिक्षकों का वेतन भुगतान करें'.
इसलिए 'बिहार में जाति के आधार पर शिक्षकों को वेतन बांटने' की बात पूरी तरह फ़र्ज़ी है.
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सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है कि बिहार में अब शिक्षकों को जाति के आधार पर वेतन बांटा जाएगा.
इसे मोदी सरकार के सामान्य वर्ग के ग़रीब लोगों को 10 फ़ीसदी आरक्षण देने के फ़ैसले से जोड़कर भी शेयर किया जा रहा है.
कुछ लोगों ने लिखा है, "एक ही विद्यालय में काम करने वाले दो अलग जाति के शिक्षकों में से एक जाति विशेष के टीचर को वेतन देने में प्राथमिकता. भले ही अल्पसंख्यक व पिछड़ी जाति के शिक्षकों को तीन माह तक वेतन न मिले."
जबकि कुछ लोगों ने फ़ेसबुक पर पोस्ट किया है कि "मोदी सरकार का फ़ैसला, जाति के आधार पर करें वेतन भुगतान. एससी/एसटी कर्मचारियों को पहले वेतन दे बिहार सरकार."
इस ख़बर की पुष्टि के लिए कुछ लोगों ने बिहार सरकार के आदेश की एक धुंधली कॉपी भी सोशल मीडिया पर शेयर की है.
वहीं कुछ लोगों ने बिहार की स्थानीय वेबसाइटों में छपी ख़बरों का लिंक भी सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है.
इन्हीं में से एक वेबसाइट ने दावा किया है कि 'नई नीति के आधार पर ही शिक्षकों को अक्तूबर और नवंबर का वेतन दिया गया है और कई जातियों के शिक्षकों का वेतन अभी भी अटका हुआ है'. वेबसाइट के अनुसार 6 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने इस ख़बर को सोशल मीडिया पर शेयर किया है.
लेकिन ये सभी दावे ग़लत हैं. अपनी पड़ताल में बीबीसी ने पाया कि बिहार सरकार ने ऐसी कोई 'नई नीति' नहीं बनाई है जिसके तहत शिक्षकों को जाति के आधार पर वेतन दिया जाए.
कहाँ से आई जाति आधारित वेतन की बात?
बिहार की शिक्षा परियोजना परिषद् के राज्य परियोजना निदेशक संजय सिंह ने बीबीसी को बताया कि बिहार सरकार ने ऐसी कोई नीति नहीं बनाई है जिसके तहत शिक्षकों को उनकी जाति के आधार पर वेतन दिया जाएगा.
उन्होंने कहा, "3 जनवरी को हमने प्रारंभिक स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों का दो महीने का बकाया वेतन उपलब्ध कराया था. वेतन की राशि हमेशा की तरह हमने दो मदों (जेनरल और एससी) में भेजी थी. लेकिन राज्य के ज़िलाधिकारियों को लिखे गए इस आधिकारिक पत्र को लोगों ने ग़लत समझा."
- दम तोड़ रहे हैं बिहार के प्राइमरी स्कूल: ग्राउंड रिपोर्ट
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संजय सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार शिक्षा से जुड़ी केंद्र प्रायोजित योजनाओं जैसे सर्व शिक्षा अभियान के लिए जो पैसा राज्य सरकार को भेजती है, उसे दो मदों (जेनरल और एससी) में ही भेजा जाता है.
संजय सिंह ने कहा कि सरकार फ़ंड में इस तरह का बंटवारा लेखांकन और ऑडिट के लिए करती है.
बिहार के राज्य प्राथमिक शिक्षा संघ के कार्यकारी अध्यक्ष मिथिलेश शर्मा ने बीबीसी को बताया कि वेतन में अनियमितता को लेकर प्राथमिक शिक्षकों की काफ़ी शिकायतें हैं. लेकिन जिस तरह से अक्तूबर और नवंबर का वेतन जनवरी में जारी किया गया और आदेश में दो मदों का ज़िक्र किया गया, इससे शिक्षकों में ये चर्चा ज़रूर उठी थी कि क्या अब सरकार जाति के आधार पर वेतन देगी.
संजय सिंह ने 3 जनवरी को जो आदेश जारी किया था, उसके आधार पर राष्ट्रीय अख़बार दैनिक भास्कर में भी 4 जनवरी को एक ख़बर छपी थी जिसका शीर्षक है- "जाति के आधार पर अब शिक्षकों को मिलेगा वेतन, विरोध में जलाएंगे आदेश की प्रतियां". इस ख़बर को भी सोशल मीडिया और व्हॉट्सऐप पर काफ़ी लोगों ने शेयर किया है.
संजय सिंह ने बताया कि उन्होंने 5 जनवरी को एक और आदेश जारी कर, 3 जनवरी के आदेश को स्पष्ट करने की कोशिश की थी.
इस आदेश में उन्होंने लिखा है कि 'ज़िला कार्यक्रम पदाधिकारी भेजी गई समेकित राशि से शिक्षकों का वेतन भुगतान करें'.
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