ज्ञानवापी विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका, पूजा स्थल कानून की संवैधानिक वैधता को दी गई चुनौती
नई दिल्ली, 25 मई: ज्ञानवापी विवाद की वजह से इन दिनों पूजा स्थल कानून 1991 भी चर्चा में है। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की ओर से लाए गए इस कानून का विरोध बहुत से धार्मिक नेता कर रहे हैं। इस बीच सुप्रीम कोर्ट में स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने एक नई याचिका दायर की है। जिसमें उन्होंने कहा कि ये कानून धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन के सिद्धांतों का खुला उल्लंघन है। ऐसे में इस पर फिर से विचार किया जाए।
Recommended Video
इस कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही दो याचिकाएं लंबित हैं। इसमें पहली याचिका लखनऊ के विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ और दूसरी याचिका बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की है। अश्विनी उपाध्याय वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब भी मांग चुका है। याचिकाकर्ताओं के मुताबिक ये कानून न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है, जो संविधान की बुनियादी विशेषता है। अब स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने भी इसी तरह का मुद्दा उठाकर पूजा स्थल कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
पूजा
स्थल
अधिनियम
में
क्या
है?
पूजा
स्थल
(विशेष
प्रावधान)
अधिनियम
1991
के
मुताबिक
15
अगस्त
1947
से
पहले
जो
धार्मिक
स्थल
जिस
भी
धर्म
का
था
वो
उसी
का
रहेगा,
उसे
बदला
नहीं
जाएगा
और
अगर
कोई
इस
कानून
का
उल्लंघन
करता
है
तो
उसे
1-3
साल
तक
की
जेल
और
जुर्माना
हो
सकता
है।
स्वामी
जितेंद्रानंद
ने
पहले
की
थी
ये
मांग
ज्ञानवापी
मस्जिद
में
सर्वे
के
बाद
हिंदू
पक्ष
ने
वहां
पर
शिवलिंग
होने
का
दावा
किया
था।
उस
दौरान
स्वामी
जितेंद्रानंद
सरस्वती
ने
मांग
की
थी
कि
परिसर
में
गैर
हिंदुओं
का
प्रवेश
वर्जित
किया
जाए।
उन्होंने
कहा
था
कि
जिस
तरह
से
किसानों
के
हित
को
देखते
हुए
सरकार
ने
तीनों
नए
कृषि
कानून
वापस
ले
लिए
थे,
उसी
तरह
से
पूजा
स्थल
कानून
को
भी
रद्द
कर
दिया
जाए।