जब बाल ठाकरे ने सुषमा को बताया था पीएम मटेरियल तो नीतीश ने साध ली थी चुप्पी
नई दिल्ली। सुषमा स्वराज हिन्दुस्तान के सियासी फलक का चमकता सितारा थीं। ओजस्वी वक्ता, प्रखर प्रशासक और विदुषी राजनेत्री के रूप में उन्होंने भारतीय राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी है। राष्ट्रीय राजनीति में उनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि एक समय उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा रहा था। बाला साहेब ठाकरे सुषमा स्वराज की प्रतिभा से बेहद प्रभावित थे। सबसे पहले उन्होंने ही कहा था कि एनडीए की तरफ से प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे बेहतर और काबिल उम्मीदवार सुषमा स्वराज हैं। उस समय नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उनका कद भी भाजपा में तेजी से बढ़ रहा था। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अगर उस समय बाला साहेब ठाकरे के प्रस्ताव को मान लिया होता तो शायद भारतीय राजनीति की तस्वीर कुछ और होती। तब नरेन्द्र मोदी के लिए इस मुकाम पर पहुंचना आसान नहीं होता।
नेता प्रतिपक्ष के रूप में सुषमा स्वराज
2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को फिर हार का सामना करना पड़ा था। अगर उस समय भाजपा को बहुमत मिलता तो सुषमा स्वराज भी पीएम पद की दावेदार होतीं। उस समय लालकृष्ण आडवाणी की दावेदारी उम्र की वजह से कमजोर पड़ने की आशंका थी। भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। लालकृष्ण आडवाणी के रहते सुषमा स्वराज लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष चुनीं गयीं। नेता प्रतिपक्ष के रूप में सुषमा स्वराज ने जल्द ही सिक्का जमा लिया। जब वे लोकसभा में बोलती तो सत्तारूढ़ यूपीए के सदस्य भी उनकी बात गौर से सुनते थे। उनके मिलनसार स्वभाव से विरोधी दल के नेता उनकी बहुत इज्जत करते थे।
सुषमा को पीएम कैंडिडेट बनाने की वकालत
ये सितम्बर 2012 की बात है। उस समय शिव सेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे जिंदा थे। उनके निधन से करीब तीन महीना पहले पार्टी के मुखपत्र ‘सामना' में उनका लंबा इंटरव्यू छपा था। 10 सितम्बर 2012 को इस इंटरव्यू की तीसरी किस्त छपी थी। इसके प्रकाशन के साथ ही भाजपा और एनडीए में हलचल मच गयी। बाला साहेब ठाकरे ने अपने साक्षात्कार में सुषमा स्वराज की खुल कर तारीफ की थी और कहा था कि भारत के प्रधानमंत्री पद के लिए वे अत्यंत उपयुक्त और सुयोग्य उम्मीदवार हैं। इस पद की लंबी कतार में सुषमा ही सबसे बुद्धिमान और काबिल नेता हैं। ऐसा कह कर बाला साहेब ठाकरे ने लालकृष्ण आडवाणी और नीतीश कुमार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। उन्होंने आडवाणी के बारे में कहा था, मैं उनसे उम्र में नौ महीने बड़ा हूं। इस लिए मुझे बोलने का अधिकार है। लेकिन मैं उनके खिलाफ कुछ बोलूंगा नहीं। अभी कोई ऐसा नेता नहीं है जो सुषमा स्वराज की योग्यता की बराबरी कर सके। नवम्बर 2012 में बाला साहेब ठाकरे का निधन हो गया जिसकी वजह से यह मुहिम परवान नहीं चढ़ सकी।
तब क्या था नीतीश कुमार ने ?
बाला साहेब ठाकरे के बयान से एनडीए में खलबली मच गयी थी। 10 सितम्बर 2012 को नीतीश कुमार जनता दरबार में लोगों की समस्याएं सुन रहे थे। जनता दरबार के बाद प्रेस वार्ता का आयोजन हुआ। नीतीश कुमार के सामने सबसे पहला सवाल आया, बाला साहेब ठाकरे ने नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज को पीएम कैंडिडेट के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार माना है, आपकी क्या प्रतिक्रिया है। इस पर नीतीश कुमार ने कोई राय रखने से मना कर दिया। लेकिन उन्होंने अपने तेवर जरूर दिखाये। इस मामले में नीतीश ने कहा कि पीएम मटेरियल होने और एक उम्मीदवार के रूप में अंतिम फैसला होने के बीच बहुत फर्क है। इस मुद्दे पर हम अपनी राय तब रखेंगे जब एनडीए की उपयुक्त बैठक होगी । ये ऐसा मसला है कि जिस पर हम सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं कर सकते। ऐसा माना जाता है कि अगर नीतीश कुमार ने उस समय सुषमा स्वराज का समर्थन कर दिया होता तो शायद नरेन्द्र मोदी के लिए आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता।