स्वामी अग्निवेश: मानवतावादी, राजनेता या रियलिटी शो के किरदार
स्वामी अग्निवेश को बिना उनकी गेरूआ पगड़ी के बहुत सारे लोगों ने सोमवार को पहली बार देखा होगा.
पगड़ी के बिना - जो उनके गेरूआ रंग की ही लुंगी और लंबे कुर्ते के साथ उनके रोज़मर्रा का लिबास है, वो अलग-अलग लोगों को अलग-अलग ढंग से दिखे. पानी में भीगा कुछ युवकों से घिरा बुज़ुर्ग, अस्त-व्यस्त कपड़ों में ज़मीन पर गिरा एक व्यक्ति जिसपर उम्र आज भी हावी नहीं हुआ है.
79-साल के आर्य समाजी, बंधुआ मज़दूरों के लिए लंबी लड़ाई लड़नेवाले और नोबेल जैसा सम्मानित मानेजाने वाले 'राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड' पा चुके स्वामी अग्निवेश के व्यक्तित्व को लेकर भी कई तरह की राय है.
स्वामी अग्निवेश को बिना उनकी गेरूआ पगड़ी के बहुत सारे लोगों ने सोमवार को पहली बार देखा होगा.
पगड़ी के बिना - जो उनके गेरूआ रंग की ही लुंगी और लंबे कुर्ते के साथ उनके रोज़मर्रा का लिबास है, वो अलग-अलग लोगों को अलग-अलग ढंग से दिखे. पानी में भीगा कुछ युवकों से घिरा बुज़ुर्ग, अस्त-व्यस्त कपड़ों में ज़मीन पर गिरा एक व्यक्ति जिसपर उम्र आज भी हावी नहीं हुआ है.
79-साल के आर्य समाजी, बंधुआ मज़दूरों के लिए लंबी लड़ाई लड़नेवाले और नोबेल जैसा सम्मानित मानेजाने वाले 'राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड' पा चुके स्वामी अग्निवेश के व्यक्तित्व को लेकर भी कई तरह की राय है.
सोमवार को स्वामी अग्निवेश पर हुए हमले को झारखंड की बीजेपी सरकार के एक मंत्री सीपी सिंह ने सीधे-सीधे प्रचार पाने का हथकंडा बताया.
जाने-माने पत्रकार शेखर गुप्ता ने जो स्वामी अग्निवेश को दशकों से जानने का दावा करते हैं, एक ट्वीट में लिखा, ''मैं उन्हें 1977 से जानता हूं और इस बीच उनमें कोई बदलाव नहीं आया है. जहां भी कोई मुद्दा और कैमरा मौजूद होगा वो आपको वहां नज़र आएंगे, और फिर वो उसे बीच में ही छोड़ कर आगे निकल लेंगे.''
फ़िल्म अदाकारा स्वरा भास्कर स्वामी अग्निवेश को ज्ञानी और मानवतावादी बताती हैं.
शख़्सियत
1939 में एक दक्षिण भारतीय परिवार में जन्मे स्वामी अग्निवेश शिक्षक और वकील रहे हैं. लेकिन साथ ही उन्होंने एक टीवी कार्यक्रम के एंकर की भूमिका भी निभाई है और रियलटी टीवी शो बिग बॉस कार्यक्रम का हिस्सा रह चुके हैं.
उन्होंने एक राजनीतिक दल आर्य सभा की शुरुआत की थी और आपातकाल के बाद हरियाणा में बनी सरकार में मंत्री रहे.
बंधुआ मज़दूरी के ख़िलाफ़ उनकी दशकों की मुहिम तो जगज़ाहिर है, उन्होंने बंधुआ मुक्ति मोर्चा नाम के संगठन की शुरुआत की और रूढ़िवादिता और जातिवाद के ख़िलाफ़ लड़ने का दावा करते हैं. अस्सी के दशक में उन्होंने दलितों के मंदिरों में प्रवेश पर लगी रोक के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया था.
लेकिन उनकी वेबसाइट swamiagnivesh.com में उनका जन्म एक ब्राहमण परिवार में होने का ज़िक्र है.
'swamiagnivesh.com' यह भी कहती है कि 'वो देखने में साधु जैसे लगते हैं, बातें राजनीतिज्ञों की तरह करते हैं.
हो सकता है स्वामी अग्निवेश अपनी ऊंची जाति का उल्लेख करते हुए भी दलितों की लड़ाई लड़ने और साधु होते हुए भी संवेदनशीलता के स्तर पर हल्का समझे जाने वाले टीवी शो में शामिल होने के विरोधाभास को संतुलित करने में पूरी तरह सक्षम हों, लेकिन शायद यही कारण है कि वो हर कुछ दिनों पर किसी न किसी तरह के विवाद में रहते हैं, या जैसा कि शेखर गुप्ता कहते हैं कि 'जहां कैमरा, वहां वो'.
जनलोकपाल आंदोलन
साल 2011 के जनलोकपाल आंदोलन (जिसे कुछ लोग अन्ना आंदोलन भी बुलाते है) के समय अरविंद केजरीवाल पर धन के ग़बन का लगाया उनका आरोप आज भी लोगों को याद है.
बाद में उन्होंने यहां तक कह दिया कि केजरीवाल अन्ना हज़ारे की मौत चाहते थे.
माओवादियों और सरकार के बीच बातचीत में उनकी मध्यस्थता और इसी दौरान प्रमुख माओवादी नेता चेरीकुरी राजकुमार उर्फ़ आज़ाद की कथित पुलिस मुठभेड़ में मौत के मामले को भी कुछ लोग फिर से याद कर रहे हैं.
पुलिस का कहना था कि आज़ाद की मौत तेलंगाना सूबे के आदिलाबाद में एक मुठभेड़ में हुई, लेकिन माओवादियों के मुताबिक़ आज़ाद को महाराष्ट्र के नागपुर से पुलिस उठा ले गई थी और फिर उन्हें आदिलाबाद ले जाकर मार डाला गया.
आरोप ये भी लगा था कि किसी ने हुक़ूमत से माओवादी नेता के ठिकाने की मुख़बिरी की थी.
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