रसगुल्ला खाने का सही तरीका जानते हैं आप?
पश्चिम बंगाल ने ओडिशा से जीती रसगुल्ले की 'मीठी लड़ाई'. यहां जानिए क्या है ये पूरा मामला
रसगुल्ला किसका?
रसगुल्ले की शुरुआत कहां से हुई?
इन सवालों को लेकर बीते कुछ वक्त से ओडिशा से चल रही 'मीठी लड़ाई' पश्चिम बंगाल ने जीत ली है.
वजह है पश्चिम बंगाल को जियोग्राफिकल इंडिकेशन यानी जीआई टैग मिलना. इस टैग के मुताबिक, रसगुल्ले की शुरुआत पश्चिम बंगाल में हुई थी.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्विटर पर लिखा, ''हम सभी के लिए ये मीठी खबर है. रसगुल्ले का जीआई स्टेटस बंगाल को मिलने पर हमें खुशी और गर्व है.''
क्या है ये जीआई टैग
जियोग्राफिकल इंडिकेशन इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी पर फ़ैसला करने का काम करती है. कोई प्रोडक्ट्स किस इलाके, समुदाय या समाज का है, इसके तहत फ़ैसला किया जाता है.
मंगलवार शाम इस ख़बर के आते ही बंगालियों के बीच रसगुल्ले के 'गुल' फिर खिल गए हैं. कोलकाता में रसगुल्ले की मशहूर दुकान केसी दास के मालिक और रसगुल्ले के अविष्कारक माने जाने वाले नोबीन चंद्र के वारिस धीमान दास ने इस मौके पर खुशी का इज़हार किया.
धीमान दास ने कहा, ''अगले साल रसगुल्ले का 150वां साल मनाया जाएगा. इससे ठीक पहले रसगुल्ले को बंगाल से जुड़े होने की मान्यता मिल गई है. बहुत खुशी की बात है. बंगाली रसगुल्ला नाम से हर जगह जो मिठाई बनाई और बेची जाती है, वो अब बंद होगा.''
कब से है विवाद?
साल 2015 में ओडिशा की तरह से ये दावा पेश किया गया था कि जग्गननाथ देव मंदिर में साल में एक बार रसगुल्ला चढ़ाया जाता है. इसके समर्थन में ओडिशा की तरफ से कई दावे पेश किए गए थे.
ओडिशा सरकार ने तब राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 5 पर कटक और भुवनेश्वर के बीचोंबीच स्थित पाहाल में मिलने वाले मशहूर रसगुल्ले को जियोग्राफिकल इंडिकेशन यानी 'जी आई' मान्यता दिलाने के लिए कोशिशें शुरू की थीं.
वहीं पश्चिम बंगाल सरकार का कहना था कि ओडिशा का रसगुल्ला बंगाल के रसगुल्ले से काफी अलग है.
पश्चिम बंगाल के रसगुल्ले की ख़ासियत धीमान दास बताते हैं, ''बंगाली रसगुल्ले में सिर्फ छेना का इस्तेमाल किया जाता है. वो भी गाय के दूध से बना छेना. बंगाली रसगुल्ले में भैंस के दूध से बना छेना इस्तेमाल नहीं होता है. इसी वजह से बंगाली रसगुल्ला बेहद मुलायम होता है. लेकिन जगह-जगह पर बंगाली रसगुल्ले के नाम से जो बनाया और बेचा जाता है, उसमें सूजी या मैदा मिलाया जाता है. अब इस फैसले के बाद लोगों को पता चलेगा कि बंगाल का रसगुल्ला कैसे होता है.''
रसगुल्ला खाने का सही तरीका?
कोलकाता में रसगुल्ले की एक और मशहूर दुकान है चितरंजन मिष्ठान भंडार. इस दुकान के मालिक निताई चंद्र घोष ने कहा, ''रसगुल्ला बनने की प्रक्रिया तब शुरू होती है, जब गाय को खिलाना शुरू किया जाता है. हम गाय को क्या खिला रहे हैं, उससे दूध की गुणवत्ता निर्भर करती है. दूध की जांच कैसी की जाती है, इससे तय होता है कि छेना कैसा मिलेगा. बाकी बचता है चीना का हल्का सा रस. ये सारी चीजें जब ढंग से मिलती हैं, तब जाकर एक रसगुल्ला बनता है. रसगुल्ला तैयार होने में वक्त चाहिए होता है.''
निताई घोष सुझाव देते हैं, ''रसगुल्ले को खाने के लिए चमच्च से काटे नहीं, हल्के से पकड़िए रसगुल्ले को. एक बार में पूरा रसगुल्ला नहीं खाया जाता. छोटे-छोटे टुकड़े करके खाइए और आख़िर में रस की एक चुस्की लगाइए. रसगुल्ला खाने के बाद कभी पानी न पीजिए.''
घोष का परिवार 111 साल से रसगुल्ला बनाने का काम कर रहा है.
विशेषज्ञों का क्या कहना था?
इस विषय पर शोध करने वाले कई विशेषज्ञों का कहना था कि 'नीलाद्रि वीजे' के दिन भगवान जगन्नाथ के देवी लक्ष्मी को मनाने के लिए रसगुल्ला पेश करने की परंपरा कम से कम तीन सौ साल पुरानी है. 'नीलाद्रि वीजे' यानी रथ यात्रा के बाद जिस दिन भगवान जगन्नाथ वापस मंदिर में आते है.
मान्यता है कि जब भगवान जगन्नाथ रथयात्रा से वापस आते हैं तो महालक्ष्मी उनसे नाराज़ रहती हैं और महल का दरवाज़ा नहीं खोलतीं क्योंकि जगन्नाथ उन्हें अपने साथ नहीं ले गए होते.
तब रूठी देवी को मनाने के लिए भगवान जगन्नाथ उन्हें रसगुल्ला पेश करते हैं.
जगन्नाथ संस्कृति के जाने माने विशेषज्ञ सूर्य नारायण रथ शर्मा ने दावा किया था कि यह परंपरा एक हज़ार साल पुरानी है.
ऐसे में जब आप अगली बार जब आप रसगुल्ला खा रहे हों तो इस 'मीठी जंग' को याद कर लीजिएगा. शायद जुबां का स्वाद मीठा हो जाए या फिर कम मीठा.
रसगुल्ले को लेकर भिड़े बंगाल और ओडिशा