ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों पर बोलीं सुषमा सिर्फ UN के प्रतिबंध मानता है भारत, US के नहीं
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सोमवार को साफ-साफ कहा है कि भारत, ईरान पर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंध को नहीं मानता है बल्कि वह यूनाइटेड नेशंस (यूएन) की ओर से ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों को मानता है।
नई दिल्ली। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सोमवार को साफ-साफ कहा है कि भारत, ईरान पर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंध को नहीं मानता है बल्कि वह यूनाइटेड नेशंस (यूएन) की ओर से ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों को मानता है। सुषमा ने यह बात उस समय कही जब उनसे ईरान और वेनेजुएला पर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से भारत के तेल आयात पर होने वाले असर से जुड़ा एक सवाल पूछा गया था। हाल ही में अमेरिका ने ईरान के साथ साल 2015 में हुए परमाणु समझौते से खुद को बाहर कर लिया है। इस समझौते के तहत ईरान ने सभी तरह की परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी सभी संवेदनशील गतिविधियों को बंद करने का वादा किया था।
दबाव में नहीं बनती है विदेश नीति
सुषमा ने सोमवार को कहा, 'हम सिर्फ यूएन प्रतिबंधों को ही मान्यता देते हैं और किसी खास देश की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों को नहीं पहचानते हैं।' उन्होंने आगे कहा कि भारत किसी दूसरे देश के दबाव में आकर अपनी विदेश नीति तैयार नहीं करता है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में ईरान के साथ हुई डील से अमेरिका को बाहर करने के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फिर से ईरान पर वही प्रतिबंध लगा दिए हैं जो डील के बाद हटा लिए गए थे। अमेरिका की ओर से राष्ट्रपति निकोलस मादुरो के दोबारा चयन के बाद वेनेजुएला पर भी प्रतिबंध लगा दिए गए हैं।
सबसे ज्यादा तेज आता ईरान से
ईरान, भारत को तेल सप्लाई करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है तो वेनेजुएला से भी अच्छी-खासी मात्रा में भारत को तेल मिलता है। सुषमा ने इस बात से भी इनकार कर दिया कि वेनेजुएला के साथ तेल के व्यापार के लिए क्रिप्टोकरेंसी का प्रयोग हो रहा है। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक की ओर से इसको बैन किया जा चुका है। सुषमा की ओर से ईरान पर यह बयान उस समय आया जब वह कुछ ही घंटों बाद ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद जारीफ से मिलने वाली थीं। जारीफ इस डील से अमेरिका के बाहर होने के बाद भारत का समर्थन लेने के लिए यात्रा पर हैं। इस बात की आशंका थी कि अमेरिकी फैसले का भारत के तेल आयात पर असर पड़ सकता है। हालांकि रूस और दूसरे यूरोपियन देशों की ओर से इस डील को बचाने की कई कोशिशें की गई थीं।