RCEP समझौता हुआ तो चीनी सामानों से पट जाएगा भारतीय बाजारः स्वदेशी जागरण मंच
बेंगलुरू। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल समझौते के अंतिम दौर में पहुंच गई रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP)की मीटिंग में हिस्सा लेने अगले सप्ताह बैंकाक जा रहे हैं, लेकिन उनके बैंकाक जाने से पहले स्वदेशी जागरण मंच ने समझौते के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है। स्वदेशी जागरण मंच आरसीईपी के तहत एशियाई देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते के खिलाफ 10 अक्टूबर से देशव्यापी धरना प्रदर्शन शुरू किया है, जो आगामी 20 अक्टूबर तक चलेगा।
स्वदेशी जागरण मंच आसियान देशों और एफटीए के सदस्य देशों के बीच मुक्त व्यापार के लिए होने वाले समझौते के खिलाफ है। उसका का मानना है कि अगर यह समझौता हुआ तो भारत आयातित विदेशों सामानों से पट जाएगा, जिससे देसी उद्योग धंधों को नुकसान होगा। साथ ही, विदेशी कंपनियां भारतीय कारोबार से कमाया मुनाफा अपने घर ले जाएंगे।
हालांकि स्वदेशी जागरण मंच के विरोध के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में खुद प्रस्तावित आरसीईपी करार पर हो रही बातचीत की प्रगति रिपोर्ट जानने के लिए एक बैठक बुलाई थी, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मामलों के मंत्री एस जयशंकर, कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्टर पीयूष गोयल और कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्टरी में राज्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हिस्सा लिया। इसके अलावा होम मिनिस्टरी में भी RCEP को लेकर एक बैठक हुई। इतना ही नहीं सत्तारूढ़ भाजपा के कार्यालय पर भी इस व्यापार समझौते के लेकर ट्रेड एक्सपर्ट्स, एकेडमिशियन्स और इंडस्ट्री मेम्बर्स के बीच विचार-विमर्श हुआ।
गौरतलब है आसियान और एफटीए देशों के बीच मुक्त व्यापार की सहमति देने वाले आरसीईपी को जल्द ही अमलीजामा पहनाया जा सकता है, क्योंकि वर्ष 2013 से चल रही बैठक अब अपने अंतिम चरण में पहुंच गई है। आरसीईपी में आसियान के 10 देशों के अलावा 6 अन्य देश-चीन, भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, जापान और न्यूजीलैंड शामिल है।
दरअसल, इसी साल नवंबर तक आरसीईपी को अंतिम रूप देने का लक्ष्य रखा गया है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी इस अहम समझौते को लेकर बैठक कर रहे हैं। देश में टॉप लेवल पर हुईं उक्त बैठकें इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि आरसीईपी के अगले बैठक में 16 सदस्य देशों के व्यापार मंत्री इसमें शामिल होने वाले हैं, जिसमें समझौते पर अब तक हुई बातचीत की समीक्षा की जाएगी।
आसियान के 10 सदस्य देशों में ब्रुनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम शामिल हैं। आसियान के साथ बाकी छह देशों का मुक्त व्यापार समझौता पहले से है। 4 नवंबर को बैंकॉक में इन सभी देशों के लीडर्स की समिट होगी, जिसमें पीएम मोदी भी शामिल होंगे, लेकिन उसके पहले अंतिम मंत्रिस्तरीय बैठक अगले सप्ताह होने जा रही है, जिसमें शामिल होने के लिए केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल बैंकाक रवाना होंगे।
हालांकि आलोचकों का मानना है कि आरसीईपी से चीन के लिए भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते जैसा हो जाएगा और अगर ऐसा हुआ तो चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 54 अरब डॉलर के चेतावनी जनक स्तर से ऊपर पहुंच जाएगा। क्योंकि आसियान देशों के साथ होने वाले मुक्त व्यापार समझौते का अनुभव अच्छा नहीं रहा है और भारत इसका खास फायदा नहीं उठा पाया है।
आरसीईपी पर दस्तखत होने के बाद आसियान देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा और बढ़ सकता है। यही कारण है कि कृषि, डेयरी, स्टील सेक्टर, टेक्सटाइल जैसे कई औद्योगिक सेक्टर के लोग भी आरसीईपी समझौते का विरोध कर रहे हैं। उनको आशंका है कि आरसीईपी से भारत आयातित माल से पट जाएगा। डेयरी इंडस्ट्री को खासतौर से ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड के डेयरी उत्पाद से बाजार पट जाने का डर है।
अभी हाल में इसी डर के कारण देश के कई किसान संगठनों ने आरसीईपी के विरोध में देशव्यापी आंदोलन छेड़ने की चेतावनी दे चुकी हैं। किसान संगठनों के मुताबिक केंद्र सरकार अगर आसियान देशों के साथ समझौते करती है तो इसका सीधा असर 15 करोड़ डेयरी किसानों की रोजी-रोटी पर पड़ेगा।
प्रधानमंत्री मोदी और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन को चिट्ठी लिख कर उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर उनकी सुनवाई नहीं हुई तो देश भर के किसान देश व्यापी आंदोलन छेड़ देंगे। संगठनों का दावा है कि पिछले साल 2018-19 में आसियान ब्लॉक के साथ मुक्त व्यापार समझौते के तहत सस्ते आयात को मंजूरी देकर भारत 26 हजार करोड़ का घाटा खा चुका है।
उल्लेखनीय है आरसीईपी के द्वारा सभी 16 देशों को शामिल करते हुए एक 'एकीकृत बाजार' बनाए जाने का प्रस्ताव है, जिससे इन देशों के उत्पादों और सेवाओं के लिए एक-दूसरे देश में पहुंच आसान हो जाएगी। इससे व्यापार की बाधाएं कम होंगी। साथ ही, निवेश, आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग, विवाद समाधान, ई-कॉमर्स आदि को बढ़ावा मिलेगा। इस समझौते के 25 चैप्टर में से 21 को अंतिम रूप दिया जा चुका है।
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RCEP क्या है?
रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप आसियान के दस सदस्य देशों ब्रुनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमा, फिलिपिंस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम और छह एफटीए पार्टनर्स चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौता है।
क्यों महत्वपूर्ण है समझौता?
इसे दुनिया का सबसे प्रमुख क्षेत्रीय समझौता माना जा रहा है, क्योंकि इसमें शामिल देशों में दुनिया की करीब आधी जनसंख्या रहती है। इन देशों की दुनिया के निर्यात में एक-चौथाई और दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद में करीब 30 फीसदी योगदान है।
भारत को क्या हो सकता है फायदा?
जानकारों का मानना है कि इस समझौते से भारत को एक विशाल बाजार हासिल हो जाएगा। घरेलू उद्योगों को यदि प्रतिस्पर्धी बनाया गया तो इसे दवा इंडस्ट्री,कॉटन यार्न, सर्विस इंडस्ट्री को अच्छा फायदा मिल सकता है। इस करार से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में वृद्धि दर्ज की जा सकती है, खासकर एक्सपोर्ट से जुड़े एफडीआई में। इसके अलावा इस करार से देश के एमएसएमई क्षेत्र को भी खासा फायदा मिलने की उम्मीद है। इस करार के अमल में आने के बाद एशिया-पेसिफिक क्षेत्र में भारत का कद और सूख बढ़ सकता है।
चीनी सामानों की है सबसे बड़ी चिंता ?
इस समझौते का संघ के आनुषांगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच के साथ ही इंडस्ट्री के कई वर्ग भी विरोध कर रहे हैं. कई जानकारों का मानना है कि भारत को अपने बाजार की पहुंच देने के मामले में सतर्कता बरतनी चाहिए। ऐसी आशंका है कि इससे आरसीईपी देशों से आने वाले सस्ते उत्पादों से भारतीय बाजार पट जाएगा। इस तरह चीन के माल से पहले से भरे भारतीय कारोबार जगत के लिए समस्या और बढ़ जाएगी। इससे चीनी माल का आयात भी और बढ़ जाएगा।
किसान संगठन क्यों कर रहे विरोध
देश में शीर्ष स्तर पर हुईं ये बैंठकें इसलिए भी अहम हैं क्योंकि डेयरी सहित विभिन्न सेक्टर इस करार का काफी विरोध कर रहे हैं। वहीं इस बात की आशंका भी जताई जा रही है कि इस करार से भारत का ट्रेड डिफिसिट बढ़ सकता है। यह आशंका इसलिए जताई जा रही है कि नीति आयोग ने हाल में कहा है कि मुक्त व्यापार समझौता के बाद आसियान, कोरिया और जापान के साथ भारत के व्यापार घाटे में वृद्धि हुई है।
स्वदेशी जागरण मंच क्यों कर रही है विरोध प्रदर्शन
स्वदेशी जागरण मंच ने आरसीईपी समझौते के विरोध में 10 से 20 अक्टूबर तक इसके राष्ट्रव्यापी विरोध का ऐलान किया है। उनका कहना है कि अभी तक भारत ने जितने मुक्त व्यापार समझौते किए हैं उनसे देश में सस्ते आयातित माल पट गए हैं और भारतीय मैन्युफैक्चरिंग को बड़ा नुकसान हुआ है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया है कि वह RCEP पर दस्तखत न करे। स्वदेशी जागरण मंच, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ] का एक आर्थिक संगठन है, जो स्वदेशी उद्योगों व संस्कृति के विकास के लिए जनता में जागरूकता पैदा करती है।