जब सदन में सुषमा स्वराज ने कहा- चंद्रशेखर जी, कौरवों की सभा के भीष्म पितामह की तरह आप मौन साधे रहे
नई दिल्ली। बीजेपी की वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का मंगलवार की रात दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। सुषमा स्वराज एक प्रखर प्रवक्ता थीं, वे कई बार आक्रामक हो जातीं थी लेकिन इस दौरान वे मर्यादाओं की सीमा का जरूर खयाल रखती थीं। भाषा पर गजब की पकड़ रखने वाली सुषमा स्वराज के सदन में दिए गए कई भाषण यादगार हैं जब उन्होंने दूसरे दलों की तालियां भी बटोरीं। ऐसा ही एक स्पीच उन्होंने 11 जून 1996 को सदन में विश्वास प्रस्ताव के विरोध में दिया था, इसके पहले ही अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था क्योंकि उनके पास बहुमत के लिए जरूरी संख्या नहीं थी।
विश्वास प्रस्ताव के विरोध में सदन में बोल रही थीं
1 जून, 1996 को एचडी देवगौड़ा ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी और इसके बाद विश्वास प्रस्ताव पर सदन में चर्चा हो रही थी। सुषमा स्वराज ने अपना संबोधन शुरू किया, 'मैं यहां विश्वासमत का विरोध करने के लिए खड़ी हुई हूं। ये इतिहास में पहली बार नहीं हुआ है, जब राज्य के सही अधिकारी को राज्याधिकार से वंचित कर दिया गया हो। त्रेता युग में यही घटना श्रीराम के साथ घटी थी। राजतिलक करते-करते उनको वनवास दे दिया गया था। द्वापर में भी ऐसी ही घटना धर्मराज युद्धिष्ठिर के साथ घटी थी, जब धुर्त शकुनी की दुष्ट चालों ने राज्य के अधिकारी को राज्य से बाहर कर दिया था।'
मुरासोली मारन की टिप्पणी पर दिया था जवाब
सुषमा स्वराज ने कहा कि अध्यक्ष महोदय, जब एक मंथरा और एक शकुनी, राम और युद्धिष्ठिर जैसे महापुरुषों को सत्ता से बाहर कर सकते हैं तो हमारे खिलाफ तो ना जाने कितनी मंथराएं और कितने शकुनी सक्रिय हैं। सुषमा स्वराज ने आक्रामक अंदाज में भाषण जारी रखा। विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान डीएमके नेता मुरासोली मारन के एक बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए सुषमा स्वराज ने कहा, 'मेरी आंखें उस वक्त भर आईं जब भारतीयता शब्द पर ही सवाल उठा दिए गए, पहले तो हमसे हिंदुत्व का मतलब ही पूछा जाता था।'
'चंद्रशेखर जी कौरवों की सभा के भीष्म पिता की तरह मौन साधे रहे'
सुषमा स्वराज ने कहा, 'मैं मुरासोली मारन की बहुत इज्जत करती हूं, लेकिन आज उन्होंने कहा कि वो अलग हैं और हम अलग, किसी तरह की भारतीय संस्कृति की बात आप कर रहे हैं, भारत, भारतीय और भारतीयता क्या है? मुझे तो लगा था कि यहां कोई कुछ जरूर बोलेगा, एक चंद्रशेखर जी से उम्मीद थी। चंद्रशेखर जी कौरवों की सभा के भीष्म पिता की तरह मौन साधे रहे।'