जाते-जाते भी समाज को बड़ा संदेश दे गईं सुषमा स्वराज, गढ़मुक्तेश्वर में आज होगा अस्थियों का विसर्जन
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता और देश की पूर्व विदेश मंत्री रहीं सुषमा स्वराज की अस्थियों का आज गढ़मुक्तेश्वर में विसर्जन किया जाएगा, सुषमा के परिजन गुरुवार सुबह लोधी श्मशान घाट से अस्थियां जुटाकर गढ़मुक्तेश्वर के लिए रवाना हो गए हैं, आपको बता दें, सुषमा स्वराज का मंगलवार देर रात निधन हो गया था, उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, इसके बाद बुधवार को सुषमा का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया था।
गढ़मुक्तेश्वर में आज होगा अस्थियों का विसर्जन
भारतीय राजनीति के लोकप्रिय चेहरों में से एक सुषमा स्वराज ने हमेशा मूल्यों और सिद्धांतों पर बल दिया, वो केवल एक प्रखर वक्ता ही नहीं बल्कि प्रेम और इंसानियत के जरिए चीजों को बदलने की कोशिश करने वाली एक साहसी महिला थीं और इसी वजह से उनके निधन पर विरोधी दलों के नेता भी रो पड़े, सुषमा ने जाते-जाते भी समाज को एक बड़ा संदेश दिया। उनके अंतिम संस्कार की सारी प्रथाएं उनकी इकलौती बेटी बांसुरी कौशल ने निभाई।
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बेटी बांसुरी ने पूरे किए सारे संस्कार...
आम तौर पर ये प्रथाएं पति या बेटे निभाते हैं लेकिन बांसुरी ने इन संस्कारों को पूरा करके ये बता दिया कि सुषमा स्वराज सिर्फ कहती ही नहीं बल्कि मानती भी थीं कि बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं है, आपको बता दें कि एम्स में मंगलवार रात निधन होने के बाद सुषमा स्वराज के पार्थिव शरीर को बुधवार को अंतिम दर्शन के लिए बीजेपी मुख्यालय में रखा गया था, इसके बाद सुषमा के पार्थिव शरीर को केंद्रीय मंत्रियों राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा, रविशंकर प्रसाद और पीयूष गोयल ने भी कंधा दिया था, इसके बाद दिल्ली के लोधी रोड स्थित शवदाह गृह में उनका अंतिम संस्कार किया गया था।
किडनी की बीमारी से ग्रसित थीं सुषमा स्वराज
पूर्व विदेश मंत्री को इससे पहले भी किडनी के खराब होने की समस्या के चलते यहां भर्ती कराया गया था, साल 2016 में किडनी खराब होने के कारण उन्हें डायलिसिस पर रखा गया था,वो डायबिटीज की पुरानी बीमारी से भी जूझ रही थीं, सुषमा करीब 20 साल से भी ज्यादा समय से डायबिटीज से पीड़ित थीं।
आस्था का मानक है 'गढ़मुक्तेश्वर'
'गढ़मुक्तेश्वर' राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से 100 किलोमीटर दूर 'राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 9' पर बसा है। गढ़मुक्तेश्वर मेरठ से 42 किलोमीटर दूर स्थित है और गंगा नदी के दाहिने किनारे पर बसा है। सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यहां कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला गंगा स्नान पर्व उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेला माना जाता है।
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