CAA के समर्थन में बोलीं बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन, कहा- मुस्लिम विचारकों को भी शामिल किया जाना चाहिए
कोझीकोड। बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि ये कानून बेहद अच्छा और उदार है लेकिन इस कानून में पड़ोसी देशों के स्वतंत्र मुस्लिम विचारकों, नारीवादियों और धर्मनिरपेक्ष लोगों के लिए छूट दी जानी चाहिए। तस्लीमा ने ये बात शुक्रवार को केरल में आयोजित साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन 'निर्वासन: लेखक की यात्रा' सत्र में कही। उन्होंने 1994 में बांग्लादेश छोड़ दिया था।
जान से मारने की धमकी दी जा रही थी
तब तस्लीमा को उनके कथित इस्लाम विरोध विचारों के चलते कट्टरपंथी संगठनों द्वारा जान से मारने की धमकी दी जा रही थी। उन्होंने कहा कि सीएए के तहत उनके जैसे लोगों को नागरिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने ये भी कहा, 'ये सुनने में अच्छा लगता है कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता मिलेगी। ये बहुत अच्छा और उदार विचार है।'
'भारत में रहने का अधिकार मिलना चाहिए'
निर्वासित जीवन जी रहीं तस्लीमा ने कहा, 'मुस्लिम समुदाय में मुझ जैसे लोग, विचारक और नास्तिक हैं, जिनका पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न किया जाता है। उन्हें भारत में रहने का अधिकार मिलना चाहिए।' इस दौरान उन्होंने एक मुस्लिम नास्तिक ब्लॉगर का भी उदाहरण दिया। जिनकी हत्या कुछ साल पहले बांग्लादेश में संदिग्ध इस्लामिक आतंकियों ने कर दी थी। तस्लीमा ने कहा, 'इनमें से कई ब्लॉगर अपनी जान बचाने के लिए यूरोप और अमेरिका चले गए, क्यों नहीं वे भारत आएं? भारत को आज मुस्लिम समुदाय से भी स्वतंत्र विचारकों, धर्मनिरपेक्षवादियों और नारिवादियों की जरूरत है।'
2004 से भारत में रह रही हैं तस्लीमा
उन्होंने सीएए के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों को अद्भुत करार देते हुए इसमें शामिल कट्टरपंथियों की निंदा की। तस्लीमा ने कहा कि कट्टरपंथ चाहे बहुसंख्यक समुदाय में हो या अल्पसंख्यक समुदाय में दोनों ही खराब हैं। इसकी निंदा की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में आज भी संघर्ष है लेकिन यह मुस्लिम और हिंदू धर्म के बीच नहीं है बल्कि धार्मिक कट्टरता और धर्मनिरपेक्षता के बीच है। गौरतलब है कि तस्लीमा साल 2004 से भारत में रह रही हैं।
क्या है CAA?
बता दें सीएए यानी नागरिकता संशोधन कानून बीते साल दिसंबर माह में आया था। इससे पहले इसके बिल को संसद के दोनों सदनों में बहुमत से मंजूरी भी मिली थी। इस कानून के तहत तीन देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से उत्पीड़न का शिकार छह गैर मुस्लिम समुदाय (हिंदू, पारसी, सिख, जैन, बौद्ध और ईसाई) के लोग छह साल भारत में रहने के बाद यहां की नागरिकता हासिल कर सकते हैं।
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